रणजोध सिंह द्वारा रचित लघुकथा
उस दिन मैं कार की फ्रंट सीट पर बैठा हुआ प्रकृति के सुंदर नजारों का आनंद ले रहा था और मेरा एक सहृदय मित्र कार चला रहा था| तभी एक ट्रक दनदनाता हुआ हमारी कार के एकदम सामने आ गया| मित्र ने पूरा जोर लगाकर किसी तरह ब्रेक लगा दी, दूसरी तरफ ट्रक ड्राईवर भी शायद काफी अनुभवी होगा क्योंकि तेज गति के बावजूद भी वह ट्रक को ऐन-मौके पर रोकने में सफल हो गया था| भीषण टक्कर होते-होते बची, क्योंकि पहाड़ी रास्ता होने के कारण हमारी कार की गति पंद्रह-बीस किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा न थी| परन्तु अचानक ब्रेक लगने से हमें एक ज़ोरदार झटका लगा, कार की डैश-बोर्ड पर रखी हुई सारी चीज़े इधर–उधर बिखर गईं|
दिल में आया कि कार से उतर कर ट्रक ड्राइवर की अच्छी तरह से क्लास ली जाए और उससे पूछा जाये कि वह इतनी तेज गति से गाड़ी क्यों चला रहा था, और वो भी एकदम गलत दिशा में| उसकी इस गलती से उसे तो जेल की हवा खानी ही पड़ती, मगर हमारे घरों में तो सफेद चादरें बिछ जाती|
मैंने जैसे ही गुस्से से कार का दरवाज़ा खोला, मित्र ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया| इससे पहले कि ट्रैफिक जाम लगता उसने बड़े सलीके से अपनी गाड़ी बैक करके ट्रक को निकलने के लिए स्थान बना दिया और फिर ट्रक ड्राइवर से अत्यंत विनम्रता से पूछा, “क्या अब आपकी गाड़ी निकल जाएगी?” ट्रक ड्राइवर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी| वह चुपचाप अपना ट्रक निकाल कर चलता बना| जाते-जाते उसने मुस्कुराते हुए ऊँचे स्वर में कहा, “गुस्ताखी माफ़ सर|” और फिर फ़ौजी स्टाइल में एक हाथ से सैल्यूट करते हुए आगे निकल गया| हम लोग भी हंसते हुए अपने गंतव्य की ओर चल दिए| शायद ट्रक ड्राईवर को अपनी गलती का एहसास हो चूका था|