हिंदू चिंतन के अनुसार सृष्टि का निर्माण त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु व महेश द्वारा किया माना जाता है। जिसमें देव ब्रह्मा को सृष्टि का निर्माता, भगवान विष्णु को पालन हार (देख रेख करता) व देव महेश को सारी सृष्टि का संहार करता कहा जाता है। शिव पुराण के अनुसार देव सदा शिव व (उन्हीं द्वारा रचित ) आदि शक्ति (मां दुर्गा) के मिलन से ही इन तीनों देवों की उत्पति बताई गई है। वहीं ब्रम्ह वैवर्त पुराण के में, भगवान श्री कृष्ण को ही त्रिदेव के अवतरण का मुख्य स्रोत बताया गया है। इतनी बड़ी सृष्टि से संबंध रखने वाले इन तीनों (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) देवताओं का आपस में किसी बात पर तार्किक विवाद होने लगता है और तीनों ही अपने आप को एक दूसरे से श्रेष्ठ व बड़ा बताने लगते हैं। देव ब्रह्मा अपने आप को सृष्टि का निर्माता होने के कारण अपना तर्क रखते हैं, जब कि भगवान विष्णु देव ब्रह्मा की उत्पति को अपनी नाभि से बता कर, अपने आप को उसका जन्मदाता होने का तर्क रखते हैं।
विवाद इस तरह से बढ़ने लगता है, जिस पर बाद में सभी देवी देवताओं की एक बैठक में बात को रखा जाता है। देवी देवताओं ने विचार विमर्श के पश्चात सर्वसम्मति से देव शिव को सबसे महान व बड़ा बता कर विवाद को खत्म कर दिया, जिसे भगवान विष्णु सहित सभी देवताओं ने कबूल कर लिया, लेकिन देव ब्रह्मा को इस निर्णय से भगवान शिव के प्रति ईर्षा होने लगी, फलस्वरूप देव ब्रह्मा भगवान शिव के प्रति बुरा भला कहने लगे।जिस पर भगवान शिव को क्रोध आ गया और उनसे नहीं रहा गया, तो उन्होंने अपने तेज से काल भैरव की उत्पति कर दी। उसी उग्र दंडधारी काल भैरव ने आवेश में आ कर देव ब्रह्मा का यह सिर ही काट दिया। जिस पर देव ब्रह्मा को अपनी गलती का अहसास हो गया और फिर वह भगवान शिव से क्षमा याचना करने लगे।
शिव भोले ने देव ब्रह्मा को क्षमा कर दिया, लेकिन काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष लग चुका था इस लिए उसे इस दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव ने उसे समस्त तीर्थों का भ्रमण करने को कहा। भगवान शिव के कहे अनुसार काल भैरव तीर्थों का भ्रमण करते करते काशी पहुंच गया जहां उसे ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिल गई। काल भैरव का मंदिर आज भी काशी में देखा जा सकता है।काशी विश्वा नाथ (भगवान शिव) के दर्शनों के पश्चात ही लोग काल भैरव (महाकाल) मंदिर के दर्शनों के लिए जाते हैं और काल भैरव को वहां पर काशी के कौतवाल के नाम से जाना जाता है, क्योंकि काशी की रक्षा और देखभाल का जिम्मा इन्हीं के सपुर्द है।
काल भैरव की पूजा अर्चना से सभी तरह दुःख दर्द, डर और आने वाली मुसीबतें दूर होती हैं। शत्रुओं पर विजय पाने, किसी भी तरह के रोग आदि से मुक्ति व ग्रहों से भी छुटकारा मिल जाता है। काल भैरव की पूजा अर्चना में धूप, काले तिल, दीपक, उड़द व सरसों के तेल आदि के साथ ही काले कुत्ते को मीठी रोटी डाली जाती है। क्योंकि काल भैरव का अवतरण कृष्ण पक्ष के अष्टमी वाले दिन हुआ था इस लिए दूसरे दिन काल अष्टमी मनाई जाती है। काल अष्टमी की पूजा अर्चना से पूर्व सुबह स्नान आदि से निवृत हो कर गंगा जल से शुद्धि कर लेनी चाहिए। इसके पश्चात किसी साफ सुथरे पटड़े पर काल भैरव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करना चाहिए।प्रतिमा को सफेद चंदन से तिलक करके काल भैरव का अष्टक पाठ करना होता है।ये पूजा सूर्य अस्त के पश्चात ही की जाती है। रात्रि के समय जागरण, भजन कीर्तन व अगले दिन पूजा के पश्चात व्रत खोला जाता है।