डॉ. कमल के. प्यासा

कच्चे धागों के अटूट बंधन का त्योहार राखी या रक्षाबंधन आए बरस श्रवण मास की शुक्ल पूर्णिमा को आता है। इस शुभ पर्व पर बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है, जो कि कच्चे सूती धागे (कलावे) से लेकर रेशम व सोने चांदी की (सुंदर रूप की रक्षा बंधन वाली) राखी के रूप में होता है।
राखी या रक्षाबंधन के इस पवित्र त्योहार का चलन कैसे हुआ, इसका भी अपना इतिहास व पौराणिक कथाएं मिलती हैं जो कि महाभारत काल की हजारों वर्ष प्राचीन बताई जाती हैं। इन्हीं में से एक पौराणिक वृतांत में आता है कि भगवान श्री कृष्ण ने जिस समय शिशुपाल का वध अपने सुदर्शन चक्र से किया था तो उनकी अपनी उंगली भी उस चक्र से कट गई थी और उससे रक्त बहने लगा था। तब द्रोपदी ने अपनी साड़ी के पल्लू से भगवान श्रीं कृष्ण की उंगली को लपेट कर, बहते रक्त को रोका था, जिससे भगवान श्री कृष्ण बहुत ही प्रभावित हुए थे तथा उसी समय से उन्होंने हमेशा के लिए द्रोपदी की रक्षा करने का वादा कर दिया था। वादे के अनुसार ही हस्तीनापुर में जिस समय पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे, तब श्री कृष्ण ने ही उसकी लाज साड़ी को लंबा कर के की थी।
इसी तरह की एक दूसरी पौराणिक कथा जो कि भगवान विष्णु जी से जुड़ी है, से पता चलता है कि पाताल के दानी राजा बलि को जब अपनी शक्ति का अभिमान हो जाता है तो उसे चूर करने के लिए वामन अवतार में विष्णु जी बलि के पास पहुंच कर तीन पग भूमि दान में मांगते हैं, जिसके लिए बलि तीन पग को मामूली ही समझ कर राजी हो जाता है, लेकिन भगवान विष्णु उसके गरुर को तोड़ने के लिए अपने दो ही पगों से सारी पृथ्वी, आकाश व पाताल को माप लेते हैं और जब तीसरे पग के लिए बलि से पूछते हैं तो बलि अपने वादे के अनुसार अपना सिर भगवान विष्णु के आगे कर देता है। जिससे भगवान विष्णु जी बलि से बहुत प्रसन्न जाते हैं और बलि को सारा पाताल ही सौप कर उसे वर मांगने को कह देते हैं। जिस पर बलि ने वर में भगवान विष्णु को ही अपने यहां रहने को कह दिया। जब इस संबंध में माता लक्ष्मी को पता चला तो उन्होंने राजा बलि की कलाई में रक्षा सूत्र बांध कर उसे भाई बना लिया तथा भगवान विष्णु द्वारा दिए वर से भी उन्हें मुक्त करा लिया। क्योंकि उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा ही थी और कहते हैं कि तभी से यह रक्षा बंधन या राखी की परंपरा शुरू है।
कुछ भी हो रक्षाबंधन की यह परंपरा चलती हुई मुगल काल में मेवाड़ की रानी कर्मावती पर, जब बहादुर शाह द्वारा हमला किया गया तो उसने भी मुगल शासक हुमायूं को राखी भेज कर (बहन के नाते) व उससे सहायता लेकर अपने राज्य को बचाया था। ऐसे ही कहते हैं कि सिकंदर महान की पत्नी ने भी हिंदू शासक पुरुवास को राखी भेज कर व उसे भाई बना कर, अपने पति सिकंदर को मारने से बचा लिया था। इस तरह रक्षाबंधन के ये धागे चाहे कितने भी पतले या कच्चे क्यों न हों, लेकिन इनका बंधन व पकड़ बड़ी ही मजबूत होती है।
रक्षा सूत्र को बांधने से पूर्व बहिन द्वारा पूजा की थाली में राखी (रक्षा सूत्र/रक्षाबंधन), रोली, हल्दी, केसर, दीप धूप, चावल के दाने, मिठाई व वरना आदि ले कर भाई को तिलक लगाती है व आरती उतार कर वरना करती है। फिर उसकी दाईं कलाई में राखी बांध कर उसे मिठाई खिलाती है तथा उसकी हर तरह से सुरक्षा की कामना करती है। भाई भी बदले में बहन की रक्षा के लिए हर तरह से अहसास दिलाते हुए उसे पैसे व उपहार देता है।
इस दिन के विशेष पकवानों में घेवर, माल पूडे, गुजिया, हलुवा पूड़ी व खीर होती है। भाई बहन के रक्षाबंधन के इस त्योहार के दिन कुछ ब्राह्मण पुरोहित अपने यजमानों को भी राखी बांधते हैं। कहीं कहीं गुरु अपने शिष्यों को तथा कुछ शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते हैं। छोटी बालिकाओं द्वारा अपने पिता को भी राखी बांधी जाती है। मान सम्मान के लिए देश के रक्षकों (सैनिकों), बड़े बड़े नेताओं (प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति) को बच्चियों व महिलाओं द्वारा भी राखी बांधने का चलन प्रचलित है।इतना ही नहीं आज समस्त विश्व में पर्यावरण के संकट को देखते हुवे पेड़ पौधों को भी राखी बांध कर उनका संरक्षण किया जाता है। जिन बहनों के भाई नहीं होते वे भी पेड़ पौधों व देव गणेश को राखी बांध कर पर्यावरण के संरक्षण में अपना योगदान देते हैं।
आगे अपने उद्योग धंधों से जुड़े लोग अपने उद्योगों के प्रति मान सम्मान प्रकट करने के लिए अपनी मशीनों, कलपुर्जों तथा तोल यंत्रों व अपने वाहनों तक को राखी द्वारा सुशोभित करके उनके मान सम्मान के साथ ही साथ उनकी सुरक्षा का पूरा पूरा ध्यान रखते हैं।
कुछ भी हो हमें हर अपनी प्यारी वस्तु व संबन्धों की रक्षा व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस रक्षा बंधन के त्योहार रूपी संस्कृति को यथा रूप से बनाए रखते हुए अपने प्रति बनते दायित्वों को निभाना भी जरूरी हो जाता है।