November 8, 2024

पहाड़ी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हो — उमा ठाकुर

Date:

Share post:

उमा ठाकुर (नधैक), आयुष साहित्य सदन, पंथाघाटी, शिमला

किसी भी राष्ट्र या देश की उन्नति, सभ्यता, संस्कृति और उसके मानवीय विकास को परखने की कसोटी उसकी बोली है। इसके अलावा बोलो का महत्त्व इस बात पर निर्भर करता है कि सामाजिक व्यवहार, शिक्षा और साहित्य में उसका क्या महत्त्व है। प्रत्येक भाषा का विकास बोलियों से ही होता है। यहां तक कि पशु-पक्षी अपनी भाव अभिव्यक्तियों के लिए जिन ध्वनियों का प्रयोग करते है, उन्हें भी बोली हीे कहते हैं। पुरानी भाषा या बोलियों के नमूने हमें अनेक शिलालेख, ताम्रपत्र, भोजपत्र तथा स्तंभ आदि पर प्राचीन कालीन लिपियों के रूप् में मिलते हैं। इसलिए, शायद हमारी पहाड़ी भाषाओं का उद्गम वैदिक संस्कृति से ही माना जाता हैं। हिमाचल के अधिकतर क्षेत्रों में स्थानीय बोलियां प्रचलित हैं। इनमें महासवी, कुल्लवी, कांगड़ी मंडियाली, किन्नौरी बोलियां प्रमुख हैं।

वर्तमान में हिमाचल में करीब 33 क्षेत्रीय बोलियां बोली जाती है। ये बोलियां लोक साहित्य, दलांगी साहित्य, लोक गीत, लोक गाथाओं और नैतिक मुल्यों का बेशकीमती खजाना अपने आप में संजोए हुए हैं। जनजातीय क्षेत्र जैसे किनौर की बात करें तो पुराने जमाने में यहां रेखड़ पद्धति थी। रामपुर बुशहर में टांकरी का प्रचलन रहा और ऊपरी किनौर में तिब्बती या भोटी भाषा में तीन भाषाओं के तत्त्व मिले हैं। तिब्बती भाषा को किनौरी भाषा का मूल अंश भी माना जाता है । भरमौर के गद्दी जनजातीय क्षेत्र में भरमौरी भाषा बोली जाती है। रोहडू जुब्बल, कोटखाई कोटगढ़ यानी अपर हिमाचल में महासवी बोली बोली जाती हैं। जैसा कि कहा भी जाता हैं कि बारह कोस पर बदले बोली यह कहावत हिमाचल की बोलियो के लिए चरितार्थ होती है। हिमाचल प्रदेश का गौरवमयी इतिहास रहा है। हिमाचल प्रदेश की लोक कलाएं वास्तुकला,पहाड़ी चित्रकला,पहाड़ी रूमाल तथा हस्तशिल्प कला, काष्ठकला इत्यादि देश मेे ही नहीं बल्कि विश्वभर में अपना लोहा मनवा चुकी है। परंतु खेद का विषय है कि हम 21 वीं सदी में भी पहाड़ी बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं दिला पाए है। पहाड़ी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए पहाड़ी भाषा बोलने वाले आम आदमी को प्रयासरत रहना होगां। मेरा यह मानना है कि युवाशक्ति ही ऐसी शक्ति है। जो समाज की धारा ही बदल सकती हैं।

वर्तमान संदर्भ में इंटरनेट का प्रचलन बहुत बढ़ गया हैं। युवा वर्ग अपनी स्थानीय बोली में ब्लॉग लिख कर भी विव्वग्राम की परिकल्पना को साकार कर सकता है। पाच्श्रात्य सभ्यता के रंग में न रंगकर युवा अपनी अमूल्य धरोहर-बोली के माध्यम से संजोकर रख सकता है। हिमाचल प्रदेश का कला संस्कृति विभाग विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से लोक संस्कृति साहित्य कला व बोंलियों के संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहा है। ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में भी समय-समय पर लोक भाषा में नाटकों का मंचन किया जाता हैं आकाशवाणी शिमला, हमीरपुर, धर्मशाला केंद्र भी स्थानीय बोलियों के संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं। पहाड़ी भाषा को संविधान की आठवी सूची में शामिल करने के लिए हिमाचल के साहित्यकार एवं कवि व लेखक पहाड़ी बोली में ज्यादा से ज्यादा लेखन कार्य कर विशेष योगदान दे सकते है। हिमाचली भाषा का इतिहास काफी गोरवपूर्ण रहा है। साथ ही हमारी गोरवपूर्ण सभ्यता, संस्कृति और साहित्य को वर्तमान संदर्भ में कलमबद्ध करने की नितांत आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ी बोलियों की इस अमूल्य धरोहर से वंचित न रह जाए। अभिभावक भी इसमें अपना योगदान दे सकते हैं । वे अपने बच्चों को संस्कार का बीज अपनी स्थानीय बोली को जीवित रख कर बो सकते है, जिससे न केवल बच्चों में लोक संस्कृति, लोक साहित्य व इसके इतिहास में रुचि पैदा होगी, साथ ही उनका नैतिक और बौद्धिक विकास भी होगा। आधुनिकता की चकाचौंध भी उनकी मानसिकता व मूल्यों को बदल नहीं पाएगी। समाज की आम जनता और बुद्धिजीवियों से भी यही निवेदन है कि वे भी हमारी अमूल्य पहाड़ी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में स्थान दिलाने का प्रयास करें ताकि हिमाचल की पहचान, पहाड़ की शान और हर पहाड़ी भाषा बोलने वालों का मान यह पहाड़ी बोली देशभर में अपनी पहचान बना सके।

 

Keekli Bureau
Keekli Bureau
Dear Reader, we are dedicated to delivering unbiased, in-depth journalism that seeks the truth and amplifies voices often left unheard. To continue our mission, we need your support. Every contribution, no matter the amount, helps sustain our research, reporting and the impact we strive to make. Join us in safeguarding the integrity and transparency of independent journalism. Your support fosters a free press, diverse viewpoints and an informed democracy. Thank you for supporting independent journalism.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

हिमाचल प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण समिति द्वारा सफल जागरूकता अभियान

हिमाचल प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण समिति के परियोजना निदेशक राजीव कुमार ने आज यहां बताया कि समिति द्वारा...

Special Campaign 4.0 Results in Revenue Generation of Rs. 37 Lakhs

Ministry of Environment, Forest and Climate Change has achieved 100 % disposal of Public Grievances and Public Grievance...

First Asian Buddhist Summit – Buddha Dhamma’s Role in Strengthening Asia

Asian culture, tradition and values have endured the onslaught of history, yet stood steadfast, evidence for the ingrained...

CM Sukhu Praises Bilaspur’s Water Sports Initiative

Chief Minister Thakur Sukhvinder Singh Sukhu, while presiding over the opening session of the DC-SP Conference here today,...