July 17, 2025

काल अष्टमी: शिव ने किया ब्रह्मा का अहंकार भंग – डॉ. कमल के. प्यासा

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डॉ. कमल के. प्यासा – मंडी

शिव पुराण व स्कंद पुराण में एक कथा आती है जिसमें काल भैरव की उत्पति की जानकारी मिलती है।कहते हैं कि एक बार सृष्टि के निर्माता देव ब्रह्मा, पालक देव विष्णु व संहारक देव महेश में आपसी तकरार होने लगा, जिसमें तीनों अपने आप को एक दूजे से श्रेष्ठ होने का दावा करने लगे। जब कि शिव पुराण से हमें पता चलता है कि देव सदा शिव व आदि शक्ति ( सदा शिव द्वारा जनित) द्वारा ही तीनों देवों की उत्पति हुई थी। इसी तरह का कुछ मिलता जुलता विवरण ब्रह्म वैवर्त पुराण में भी मिलता है। इसके साथ ही साथ इन तीनों देवों के अवतरण में मुख्य भूमिका तो भगवान श्री कृष्ण की ही बताई जाती है। भगवान विष्णु ब्रह्मा से ये भी स्पष्ट करते हैं कि वह तो उनकी नाभि से ही प्रकट हुए हैं, इसलिए वही उनके जन्मदाता भी हैं।

इस तरह से तीनों देवों में यह मत भेद बढ़ता ही गया। अंत में इस आपसी तकरार को समाप्त करने के लिए देव लोक के सभी ऋषि मुनि और देवता एकत्र हो कर समस्या का निदान करते हुए उन्होंने भगवान शिव को सबसे ऊपर बता कर अपना निर्णय दे दिया। देवताओं के इस निर्णय को सब ने एक मत से स्वीकार कर लिया, लेकिन देव ब्रह्मा इसके लिए आना कानी करते हुए, देव शिव पर बरस पड़े और उन्हें गुस्से में कुछ अपशब्द कहने लगे, जिस पर देव शिव भी आग बबूला हो कर देव ब्रह्मा पर काल भैरव रूप (जिसे कालेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है) धारण करके टूट पड़े और उनके पांच सिरों में से एक सिर को ही काट डाला। उस समय देव शिव के उग्र रूप को देखकर सभी उपस्थित देवता व ऋषि मुनि डर गए थे। जिस दिन देव शिव उस रुद्र रूप में आए थे, उस दिन मार्ग शीर्ष की अष्टमी थी और इसलिए इसे काल अष्टमी के नाम से जाना जाता है। आगे देव शिव को, इसी ब्रह्म हत्या के दोष के लिए (दंड के रूप में काल भैरव को) कई तीर्थों का भ्रमण भी करना पड़ा था तथा देव ब्रह्मा ने भी अपनी भूल के लिए क्षमा मांग ली थी। अंत में काल भैरव (भगवान शिव) भी अपने वास्तविक शिव के रूप में आकर वाराणसी में जन पालक की तरह वहीं काल भैरव देव शिव के संरक्षक रूप में स्थापित हो गए। आज भी काशी में काल भैरव काशी के कौतवाल के नाम से जाने जाते हैं। जो भी श्रद्धालु काशी जाता है वह पहले काशी विश्वनाथ (शिव भगवान) के दर्शन करता और बाद मे काल भैरव के मंदिर जाता है।

हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल अष्टमी कहते हैं और काल भैरव भी इसी दिन ही प्रकट हुए थे। तभी तो इनके लिए यह व्रत रखा जाता है और पूजा अर्चना की जाती है। नारद पुराण के अनुसार काल भैरव की आराधना से सभी प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं और पुराने से पुराने रोगों से मुक्ति मिलती है तथा सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।

काल अष्टमी की पूजा अर्चना के लिए सबसे पहले स्नान आदि करके, भगवान शिव पार्वती के चित्रों के साथ ही साथ काल भैरव का चित्र स्थापित करके गंगाजल के छिड़काव के साथ गुलाब के फूलों व हारों से श्रृंगार किया जाता है, कुमकुम हल्दी से टीका लगा कर, गुगल धूप के साथ शिव चालीसा व भैरव चालीसा का पाठ किया जाता है। चढ़ावे में काल भैरव को कच्चा दूध,कहीं कहीं शराब ,हलवा पूरी, जलेबी या अन्य पांच प्रकार की मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। जाप में ॐ उन्मत भैरवाय नमः का जाप किया जाता है। व्रत के पश्चात काले कुत्ते को मीठी रोटी के साथ कच्चा दूध पिलाया जाता है। अर्ध रात्रि को भी काल भैरव का पूजन धूप, उड़द की दाल, काले तिल तथा सरसों के तेल के साथ करके ,दान किया जाता है साथ ही भजन कीर्तन का आयोजन भी रहता है। इन्हीं सभी बातों के साथ ही साथ काल भैरव के कुछ एक मंत्रों का भी उच्चारण किया जाता है, जैसे कि :

ॐ काल भैरवाय नमः।

ॐ भयहरम्ण च भैरव- आदि आदि।

दान का इस दिन बहुत महत्व रहता है, इसलिए इस दिन कच्चे दूध, काले तिल, वस्त्रों, कंबलों, सरसों का तेल, तले हुए पकवान, घी, कांसे के बर्तन और जूते आदि व कुत्तों को मीठी रोटी, गाय को भोजन व रोटी देने का अपना ही महत्व रहता है।

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