हिमाचल प्रदेश की दिव्यांग महिलाओं के कठिन संघर्ष और सफलता की प्रेरक कहानियां किसी को भी हैरान कर सकती हैं। वे उच्च शिक्षित होकर विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के परचम लहरा रही हैं। वर्षों से दिव्यांगों, और विशेष कर दिव्यांग बेटियों के सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रहे उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव के अनुसार मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के कारण व्हीलचेयर यूजर संजना गोयल को दिव्यांगता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए वर्ष 2004 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था।

कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त संजना गोयल ने सोलन में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के मरीजों हेतु अत्याधुनिक सुविधाओं वाला एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल एवं पुनर्वास केंद्र-“मानवमंदिर” स्थापित कर इतिहास रचा। विकलांग होने के पहले वह एक फैशन डिजाइनर थीं। राष्ट्रपति से राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाली वह पहले हिमाचली हैं। जनजातीय जिले किन्नौर की रहने वाली छोनजिन आंगमो पूर्णतः दृष्टिबाधित हैं और 2024 में दिव्यांगता के क्षेत्र में राष्ट्रपति से राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाली वह दूसरी हिमाचली बन गईं। दिल्ली में यूनियन बैंक में कार्यरत आंगमो दिव्यांग जनों की उस टीम में अकेली महिला थीं जिसने सियाचिन ग्लेशियर पर पहुंचकर विश्व रिकॉर्ड बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर ‘मन की बात’ उनकी तारीफ की।
जूडो, एथलेटिक्स की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अनेक पदक प्राप्त कर चुकी आंगमो स्वर्ण पदक विजेता तैराक होने के साथ-साथ, साइकिलिस्ट, फुटबॉलर और पैराग्लाइडर भी हैं। हिमाचल प्रदेश न्यायिक सेवा में चयन के बाद पहली दिव्यांग महिला जज बन कर कांगड़ा जिले की प्रियंका ठाकुर की इतिहास रचा। उन्होंने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से एलएलएम किया और यूजीसी नेट भी उत्तीर्ण किया। भारतीय चुनाव आयोग की यूथ आईकॉन, बेहतरीन गायिका, उमंग फाउंडेशन की ब्रांड एंबेसडर, देश के बाहर अमेरिका में भी अपने गायन की धूम मचाने वाली मुस्कान नेगी की आंखों में रोशनी का न होना उनकी राह का रोड़ा नहीं बन पाया। वह चिड़गांव की रहने वाली हैं और शिमला के प्रतिष्ठित आरकेएमवी कॉलेज में संगीत की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और पीएचडी भी कर रही हैं।
कांगड़ा जिले की निकिता चौधरी हिमाचल प्रदेश की ऐसी पहली व्हीलचेयर यूजर विद्यार्थी हैं जो टांडा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कर रही हैं। वह कविताएं और लेख लिखती हैं। डिबेट एवं डिक्लेमेशन आदि में भी उन्होंने पुरस्कार जीते हैं। मंडी जिले की प्रतिभा ठाकुर दृष्टिबाधित हैं और शिमला के राजीव गांधी डिग्री कॉलेज में राजनीति विज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। कविता लिखना और एंकरिंग उनके शौक हैं और उन्हें पीएचडी के लिए नेशनल फेलोशिप प्राप्त है। करसोग की अंजना ठाकुर ने गंभीर शारीरिक दिव्यांगता की कठिन चुनौती से कभी हार नहीं मानी और बॉटनी में सीएसआईआर की जूनियर रिसर्च फेलो बनकर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पीएचडी में प्रवेश लिया। वह अब राजीव गांधी डिग्री कॉलेज में वह बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उधर दृष्टिबाधित इतिका चौहान ने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में पीएचडी किया और मतियाना के वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में राजनीति विज्ञान की लेक्चरर हैं।
दिव्यांगता को मात दे कर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस में पीएचडी कर रही मीनू चंदेल, ज्योति नेगी और रंजना चौहान युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। मीनू चंदेल कंप्यूटर साइंस की स्कूल लेक्चरर हैं और रंजना तथा ज्योति यूजीसी की जूनियर रिसर्च फेलो हैं। संगीत में श्वेता शर्मा, राजनीति विज्ञान में काजल पठानिया, हिंदी में रमा चौहान एवं सवीना जहां और शिक्षा विभाग में विशाली ठाकुर जेआरएफ की परीक्षा पास करके पीएचडी कर रही हैं। नेशनल फेलोशिप प्राप्त अंजू विरमानी हिंदी में पीएचडी स्कॉलर है। पटियाला की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से एलएलबी कर रही सुंदर नगर की वैष्णवी चुग व्हीलचेयर यूजर है और सेरेब्रल पाल्सी के कारण हाथ से लिख भी नहीं सकतीं। यह अत्यंत मेधावी छात्रा जज बनने का सपना संजोए है। प्रो. अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि उच्च शिक्षा प्राप्त कर दृष्टिबाधित एवं अन्य दिव्यांग महिलाओं ने रेलवे, बैंक एवं प्रदेश की सरकारी जॉब में आ कर अन्य युवाओं को भी रास्ता दिखाया है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर दिव्यांग महिलाओं के संघर्ष को भी याद किया जाना चाहिए और उनके रास्ते की बाधाओं को को हटाने में समाज अपनी भूमिका निभाए।