डॉ. कमल के. प्यासा
भगवान विष्णु के 8वें अवतार भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म द्वापर युग के भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को, रोहणी नक्षत्र में माता देवकी व पिता वासुदेव के यहां 8 वें पुत्र के रूप में मथुरा के कारावास में, रात्रि 12 बजे हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पिता वासुदेव का विवाह मथुरा के राजा कंस के बहन देवकी से हुआ था। बहन की विदाई के समय जब कंस को यह जानकारी मिली कि देवकी का आठवां पुत्र उसको (कंस) मारेगा, जिस पर कंस ने देवकी और वासुदेव को कारावास में डाल दिया था, ताकि देवकी की होने वाली संतान को वह मार सके। उसने देवकी के 7 बच्चों को इसीलिए मार डाला था। आठवां बच्चा, भगवान कृष्ण, जब रात को पैदा हुआ तो वासुदेव उसे चुपके चुपके सूप में डाल कर यमुना के उस पार माता यशोदा व पिता नंद के यहां छोड़ आए थे।
यह सारी घटना दैविक चमत्कार से ही घटित हुई और कंस को इसकी भनक तक नहीं हुई। बाद में पूतना को चाहे कंस ने उस समय पैदा हुए बच्चों को खतम करने को भेजा तो जरूर था, लेकिन भगवान कृष्ण भी तो सर्वगुण संपन्न जानी जान थे और उन्होंने राक्षसी पूतना को ही मार डाला था। इसके साथ ही साथ भगवान श्री कृष्ण ने राक्षस शकरासुर व तृणावर्त का भी वध कर डाला था। बाद में श्री कृष्ण गोकुल छोड़ कर नंद गांव आ गए थे और कई प्रकार की अपनी लीलाओं द्वारा ग्वाल बालों, गायों व गोपियों में प्रसिद्ध हो गए थे। इनकी लीलाओं में गोचारण लीला, गोवर्धन पर्वत लीला, रास लीला व गोपियों के कपड़ों को उठाने की लीला आदि आ जाती हैं। कुछ समय के पश्चात मथुरा पहुंच कर भगवान श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध करके तथा सभी बंदियों को मुक्त करवा कर आम जनता को राहत दिलाई थी। बाद में द्वारिका नगरी का निर्माण करवा कर, वही अपने राज्य की स्थापना कर दी थी।
अनेकों नामों से जाने जाने वाले भगवान श्री कृष्ण बचपन से ही सर्वगुण संपन्न व दैविक शक्तियों से परिपूर्ण थे। इतना ही नहीं वह तो निष्काम कर्मयोगी, दार्शनिक व स्थितप्रज्ञ जैसे महापुरुष भी थे। महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन युद्ध से पीछे हटने लगा था तो उस समय अर्जुन को गीता ज्ञान दे कर धर्म युद्ध लड़ने के लिए कृष्ण जी ने ही तैयार किया था। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के गुरु होने के साथ ही साथ सारथी की भूमिका भी खुद निभाई थी।
मधुर बांसुरी वादक व 64 दिव्य गुणों से परिपूर्ण भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ समस्त भारत में कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाना उनकी दार्शनिकता व दैविक चमत्कारी ज्ञान को ही उजागर करता है। तभी तो इस दिन सभी जगह, हाट बाजार, गली मोहल्ले और धार्मिक स्थल (मंदिर) आदि सभी सुंदर ढंग से रोशनियों से सुसज्जित रहते हैं। मंदिरों में भजन कीर्तन के साथ ही साथ रास लीलाओं, भागवत पाठ कथाओं का खूब आयोजन रहता है और भगवान श्री कृष्ण के लिए डोल (पालने) भी सजाए जाते हैं। नगर कीर्तन के साथ ही साथ बाल श्री कृष्ण की सुंदर सुंदर झांकियां भी निकाली जाती हैं।
भगवान कृष्ण जी की जन्मस्थली मथुरा, वृंदावन, गोकुल तथा द्वारिका में तो जन्माष्टमी का त्यौहार विशेष रूप में मनाया जाता है, जहां पर देश विदेश तक के पर्यटक देखने को पहुंचते हैं। दही और माखन मटकी फोड़ने का खेल तो यहां पर देखते ही बनता है। भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना में सबसे पहले प्रतिमा को अच्छी तरह से दूध, दही, शहद, घी और सबसे बाद में पवित्र जल से स्नान कराया जाता है। इसके पश्चात भगवान श्री कृष्ण जी को सुंदर सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित करके (द्वारिका में तो सूरत से विशेष वस्त्र तैयार हो कर आते हैं) हार श्रृंगार किया जाता है। रात्रि के ठीक 12 बजे जब भगवान कृष्ण जी का अवतरण होता है तो बड़े ही धूमधाम से आतिशबाजी से उनका स्वागत किया जाता है। चारो ओर मंदिरों की घंटियां बज उठती हैं और उस समय का माहौल तो बस देखते ही बनता है, समस्त परिसर भगवान श्री कृष्ण जी के जय जय कारों से गूंज उठता है।