
यह बात विभाजन से पहले की है जब हमारे देश में अध्यापक को भगवान का दर्जा दिया जाता था| भारत वर्ष के लाहौर राज्य के बेदियां गांव के दो बच्चे जिनकी पढ़ाई-लिखाई में कोई भी रूचि नहीं थी, अपने माता-पिता की जिद्द के कारण एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे| मास्टर जी से डांट पड़ना और सजा मिलना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था| उन दिनों अध्यापक द्वारा बच्चों को मारना या सजा देना आम बात थी| अध्यापक की इस तरह के व्यवहार से न तो बच्चे ही नाराज होते थे और न ही बच्चों के माता-पिता| विभाजन के बाद लाहौर पाकिस्तान में चला गया और ये दोनों बच्चे अमृतसर यानि भारत में आ गए|
इन बच्चों को अपना पुश्तैनी घर बार छूट जाने का दुख तो था मगर साथ ही साथ इस बात से प्रसन्न भी थे कि चलो स्कूल के मास्टर जी से तो छुटकारा मिला| वक्त का पहिया अनवरत चलता रहा, तीन-चार साल बाद इन्हें अपने अध्यापक की याद आई और इन बच्चों ने अपने अध्यापक के नाम एक चिट्ठी लिखी और स्पष्ट किया कि वह वैसे तो हमें अपना स्कूल के सहपाठी और अध्यापक बहुत याद आते हैं परंतु हमें इस बात का सुकून है कि हम आपकी मार से बच गए| चिट्ठी के अंत में शरारत करते हुए यह भी लिखा था कि अगर आप में दम है तो हमें अब मार कर दिखाइए| उधर पाकिस्तान में जब यह चिट्ठी मास्टर जी को मिली तो वह भावविभोर हो गए|
उन्होंने स्कूल-स्टाफ के साथ-साथ समस्त ग्राम वासियों को भी बुला लिया और ऊँची आवाज में चिट्ठी पढ़ने लगे| यद्यपि उनकी आवाज में उत्साह था मगर आंखों से ज़ार-ज़ार आंसू बह रहे थे| उन्होंने सब लोगों को कहा, “देखो मेरे पढ़ाये हुए बच्चे मुझे कितना प्यार करते हैं! भारत जाने के इतने साल बाद भी उन्होंने मुझे याद रखा, और चिट्ठी लिखी| एक उस्ताद के लिए इससे खुशी की बात और क्या हो सकती है!”
उन्होंने तुरंत एक जवाबी खत बच्चों के नाम लिखा| मास्टर जी की चिट्ठी मिलते ही इन दोनों बच्चों की ख़ुशी का ठिकाना न रहा| उन्होंने भी सारे गांव को इकट्ठा कर लिया और रुंधे हुए गले से सबके सामने इस चिट्ठी को पड़ा जिसमें लिखा था, “प्यारे बच्चों ख़ुदा तुम्हें सदा सलामत रखे| मुझे खुशी है कि मेरा पढ़ाया हुआ तुम्हारे काम आया| याद रखना, बुजुर्गों का कहा और आंवले का खाया देर से ही स्वाद देता है। अब देखो न तुम इस काबिल तो बन ही गये कि मुझे चिट्ठी लिख सको| तुम मुझसे कितनी मोहब्बत करते हो, वह तुम्हारी चिट्ठी से साफ़-साफ़ पता चलता है| स्कूल में और भी तो उस्ताद थे, बहुत से बच्चे थे मगर फिर भी तुमने मुझे ही चिट्ठी लिखी|”
इधर इन बच्चों की आँखों में भी आंसू थे मगर पश्चाताप के| उन्हें पहली बार अपने मास्टर में गुरु के दर्शन हुए थे|