आज शिमला के ऐतिहासिक गेयटी के कॉन्फ्रेंस हॉल में जनचेतना संस्था द्वारा प्रेमचन्द जयंती सप्ताह के संदर्भ में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। “प्रेमचंद और उनकी विरासत” विषय पर आयोजित इस विचार गोष्ठी में सुपरिचित कवि लेखक आत्मा रंजन ने मुख्य वक्ता के रूप में शिरकत की जबकि अध्यक्ष मंडल में वरिष्ठ साहित्यकार के. आर. भारती, विद्यानिधि छाबड़ा और गुप्तेश्वर नाथ उपाध्याय शामिल रहे।
मुंशी प्रेमचंद भारतीय साहित्य के अविस्मरणीय लेखक हैं, जिन्हें शोषण और अन्याय के खिलाफ अपने लेखन के लिए जाना जाता है। उन्हें ‘किस्सागो’ और ‘हिंदी का शेक्सपियर’ कहा जाता है। उनके साहित्य में गांव के किसान, मजदूर और वंचित वर्ग की समस्याओं को बहुत प्रभावी तरीके से उजागर किया गया है। उनकी रचनाओं — जैसे “गोदान,” “गबन,” और “निर्गुण” — में उन्होंने समाज के हाशिये पर खड़े लोगों की स्थिति को दर्शाया है। प्रेमचंद ने अपने लेखन के माध्यम से भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी कहानी “दुर्गेशनंदिनी” और “पंच परमेश्वर” जैसी कृतियों में उन्होंने समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने की कोशिश की है, जो आज भी प्रासंगिक हैं। प्रेमचंद का लेखन न केवल समाज के बुराइयों को उजागर करता है, बल्कि उसे सुधारने की दिशा में भी प्रेरित करता है। उनकी यह विशेषता उन्हें कालजयी बनाती है और उनकी रचनाओं को आज भी पढ़ा और सराहा जाता है। आत्मा रंजन जैसे विचारकों ने उनके कार्य को मान्यता दी है और उन्हें प्रेरणा के स्रोत के रूप में देखा है। प्रेमचंद का जीवन और साहित्य, सभी को एक नई सोच और दृष्टिकोण देने के साथ-साथ शोषण और अन्याय के खिलाफ एक मजबूत संदेश देता है। उनका योगदान न केवल साहित्यिक है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए प्रेरणा देने वाला भी है। उनकी कलम हमेशा अन्याय के खिलाफ खड़ी रही, जो उन्हें हिंदी साहित्य का सच्चा सिपाही बनाती है।
आत्मा रंजन ने प्रेमचंद की विरासत और आज के संदर्भ में उसकी प्रासंगिकता पर विस्तार से बात करते हुए उन्हें अन्याय और शोषण के खिलाफ़ ज़िंदगी भर लड़ाई लड़ने वाला कलम का सशक्त योद्धा बताया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद साहित्य में आज के हमारे समय और समाज के कितने ही ज़रूरी प्रश्नों और चिंताओं के गहन विमर्श बिंदु मौजूद हैं जो उन्हें सौ साल बाद भी बहुत प्रासंगिक बनाए हुए हैं। वरिष्ठ लेखक और भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी के. आर. भारती ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद जीवन अनुभवों पर आधारित ही साहित्य रचते रहे जो उन्हें अधिक विश्वसनीय बनाता है। लेखक अनुवादक विद्यानिधि छाबड़ा ने कहा कि प्रेमचंद अपने समय के गहरे विद्रूप को उसी रूप में सामने लाते हैं ताकि पाठक उद्वेलित होकर यथास्थिति को बदलने को प्रेरित हो। कवि कथाकार गुप्तेश्वर नाथ उपाध्याय ने कहा कि प्रेमचंद और किसी भी लेखक को उसके युगीन संदर्भों में अवश्य पढ़ा समझा जाना चाहिए तभी उनके लिखे के साथ सही न्याय होगा।
परिचर्चा में वरिष्ठ लेखक डॉ. ओम प्रकाश शर्मा, नरेश देयोग, स्नेह नेगी, राधा सिंह, कल्पना गांगटा, हेम राज शर्मा, रणवीर, स्नेह भारती, कुमकुम आदि ने भी अपने अपने विचार रखे। कार्यक्रम का बढ़िया संचालन चंडीगढ़ जनचेतना प्रमुख नमिता ने किया। उन्होंने संस्था की गतिविधियों की जानकारी देते हुए बताया कि जनचेतना सामयिक मुद्दों, सृजन, विचार और पुस्तक संस्कृति को विस्तार देने के क्षेत्र में सक्रिय रही है। गोष्ठी के स्थानीय संयोजक मनन विज ने अपने विचार साझा करने के साथ सभी अतिथियों का धन्यवाद भी किया। उन्होंने आयोजन में विशेष सहयोग के लिए कीकली ट्रस्ट का भी धन्यवाद किया। इस अवसर पर अनेक शोधार्थी, संस्कृति कर्मी और युवा भी उपस्थित रहे।