प्रसिद्ध क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल का जन्म 3 दिसंबर, 1903 को माता प्रेम देवी व पिता हीरा लाल के यहां पंजाब के फिरोज पुर छावनी में हुआ था। पिता हीरा लाल खत्री, उस समय कांगड़ा जिले के अंतर्गत आने वाले हमीरपुर के भूम्पल गांव में दुकानदारी के साथ साथ तहसील स्तर के हरकारे का कार्य करते थे और रोजी रोटी के लिए उन्हें अक्सर घर से बाहर भी जाना पड़ता था। माता प्रेम देवी घर के कार्य के साथ स्कूल में अध्यापिका का कार्य भी करती थी। पिता हीरा लाल की आकस्मिक मृत्यु के पश्चात परिवार की देखभाल का सारा बोझ माता प्रेम देवी पर ही आ गया था, फलस्वरूप दोनों बेटों की देखभाल का जिम्मा इन्हीं (माता) पर आ गया था। इसी कारण घरेलू आर्थिक स्थिति को देखते हुए पढ़ाई के लिए यशपाल को हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी पाठशाला में पढ़ने को भेज दिया गया था। गुरुकुल कांगड़ी पाठशाला से देश भक्ति के ज्ञान के साथ ही साथ 7वीं तक की ही शिक्षा यशपाल प्राप्त कर पाए थे, क्योंकि बीमारी के कारण उन्हें बाद में फिरोजपुर व लाहौर से शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाना पड़ा था। गुरुकुल कांगड़ी पाठशाला से ही यशपाल में देश भक्ति की भावना व क्रांतिकारी विचारों की लौ प्रज्वलित हुई थी। क्योंकि यहीं पर उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों की कहानियों के साथ ही साथ उनके द्वारा किए जाने वाले हीन व्यवहारों के बारे में कई तरह की जानकारियां हासिल की थीं, जिनसे उनके अंदर अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की भावना पैदा हो गई थी।
लाहौर नेशनल कॉलेज में अपनी शिक्षा के मध्य ही, यशपाल का परिचय कॉलेज के अन्य साथियों के साथ ही साथ अपनी रुचि के साथियों में सरदार भगत सिंह, सुखदेव थापर भगवती चरण बोहरा से भी हो गया था। क्योंकि यशपाल की विचार धारा भी इन सभी मित्रों की समाजवादी व मार्क्सवादी विचारों से मेल खाती थी। इसके साथ ही साथ अब यशपाल बड़े बड़े नेताओं के भाषण भी सुनने लगे थे और फिर महात्मा गांधी जी के संपर्क में आने पर (वर्ष 1921 ,18 वर्ष की आयु में) उनके असहयोग आन्दोलन में शामिल हो कर उनके साथ जोरों से प्रचार प्रसार भी करने लगे थे, लेकिन जब महात्मा गांधी ने जब अपना आंदोलन वापिस ले लिया तो यशपाल व साथियों को (12 फरवरी, 1922) ठीक नहीं लगा और ये सभी गर्म दल के साथी, गांधी जी से अलग हो गए और इनके द्वारा हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (H S R A) का वर्ष 1928 में गठन किया गया, जिसके यशपाल भी सदस्य बन गए थे। इसके पश्चात लाहौर में ही वर्ष 1929 में H SR A के इनके कार्यालय में अंग्रेजों द्वारा छापा मारा गया जिसके साथ कई एक क्रांतिकारियों को भी पकड़ा गया। यशपाल अप्रैल, 1929 में छुपते छिपाते अपने गांव पहुंच गया। लेकिन गांव में भी जब कोई साथी नहीं मिला तो जून माह में फिर वापिस लाहौर पहुंच गया। यहां भी जब अपने साथियों का कुछ पता ठिकाना नहीं मिला तो, यशपाल खुद ही HSRA की संस्था का मुखिया बन गया और फिर वकील के वेश में, मिलने के लिए सरदार भगत सिंह के पास जेल में पहुंच गया और वहां से उसने साथियों के बारे जानकारी हासिल की। उधर दूसरा छापा HSRA संस्था की (सहारनपुर वाली) बम बनाने वाली जगह पर मारा गया और पकड़े जाने पर उसमें कुछ लोग मुखबिर भी बन गए।
