दीप्ति सारस्वत प्रतिमा, प्रवक्ता हिंदी, रा .व. मा. विद्यालय, बसंतपुर, शिमला
उसकी नाक से लगातार खून बह रहा है चोट के दर्द से कम मगर दिल की तड़प की वजह से अधिक उसके आंसू हैं कि रुकने का नाम नहीं ले रहे बिल्कुल नाक से बहने वाले खून की तरह फिर – फिर साफ़ करने पर फिर फिर निशब्द बहे चले आ रहे हैं ।
उसके दिमाग मे अचानक भूत काल भूत सा चक्कर काटने लगता है और आंसुओं से धुंधलाई आंखों के सामने वह दिन दिखने लगता है जब उसका गोलू मोलू प्यारा सा बेटा नर्सरी में था…”पापा मैम ने मुझको नोटबुक में स्टार नहीं दिया ।”
स्कूल से आ कर बैग पटकते हुए उसने मुंह फुला कर उदास होते हुए कहा था । अच्छा ! कल भी न दें तो तू उनकी नाक पर घूंसा मार दियो । पिता ने बेटे से लाड़ लड़ाते हुए कहा था और वह उनकी इस अदा पर खिलखिला दी थी । अगले दिन सच्ची में वह मैडम की नाक पर एक जोरदार घूंसा जड़ आया था । पूरे घर भर में यह हैरत खुशी और तृप्ति का विषय था ।
हर बार; जब जब घर में कोई मेहमान आता बेटे की ऐसी बातें ख़ूब चटखारे ले कर बताई जातीं । बेटा ख़ूब लाड़ प्यार पा रहा था । जब जिसको चाहे लात घूंसे झापड़ मर्ज़ी से टिका देता । मुहल्ले में किसी को पीट आये तब तो घर भर गर्व से फूला न समाता। लड़का पढ़ाई में होशियार है दबंग है यानि जीवन में सफल है…
आज उसका जन्मदिन है कोरोना का समय है एहतियातन बाहर की चीज़ें न मंगवा कर माँ ने घर में ही केक बना दिया है जो बाजार जैसा सुंदर तो कतई नहीं है हैप्पी बर्थडे के जवाब में मां उसके ज़ोरदार घूंसे से अपनी नाक तुड़वा बैठी है … घर के बुज़ुर्ग उसको समझा रहे छोरे में जवानी का जोश है, मालूम तो है बचपन से ही गुस्सैल है तो काहे उसके सामने उल्टे सीधे काम करती हो।
जब मालूम था कि उसको खास बेकरी का ही केक पसंद है तो काहे नहीं मंगवा लिया, बताओ जन्मदिन वाले दिन भी बेटे का मूड ऑफ कर दिया ।