लाल बहादुर शास्त्री जयंती – डॉ. कमल के. प्यासा

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डॉ. कमल के. प्यासा – मण्डी

2 अक्टूबर का दिन दो महान हस्तियों की जयंती का दिन है, अर्थात इस दिन राष्ट्र पिता महात्मा गांधी व देश के द्वितीय प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती बड़ी ही धूम धाम के साथ मनाई जाती है। दोनों ही सीधे सादे, सत्य और अहिंसा के पुजारी, गरीबों के मसीहा और सच्चे क्रांतिकारी व पक्के देश भक्त थे।

अपने इस आलेख में स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी की चर्चा करने जा रहा हूं। जिनका जन्म दो अक्टूबर के दिन माता राम दुलारी व पिता शरद प्रसाद श्रीवास्तव के यहां बनारस के निकट मुगल सराय नामक स्थान में वर्ष 1904 को हुआ था। पिता शरद प्रसाद श्रीवास्तव पाठशाला में अध्यापक के रूप में कार्यरत थे। लेकिन बालक लाल बहादुर जब मात्र डेढ़ बरस का ही था तो उनके पिता चल बसे। पिता के इस तरह से चले जाने के पश्चात बालक लाल बहादुर, जिसे घर पर नन्हें कह कर संबोधित करते थे, अपनी माता व भाईयों के साथ अपने ननिहाल चले गए। जब पाठशाला जाने के योग्य हुए तो अपनी पढ़ाई के लिए बनारस में अपने चाचा के यहां आ गए। क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए बालक लाल बहादुर (नन्हें) नंगे पांव ही पाठशाला जाया करते थे और गांधी जी के भाषण सुनने में बहुत रुचि रखते थे जब कि उस समय उनकी आयु यही कोई 10 ,11 बरस की ही थी। बाद में तो नन्हें गांधी जी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने का मन ही बना लिया और 16 वर्ष की आयु में महात्मा गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में भी शामिल हो गए थे। जब की उनके घर वाले अपनी आर्थिक स्थिति के कारण ऐसा नहीं चाहते थे, पर नन्हें कहां मानने वाले थे।

किसी तरह काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि ले कर पढ़ाई छोड़ने का निर्णय कर लिया, जब कि सभी घर वाले इस तरह पढ़ाई छोड़ने की विरुद्ध थे। 1927 में शास्त्री जी का विवाह मिर्जापुर की रहने वाली लड़की ललिता से बड़ी ही सादगी के साथ करा दिया गया।

1930 में जिस समय महात्मा गांधी जी द्वारा नमक के टैक्स के विरुद्ध डांडी यात्रा आंदोलन शुरू किया तो लाल बहादुर शास्त्री जी भी उसमें शामिल हो गए। बाद में लगातार गांधी जी के साथ कई एक विद्रोही गतिविधियों में शामिल होते रहे, जिनके फलस्वरूप शास्त्री जी को लगभग सात वर्षों तक जेल में रहना पड़ा था। शास्त्री जी की क्रांतिकारी व सामाजिक गतिविधियों को देखते हुए वर्ष 1946 में कांग्रेस सरकार द्वारा उन्हें उत्तर प्रदेश के लिए संसदीय सचिव नियुक्त कर दिया गया था। फिर शीघ्र बाद ही उन्हें गृहमंत्री नियुक्त कर दिया गया था। वर्ष 1951 में केद्रीमंत्री मंडल में रहते हुए उन्होंने कई एक विभागों का प्रभारी भी बनाया गया था, जिनमें रेल मंत्री, परिवहन व संचार मंत्री, वाणिज्य व उद्योग मंत्री, गृह मंत्री के साथ ही साथ जिस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू कुछ अस्वस्थ अनुभव कर रहे थे तो तब उन्हें बिना विभाग के मंत्री भी बनाया गया था। रेल मंत्री रहते हुए जब बड़ी रेल दुर्घटना हो गई थी तो शास्त्री जी ने नैतिकता के आधार पर खुद ही अपना इस्तीफा दे दिया था। लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू तो शास्त्री जी के स्वभाव व योग्यता से भली भांति परिचित थे, इसलिए उस समय पंडित जी ने शास्त्री जी की तारीफ में उन्हें बड़े ही विनम्र, दृढ़, सहिष्णु व जबरदस्त आंतरिक शक्ति वाला व्यक्तित्व बताया था।

शास्त्री जी अपनी लगातार 30 वर्षों की समर्पित व निष्काम सेवा के फलस्वरूप ही जन जन में पहचाने गए थे। उनकी विनम्रता, सहनशीलता व पारखी शक्ति हर व्यक्ति को पहचान जाती थी, जिससे लोगों की आंतरिक भावनाओं की जानकारी उन्हें हो जाती थी। उन्होंने देश की प्रगति के लिया अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था, क्योंकि शास्त्री जी महात्मा गांधी जी की शिक्षाओं से पूरी तरह प्रभावित थे। उनके सभी कार्य सैद्धांतिक न हो कर , व्यवहारिक ही होते थे। उनके समय में खाद्यानों के मूल्यों में भारी गिरावट एक बड़ी मसाल थी। जय जवान जय किसान उनका दिया नारा ही नहीं बल्कि देश के जवानों व किसानों के लिए विशेष सम्मान था। फिर व्रत की शुरुआत व गमलों में खेती करवाना भी तो देश के लिए अन्न बचत की एक राहत ही तो, शास्त्री जी द्वारा दी गई थी।

1952, 1957 और फिर 1962 में कांग्रेस को बहुमत से विजय दिलाने में भी शास्त्री जी की विशेष भूमिका रही थी। जब 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में ,पाकिस्तान को बुरी तरह से पछाड़ने के लिए भी शास्त्री जी की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। पाकिस्तान को पछाड़ने के बाद भी शास्त्री जी को ताशकंद में अयूब खान के साथ समझौते के लिए प्रेरित किया गया और समझौते के बाद ही 11जनवरी 1966 की रात को ही ह्रदय गति रुक जाने से शास्त्री जी मृत्यु (रैहस्यम परिस्थितियों में) बताई गई। बाद में मरणोपरांत 1966 में शास्त्री जी को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनके देहावासन वाले दिन (11जनवरी) को स्मृति दिवस के रूप में याद किया जाता है।

शास्री जी को उनकी जयंती पर शत शत नमन।

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