डॉ निधि खन्ना, नॉएडा
मैं भारत में हूँ पली बढ़ी,
मैं भारत की ही भाषा हूँ,
मैं हिंदी हूँ…
मैं पल्लवित हूँ, मैं पुष्पित हूँ,
मैं बृज-अवधी से विकसित हूँ,
मैं स्वयं पर इठलाती हुई, पूर्ण यौवना नारी हूँ,
मैं हिंदी हूँ…
मैं ध्वन्यात्मक हूँ, मैं वैज्ञानिक हूँ,
मैं सतत प्रवाहित गंगाजल हूँ,
मैं व्याकरण में भी हूँ विशाल, मैं कल-कल बहता सागर हूँ,
मैं हिंदी हूँ…
मैं भारतेन्दु की बेटी हूँ, मैं गुप्त-पंत की तनया हूँ,
मैं महादेवी का विरह काव्य हूँ,
मैं बच्चन की मधुशाला हूँ,
मैं हिंदी हूँ…
मैं उत्कृष्ट साहित्य से हूँ विभोर,
मैं अलंकारों से सराबोर,
मैं हूँ प्रतीक्षारत कि कब होगी भोर,
मैं हिंदी हूँ…
मैं भाव भी हूँ, मैं रस भी हूँ,
मैं तुकांत भी हूँ, अतुकांत भी हूँ,
मैं कभी मुक्त, तो कभी बद्ध, तो कभी सोरठा छंद भी हूँ,
मैं हिंदी हूँ…
मैं प्रगतिशील, मैं प्रचारित हूँ,
मैं देश – विदेश में प्रसारित हूँ,
मैं अपनाती सबको महि सा हूँ,
मैं हिंदी हूँ…
मैं व्यापक हूँ, समृध्द भी हूँ,
मैं आप समेटे विश्व को हूँ,
मैं सरल प्रवाहित भाषा का मीठा सा लालित्य भी हूँ,
मैं हिंदी हूँ…
मैं भाव प्रवण हूँ, मैं चंचल हूँ,
मैं बोध भी हूँ, अवगम्य भी हूँ,
मैं हर भाषा की सहचरी, मैं साहस में अदम्य भी हूँ,
मैं हिंदी हूँ…
मैं बचपन हूँ, मैं यादें हूँ,
मैं माँ का फैला आँचल हूँ,
मैं जननी हूँ, जन्मभूमि से हूँ, मैं तुम्हारी अपनी भाषा हूँ,
मैं हिंदी हूँ…
मैं उपेक्षित हूँ, मैं परित्यक्ता हूँ,
मैं अपनों के बीच परायी हूँ,
मैं अपने सूने से आँगन में, झनकार ढूँढने आयी हूँ,
मैं हिंदी में…
मैं ना विचलित हूँ, ना विह्वल हूँ,
मैं लेश मात्र ना अविकल हूँ,
मैं नव युवको को हिला – हिला, मैं अलख जगाने आयी हूँ,
मैं हिंदी हूँ…
मैं ना हारुंगी, ना मानूंगीं,
मैं हर एक को जगा कर ही, दम लूंगी,
मैं विश्व की चौथी भाषा बन, अपना अधिकार मांगने आयी हूँ,
मैं हिंदी हूँ…
मैं भारत में हूँ पली बढ़ी,
मैं भारत की ही भाषा हूँ,
मैं हिंदी हूँ !
(The writer is an Assistant Professor of Geography. Presently working as a freelancer in publication domain. She has done MA, BEd, NET, PhD; and is passionate about Hindi).