
गाड़ियों की बढ़ती संख्या से ट्रैफिक का रश दिन – प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। इधर जीरकपुर में तो चंडीगढ़ कीअपेक्षा कुछ ज्यादा ही ट्रैफिक का जोर दिखता है। अभी दो तीन दिन पहले ही मैं किसी तरह वी आई पी रोड से पटियाला चौंक पहुंचा था क्योंकि आगे यहीं से मुझे 43 चंडीगढ़ पहुंचना था। इधर पटियाला चौंक में ट्रैफिक का चारों तरफ भारी रश व लाल बत्ती होने के कारण बस लेने वाली सवारी को ये भी जानकारी नहीं होती कि बस कहां रूके गी।
चढ़ने वाली सवारी अंदाजे से सड़क के इधर उधर खड़े हो कर , जहां बस रुकती है जल्दी से चढ़ जाते है और देखने वाले देखते ही रह जाते हैं। मैं भी उस दिन जल्दी में था और बस के इंतजार में भारी ट्रैफिक के बीच सड़क के एक ओर खड़ा हो कर बस का इंतजार करने लगा। थोड़े से अंतराल में पी आर टी सी की एक बस आई ,मैंने उसे हाथ दिया ,चलती चलती बस से दो तीन सवारियां उतरी और चढ़ी भी ,लेकिन बस रुकी नहीं और इस तरह चलती बस में मैं नहीं चढ़ पाया, और बस भारी ट्रैफिक व सिग्नल होने के कारण निकल गई।
दूसरी बस आई ,फिर हाथ दिया ,नहीं रुकी और खिड़कियां भी बंद थीं और निकल गई इतने में ही मेरी ओर दो तीन सवारियां आ गईं और बस भी आ गई ,मैंने बस कंडक्टर से पूछा 43 जाए गी तो मेरे पीछे वाली अधेड़ उम्र की महिला ने कहा जाए गी जी और मैं जल्दी से बस मैं चढ़ गया लेकिन वह महिला बस के रुकने का इंतजार करती करती पीछे वाली खिड़की तक पहुंच गई और बस वैसे ही चलते चलते निकल गई ! मैंने समझा कि वह पिछली खिड़की से चढ़ गई होगी और मैं पीछे बैठी सवारियों को बस ताकता ही रहा लेकिन शायद वह नहीं चढ़ पाई थी ! काश! मैंने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया होता, इन्हीं विचारों के उथल पुथल और पश्चाताप में खोया मैं न जाने कब 43 बस स्टैंड पहुंच गया !