हिमाचल प्रदेश में विलुप्त होती दुर्लभ वनस्पति “बोझ पत्र” के संरक्षण और पुनरुद्धार की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, जाइका वानिकी परियोजना ने पहली बार राज्य में इस प्रजाति के 1500 पौधे सफलतापूर्वक रोपित किए हैं। यह प्रयास हिमालयन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, शिमला के सहयोग से किया गया है।
बोझ पत्र एक सांस्कृतिक और औषधीय महत्व की दुर्लभ प्रजाति है, जो प्राकृतिक रूप से अब बहुत कम देखी जाती है। इसके संरक्षण के लिए विशेष रूप से नर्सरी तैयार की गई और किन्नौर जिले के तरांडा, निगुलसरी और जानी क्षेत्रों में 500-500 पौधे रोपित किए गए।
इस पहल को ग्रामीण समुदाय से भी जोड़ते हुए, वन परिक्षेत्र निचार स्थित भावानगर में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें ग्रामीणों को बोझ पत्र के संरक्षण, रोपण और उपयोगिता पर विस्तृत जानकारी दी गई। कार्यशाला में हिमालयन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रभारी डॉ. संदीप शर्मा, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पितांबर नेगी और तकनीकी अधिकारी ज्वाला सिंह ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रशिक्षण प्रदान किया।
जड़ी-बूटी सैल के निदेशक डॉ. एस.के. काप्टा ने जानकारी दी कि यह पहल केवल शुरुआत है। परियोजना का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश के अन्य प्राकृतिक स्थलों जैसे स्पीति और कुल्लू में भी इस प्रजाति को पुनर्जीवित करना है। अगले चरण में 30,000 बोझ पत्र पौधे रोपित करने का लक्ष्य रखा गया है।
इस महत्वपूर्ण कदम से हिमाचल की जैव विविधता संरक्षण की दिशा में न केवल एक नया अध्याय जुड़ा है, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी वन संरक्षण और जैविक खेती से जोड़ने की कोशिश की गई है।