23 सितंबर 1929 को योजना के अनुसार लार्ड इरविन को (खजाना लूटने के इरादे से) मांरने के लिए यशपाल द्वारा बम फेंका गया, लेकिन इरविन बच गया। इस पर सरदार भगत सिंह व सुखदेव को ग्रिफतार कर लिया गया, चंद्र शेखर आजाद मुठ भेड़ में गोली लगने से मारा गया। मुठ भेड़ में ही 1932 में यशपाल को भी, बाद में ग्रिफतार कर लिया गया और 14 साल की सजा सुनाई गई। बाद में संयुक्त प्रदेश में कांग्रेस के आ जाने से 6 वर्ष बाद ही, इन्हें अन्य कैदियों के साथ छोड़ दिया गया, लेकिन यशपाल के लिए पंजाब में जाने के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था। वर्ष 1936 में जेल में ही इनकी (यशपाल की) मुलाकात महिला क्रांतिकारी प्रकाश वती से हो गई जो कि बाद में 7 अगस्त, 1936 को जेल में ही शादी के बंधन में बदल गई। यशपाल ने अपनी सजा के दौरान, जेल में रहते हुए ही कई एक विदेशी भाषाएं सीख ली थीं तथा साहित्यिक लेखन की शुरुआत भी कर दी थी। बाद में जेल से छूटने के पश्चात तो इनके लेखन का कार्य खुल कर होने लगा था। कई जगह यशपाल द्वारा संपादक का कार्य भी किया ।कुछ समय कर्मयोगी में भी काम किया और फिर अपनी पत्रिका *विप्लव* भी निकालनी शुरू कर दी थी, लेकिन इनकी मार्क्सवादी विचार धारा होने के कारण अंग्रेजों की नजर इन्हीं पर रहने लगी थी, फलस्वरूप विप्लव को बाद में इन्हें बंद करना पड़ गया था। वर्ष 1941 में *विप्लव कार्यालय* प्रकाशन की स्थापना की गई। इन्हीं के द्वारा फिर वर्ष 1944 में साथी प्रेस नामक प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात फिर से विप्लव निकालनी शुरू कर दी थी। लेकिन फिर वहीं इनकी विचार धारा मार्क्सवादी होने के कारण इन्हें वर्ष 1949 में गिरफ्तार कर लिया गया और पत्रिका भी बंद कर दी गई। वर्ष 1941 में ही, “दादा कामरेड” व 1943 में “देश द्रोही” नामक इनकी पुस्तकें निकल चुकीं थीं। “आत्म कथा” व “सिंहावलोकन” वर्ष 1951 से 1955 तक तीन खंडों में निकल चुकी थीं। इसी तरह से इनकी मृत्यु (21 सितंबर 1976) से पूर्व तक इनके चार खंड निकल चुके थे। यशपाल जी की अनेकों विधाओं में प्रकाशित पुस्तकों का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है:
1. 16 कहानी संग्रह हैं, जिनमें पिंजड़े की उड़ान, ज्ञान दान, भस्मा वृत चिंगारी, फूलों का कुर्ता, धर्म युद्ध, तुमने क्यों कहा मैं सुन्दर हूं, उत्तमी की मां तथा चित्र का शीर्षक आदि।
2. उपन्यास 10 हैं, जिनमें : दादा कामरेड, झूठा सच:वतन देश, मेरी तेरी बात, देश द्रोही, मनुष्य के रूप, दिव्या, अमिता, बारह घंटे, अप्सरा का शाप व पार्टी कामरेड।
3.यात्रा वृतांत की 3 पुस्तकें हैं जिनमें : सिंहावलोकन, सेवाग्राम के दर्शन व नशे नशे की बात।
4.वैचारिक की केवल एक ही है : गांधीवाद की शवपृक्षा।
5.डायरी की भी एक ही है : मेरी जेल डायरी।
6.निबंध तथा व्यंग की 9 पुस्तकें हैं, जिनमें हैं : राम राज्य कथा, मार्क्सवाद, चक्कर क्लब, बात बात में बात, न्याय का संघर्ष, बीबी जी कहती हैं मेरा चेहरा रौबीला है, जग का, मैं और मेरा परिवेश और यशपाल का विप्लव।
इन सभी साहित्यिकी रचनाओं में खड़ी बोली के साथ देशज व विदेशी शब्दों के प्रयोग के साथ आम बोल चल की भाषा के शब्दों का प्रयोग देखा जा सकता है, जिनसे सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक व्यवहारिक गतिविधियों के साथ रूढ़ियों तथा अंधविश्वासों की चर्चा मार्क्सवादी दृष्टि से की गई है। जिनसे हमें यशपाल के प्रगतिशील विचारों की जानकारी भी मिल जाती है।
अपने इस अथाह साहित्य की विभिन्न विधाओं द्वारा समाज को जागृत करने व देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानी साहित्यकार यशपाल को मिलने वाले सम्मानों में शामिल हैं:
1.पद्म भूषण सम्मान वर्ष 1970
2.साहित्य अकादमी सम्मान वर्ष 1976
3.मंगल प्रसाद पुरस्कार वर्ष 1971
4.सोवियत नेहरू पुरस्कार वर्ष 1970
5.देव पुरस्कार वर्ष 1955, शामिल हैं।
क्रांतिकारी साहित्यकार वीर यशपाल को उनकी पावन जयंती पर मेरा शत शत नमन।






