
बात बहुत ही पुरानी है शायद 18 वीं शताब्दी के शुरू की ,जिस समय दिल्ली में मुगल शासक फर्रूखसियर शासन कर रहा था। तभी 1710 ईस्वी में कश्मीर के कौल परिवार के राज नारायण कौल द्वारा “तारीखी कश्मीर” नामक पुस्तक लिखी गई।पुस्तक में कश्मीर की सुंदरता के संबंध में बहुत कुछ सुन्दर शब्दों में विस्तार से चर्चा की गई थी । इसी पुस्तक व इसके लेखक के संबंध में जब दिल्ली के शासक फर्रूखसियर को पता चला तो उसने लेखक राजनारयण कौल की योग्यता को देखते हुवे उसे अपने दिल्ली दरबार में बुला लिया।और उसे रहने के लिए दिल्ली के चांदनी चौक में हवेली भी दे दी,जो कि एक नहर के नजदीक पड़ती थी । उसी क्षेत्र में बहुत से दूसरे कश्मीरी कौल भी निवास करते थे।राज नारायण के कौल परिवार को विशेष पहचान देने लिए ही उन्हें (नहर के नजदीक रहने के कारण ही) नेहरू कहा जाने लगा और यहीं से राज नारायण कौल का परिवार नेहरू कहलाने लगा था।
राजनारायण का समस्त परिवार अच्छा पढ़ा लिखा ( विद्वान शिक्षाविद् )परिवार था।इनके (राजनारायण के ) आगे पौते मौसा राम व साहिब राम कौल हुवे थे।जिनमें मौसा राम कौल के बेटे, लक्ष्मी नारायण कौल मुगल दरबार के जाने माने वकील थे। इन्हीं लक्ष्मी नारायण के बेटे गंगा धर कौल, जो कि 1857 में हुवे विद्रोह के समय तक दिल्ली में कोतवाल के पद पर कार्यरत थे।लेकिन जब उस हुवे विद्रोह में भारी खून खराबा हुआ था तो अंग्रेजों ने कोतवाल गंगा धर को दोषी ठहराते हुए (बदले की भावना से )उसे नौकरी से ही निकल दिया था।इस तरह गंगाधर अपने परिवार के साथ ,किसी तरह भाग कर आगरा पहुंचे थे।जिसमें गंगा धर के पांच बच्चे (दो बेटियां पटरानी व महारानी, तीन बेटे बंसी धर,नंद लाल व मोती लाल थे।)व पत्नी इंद्राणी शामिल थी। आगरा में ही गंगा धर कौल की मृत्यु 1861 में उस समय हुई जब कि मोती लाल अभी पैदा भी नहीं हुआ था।पिता की मृत्यु के तीन मास बाद ही मोती लाल कौल(पंडित जवाहर लाल नेहरू के पिता)का जन्म आगरा में हुआ था।
इस तरह कोतवाल गंगा धर का बड़ा बेटा बंसी धर कुछ समय सबोर्डिनेट जज के रूप में कार्यरत रहा,मंझला नंदलाल पहले अध्यापक के पद पर रहा बाद में आगरा के समीप की छोटी सी रियासत, खेतड़ी में दीवान का काम करता रहा ।इसके पश्चात दोनों भाईयों ने कानून की शिक्षा प्राप्त करके , अपनी प्रैक्टिस कानपुर व फिर इलाहाबाद में शुरू कर दी थी ।साथ ही अपने छोटे भाई मोती लाल की पढ़ाई का भी पूरा पूरा ध्यान रखा और उसे भी 1883 ईस्वी में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से कानून की शिक्षा दिला कर प्रैक्टिस शुरू करवा दी थी।तीनों भाइयों की प्रैक्टिस इलाहाबाद में खूब चल पड़ी थी और फिर तीनों ही इलाहाबाद के आनंद भवन में रहने लगे थे।
इलाहाबाद के आनंद भवन में ही पंडित जवाहरलाल लाल का जन्म माता श्रीमती स्वरूप रानी व पिता पंडित मोती लाल नेहरू के यहां 14 नवंबर 1889 को हुआ था।सभी सुख सुविधाओं के रहते इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी।बाद की दो साल की स्कूली शिक्षा हैरो से व उच्च शिक्षा कैंब्रिज यूनिवर्सिटी इंग्लैंड से( प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक व कानून की शिक्षा )लेने के पश्चात वर्ष 1912 में वापिस अपने देश भारत आ गए।
क्योंकि विदेश में रहते हुए इन्हें अपने देश की स्वतंत्रता के प्रति विशेष चिंता लगी रहती थी ,इसी लिए यहां पहुंच कर स्वतंत्रता आंदोलनों में विशेष रुचि लेने लगे थे।वर्ष 1916 में जब महात्मा गांधी जी से मिले तो उनके विचारों से बहुत प्रभावित हुवे और बाद में उन्हीं के निर्देशों का पालन करने लगे और खादी के कपड़ों का प्रयोग भी करने लगे थे ।इसी वर्ष इनकी शादी भी (कमला नेहरू से)हो गई थी और बेटी के रूप में इंदिरा प्रियदर्शिनी का जन्म वर्ष 1917 में हुआ था।पंडित जी के सामाजिक कार्यों को देखते हुवे, वर्ष 1919 में इन्हें इलाहाबाद का होम सचिव बना दिया गया था।इसी की प्रेरणा से ही वर्ष 1920 में इन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रताप गढ़ में किसानों के एक आंदोलन का सफल आयोजन भी किया था।फिर गांधी जी के साथ वर्ष 1920 _1922 के असहयोग आन्दोलन में भाग लेते हुए दो बार जेल भी गए थे ।पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यों को देखते हुवे ही इन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महा सचिव बना दिया गया था।
