भीम सिंह, गांव देहरा हटवाड़, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश
सपने सुनहरे देखकर
जो सो गया था रात को
सुबह वह उठ नहीं पाया
ले चले शमशान घाट को ।
यह जीवन की सच्चाई है
यहां कोई बाप न भाई है
हर एक के सिर पर हर पल
मौत ले रही अँगड़ाई है।
मोह-माया ने मन बुद्धि पर
मगर घेरा ऐसा डाला है
जीव ही यहां जीव को
बना रहा अपना निवाला है।
जिन्दगी भर पेट के लिए
जीव क्या कुछ नहीं करता
मगर ऐसी लीला भगवान की
यह कभी नहीं भरता ।
भटका है मन भटका है
इस दुनिया में आठों पहर
मौत सबको खा रही
गांव हो या कोई शहर ।
I have read Behti Nadiya, Pedo k Jhurmut and now Jeevan ki Sacchai they are all outstanding poems by the poet. 👏👏👏