रमेश आज अत्यंत प्रसन्न था, होता भी क्यों न, लम्बे समय के बाद उसे मित्रों संग मां वैष्णो के दरबार में जाने का अवसर मिला था| रमेश को बस में बैठकर सोना कतई पसंद नहीं था| अतः वह खिड़की वाली सीट लेकर प्रकृति की सुंदरता को निहारत हुए अपने मोबाइल में कैद करने लगा| एक स्थान पर यात्रियों को भोजन करवाने हेतु बस को रोका गया, जब वह वापस बस में आया तो उसने देखा उसका एक अन्य मित्र राहुल खिड़की वाली सीट पर बैठ गया था| उसे बहुत बुरा लगा उसने अपने मित्र से आग्रह किया कि उसे खिड़की वाली सीट पर ही बैठना है| उसके मित्र ने तुरंत वह सीट खाली कर दी, रमेश के चेहरे पर एक बार फिर रोनक आ गई, और वह दुबारा मोबाइल निकाल कर प्रकृति के अनमोल चित्र लेने लगा|
कुछ समय बाद रमेश ने नोट किया कि उसका मित्र भी लगातार खिड़की से बाहर देख रहा था और यदा-कदा अपने मोबाइल से कुछ तस्वीरें भी खींच रहा था| कुछ समय बाद, शाम की चाय के लिए बस को एक बार फिर रोका गया| मित्र लोग देश और प्रदेश के हालात और वर्तमान समय की राजनीति पर चर्चा कर रहे थे कि कैसे हमारे देश के कर्णधारों का स्तर किस स्तर तक गिर गया है, सबके सब अपना घर भरने के बारे में ही सोचते हैं, देश के बारे में तो कोई सोचता ही नहीं है| सबके लिए अपना हित पहले है| अपने अत्यधिक जागरूक समझने वाले रमेश ने तुरंत प्रतिक्रिया दी, “ बेचारे नेता लोग भी क्या करेंगे, दरअसल, आज का इंसान बहुत ही स्वार्थी हो गया है वह सिर्फ अपनी सुख सुविधा देखता है दूसरों के बारे में तो सोचता ही नहीं है|
” रमेश की इस बात पर राहुल ने चुटकी लेते हुए कहा, “सही है,बिल्कुल सही कह रहे हो| देखो ये ऐसे है जैसे हम में से प्रत्येक व्यक्ति खिड़की वाली सीट ही लेना चाहता है परंतु वह भूल जाता है कि जैसे उसे बाहर की स्वच्छ हवा अच्छी लगती है, प्रकृति के नजारे अच्छे लगते हैं, वैसे ही दूसरे व्यक्ति को भी इन सब चीजों की चाहत हो सकती है यह हमारी मानसिक स्थिति है जो जीवन के हर क्षेत्र में लागू होती है|” रमेश को काटो तो खून नहीं, वह चुपचाप उठा और बस में आकर बैठ गया| मगर इस बार खिड़की वाली सीट उसने अपने मित्र राहुल के लिए पहले ही छोड़ दी थी|