वर्ष 1924 में मास्को ( अक्टूबर समाजवादी क्रांति ) की 10 वीं वर्ष गांठ के उपलक्ष में भाग लेने वहां भी ठीक ठाक पहुंचे थे।फुर्तीले चुस्तदरुत होने के कारण ही वर्ष 1926 में इटली , स्विट्जरलैंड,इंग्लैंड,बेल्जियम,जर्मनी व रूस का भ्रमण भी करने में सफल रहे थे।इस तरह से वर्ष 1928 में लखनऊ में जब साइमन कमीशन के विरोध में जलूस निकाल रहे थे तो पंडित जी को लाठियां खानी पड़ी थीं ।वर्ष 1929 में लाहौर के भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन में पंडित जी को अध्यक्ष बनाया गया था ताकि देश को पूर्ण रूप से स्वतंत्र कराया जा सके।वर्ष 1930_1935 के नमक आंदौलन के समय भी गांधी जी के साथ रह कर कई बार जेल गए।एक ओर पत्नी की बीमारी के कारण पंडित जी को स्विट्जरलैंड जाना पड़ा था ,इसके साथ ही देश की स्वतंत्रता के लिए फरवरी मार्च 1936 में लंदन की यात्रा पर जाने से खुद को नहीं रोक पाए।पंडित जी की यात्राएं ऐसे ही चलती रहीं।1938 में जब स्पेन में गृह युद्ध चला हुआ था तो भी इन्हें वहां जाना पड़ा था।
लेकिन दूसरे विश्व युद्ध से पूर्व ,युद्ध में भाग न लेने का विरोध करने पर इनके द्वारा गांधी जी के साथ मिल कर सत्याग्रह में भाग लेने के कारण 31 अक्टूबर 1940 को इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।इस तरह से 7 अगस्त 1942 को भी भारत छोड़ो आन्दोलन की तैयारी के सिलसिले में भी, इन्हें व इनके सभी साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया था।लेकिन पंडित जी फिर भी लगन के साथ अपने उद्देश्य की प्राप्ति में डटे रहे थे और 1946 में दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा कर आए। 6जुलाई 1946 को पंडित जी को चौथी बार फिर से कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। 15 अगस्त ,1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात महात्मा गांधी की इच्छानुसार पंडित जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधान मंत्री बने तो,उस समय भारत की लगभग 500 रियासतों पर राजाओं का ही अधिकार था।इन सभी रियासतों को स्वतंत्र भारत में शामिल करने के लिए सभी राजाओं को (लोहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से )मना कर गणतंत्र भारत का सपना साकार हुआ था।
प्रथम प्रधान मंत्री की हैसियत से पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी नीति में सैकुलर तथा लिबरल अप्रोच पर विशेष ध्यान दिया।वर्ष 1951 से पंच वर्षीय योजनाओं को लागू करके विज्ञान,तकनीकी व औद्योगिकी को बढ़ावा देने,सामाजिक सुधार ,शिक्षा व बच्चों के लिए भोजन की व्यवस्था के साथ ही साथ महिलाओं के लिए कानूनी सहायता प्रदान करनाऔर जाति पाती के अंतर को खत्म करने को बढ़ावा दिया था।वर्ष 1954 में बनाए जाने वाले विश्व के प्रथम सबसे बड़े भाखड़ा नंगल बांध के निर्माण का श्रेय भी पंडित जवाहर लाल जी को ही जाता है। इतना ही नहीं पंच शील के सिद्धांत पर देश को गुटनिरपेक्ष बनाए रखना भी तो उन्हीं की देन थी।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने समय में कई एक राष्ट्रों की आंतरिक समस्याओं को समझते हुवे उनका निदान भी किया था ।जिनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार से हैं:
एशिया व अफ्रीका के उपनिवेशों के विरुद्ध गुटनिरपेक्ष आंदोलन करना।
कोरिया के युद्ध को खत्म करवाना।
स्वेज नहर के विवाद को खत्म करवाना।
कांगो समझौता।व
पश्चिम के बर्लिन,ऑस्ट्रिया व लाओस के मामले आदि ।
1955 में भारत रत्न से सम्मानित पंडित जवाहर लाल नेहरू एक अच्छे साहित्यकार और लेखक भी थे।उन्होंने अपनी जेल यात्रा के मध्य कई एक पुस्तकों की रचना की थी,जो कि इस प्रकार से हैं:
भारत एक खोज।
पिता के पत्र पुत्री के नाम।
विश्व इतिहास की झलक।
मेरी कहानी।
भारत की खोज।व
राजनीति से दूर आदि।
बच्चों से विशेष स्नेह के कारण ही सभी बच्चे उन्हें चाचा कह कर संबोधित करते थे।तभी तो ऐसे महान व्यक्तित्व का जन्म दिन विशेष रूप से आए वर्ष बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। 27 मई 1964 के दिन हृदयघात से अचानक बच्चों के प्यारे चाचा पंडित जी इस संसार से विदा हो गए। उस महान व्यक्तित्व को मेरा शत शत नमन।