लेखिका प्रियंका शर्मा
प्रियंका शर्मा

मैनें रूख मोड़ा दहलीज के ऊपर
अनजान बेफिक्र सी. जा पहुँची
न जाने मुझसे क्या भूल-सी हो बैठी
मैं सहम सी गई.
मैं अपने अन्दर के द्वंद्व को न बोल पाई
और यूँ ही अश्रु बनकर ढह गए
एक गलती यूँ ही दस्तक दे गई, एक गलती यूँ ही दस्तक दे गई।
मस्तिष्क में उमड़ते हुए जाल को मैं बुनते चलती गयी
अपने जीवन को निष्प्राण करती चली गयी
अकेलापन मेरे मन को कचोटता चला गया
दुनिया एक पत्थर-सी मूरत बनती लगने लगी
एक गलती यूँ ही दस्तक दे गई, एक गलती यूँ ही दस्तक दे गई।
मन का काफिला बढ़ता गया
मेरा जीवन ढहता गया
दिल बेजुबान बनकर रह गया
जुबां से निकल अल्फाज़ अभिशाप लगने लगे
एक गलती यूँ ही दस्तक दे गई एक गलती यूँ ही दस्तक दे गई ।।

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