July 1, 2025

पांच दिन की दिवाली – डॉ. कमल के. प्यासा

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डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

रौशनी अर्थात् प्रकाश का त्योहार दीवाली ,संस्कृत के दो शब्दों,दीप + आवलि(दीपावलि) के जोड़ से मिल कर बना है,जिसका अर्थ दीपों की श्रृंखला या पंक्ति से होता है।तभी तो इस त्योहार को रौशनी व प्रकाश या आतिशबाजी का पर्व भी कहते हैं हिंदुओं का यह प्रसिद्ध व महत्व पूर्ण त्योहार एक पौराणिक उत्सव है जिसका वर्णन स्कंद व पद्म पुराण में मिलता है।दिवाली का यह त्योहार हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है।सामाजिक ,आर्थिक व धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखने के कारण ही इसे दिवाली,दीपावली व दीपोत्सव के नाम के साथ ही साथ अपने अपने प्रांतों में भी अलग अलग प्रांतीय भाषाओं में कहीं दयाली(हिमाचल),कहीं दवाली(पंजाबी),कहीं दीपाबाली(बंगाली),कहीं दियारी(सिंधी) कहीं पर दिवारी व दीपाली भी कहते हैं

अलग अलग नामों के साथ ही साथ जहां इस त्योहार को हिन्दुओं से विशेष रूप से जोड़ा जाता है,वहीं इसको (दिवाली को) मनाते हुवे जैन,बौद्ध,सिख व अन्य धर्म के लोगों को भी देखा जा सकता है। वैसे इस दिन जैन गुरु महावीर जी को मोक्ष की भी प्राप्ति हुई थी और इसी दिन वर्ष 1619 में सिखों की छठे गुरु गुरुहरगोविंद सिंह जी की जेल से रिहाई भी हुई थी,जिस कारण इस दिन का महत्वओर भी बढ़ जाता है। भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के पश्चात इसी दिन वापिस अयोध्या पहुंचे थे।जिसकी खुशी में लोगों ने घी के दिए जलाए थे और तभी से इस त्योहार को बड़े ही धूमधाम से मनाए जाने की प्रथा चली आ रही है।

देखने में आया है कि इस त्योहार को मनाने के लिए तैयारियां तो महीनों पहले से हो जाती हैं,जिसमें संस्थानों,दुकानों,मकानों , गली मोहल्लों ,बाजारों व कार्यालयों की साफ सफाई के साथ रंग रोगन,मुरम्मत व नव निर्माण आदि के कार्य शामिल रहते हैं।जिन्हें कि त्योहार से पूर्व ही निपटा लिया जाता है।इस तरह से दिवाली के साथ ही साथ ,इसके साथ आने वाले दूसरे त्योहार भी निपट जाते हैं और हमारी दिवाली पूरे पांच दिन तक चलती है।अर्थात् दिवाली से दो दिन पूर्व का त्योहार जिसे धनतेरस कहते हैं ,जो कि समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि जी के(अपने कमंडल सहित), प्रकट होने के कारण मनाया जाने लगा है ।

धनतेरस वाले इस दिन बाजार से सोने चांदी के आभूषण,बर्तन, कपड़े वस्त्र व अन्य घरेलू सामान आदि कि खरीद की जाती है।इससे अगले दिन फिर छोटी दिवाली के पश्चात मुख्य दिवाली को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।दिवाली वाले दिन बिजली की रोशनी ,फूलों व अन्य सजावटी वस्तुओं से घर बाजार आदि खूब सजाए जाते हैं।घर आंगन व द्वारों के आगे सुंदर सुंदर अल्पना रंगोली के डिजाइन बनाए जाते हैं,दीपक और मोमबत्तियां चारों ओर जलाई जाती हैं।इससे पूर्व घर पर माता लक्ष्मी की विधिवत स्थापना करके उसे हार फूलों से सजा कर , एक थाल में घर के आभूषण ,पैसे(सिक्के)आदि रख कर देवी लक्ष्मी की पूजा अर्चना दही,शहद,गंगाजल,गौत्र व कच्चे दूध के साथ की जाती है।

प्रसाद चढ़ा कर फिर उसे बंटा जाता है। इसके साथ ही साथ मित्रों व संबंधियों में मिठाइयां व उपहार भेंट किए जाते हैं।फिर सभी मिलजुल कर आतिश बाजी चला कर आनंद लेते हैं।लेकिन इस बार दिवाली को मनाने को लेकर आपसी विवाद गर्म है,कोई 31 अक्टूबर को बता रहा है तो कोई 1नवंबर को बता रहा है,कुछ भी हो कैलेंडर के अनुसार छुट्टी 31 की दिखाई गई है और अब कुछ विद्वान पंडितों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दिवाली का ठीक लग्न 31 अक्टूबर का ही बनता है और इसी दिन इस को मनाया जाए गा।दिवाली के अगले दिन जो त्योहार आता है वह है गोवर्धन पूजा का त्योहार ।इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना के साथ साथ गाय व गोवर्धन की भी पूजा की जाती है।

इस त्योहार के संबंध में पौराणिक कथाओं से पता चलता है कि भगवान श्री कृष्ण व देव इन्द्र के मध्य कुछ आपसी मत भेद थे ,जिस कारण भगवान कृष्ण व उसके सखी साथियों (गोप गोपियों) तथा पशुओं को तंग करने के लिए देव इन्द्र ने सात दिन तक लगातार वर्षा करके उन्हें सताने का प्रयास किया था,लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने अपनी अंगुली से गोवर्धन पर्वत को उठा कर सब कुछ सम्भाल लिया था और देव इंद्र को बाद में अपनी गलती का अहसास हो गया था जिसके लिए उसने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांग ली थी। इसी लिए इस दिन भगवान श्री कृष्ण व गायों की पूजा की जाती है।

दिवाली के साथ का अंतिम पांचवां त्योहार भाई दूज होता है जो कि गोवर्धन पूजा के अगले दिन पड़ता है।इस दिन बहिनें अपने भाई को तिलक लगा कर उसकी लम्बी आयु की कामना करती हैं। भाई का मुंह मीठा करवाती हैं और भाई बदले में बहिन को भेंट में उपहार व पैसे देता है।इस प्रकार दिवाली के त्योहार के साथ ही साथ दूसरे त्योहार भी निपट जाते हैं और फिर इनकी इंतजार अगले वर्ष को आने की बेसब्री से रहती है। इस प्रकार 5 दिन की दिवाली का त्योहार खुशियों के साथ समाप्त हो जाता है।

वैधानिक सावधानी
आतिश बाजी से पर्यावरण प्रदूषण व गंदगी फैलती है,जो स्वस्थ के लिए हानिकारक होती है।

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