आठवें राष्ट्रीय पुस्तक मेले के अवसर पर ओकार्ड इंडिया द्वारा आयोजित साहित्य सम्मान समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ कुमार कृष्ण ने कहा कि “कविता रोटी नहीं सुकून देती है। गणेश गनी के साथ होना कविता के साथ होना है, उनकी रचना ‘किस्से चलते हैं बिल्ली के पांव पर,’ एकेडमिक आलोचना की शुष्कता पर करारा प्रहार है। कवि कुमार कृष्ण ने कहा कि गणेश गणी हिमाचल के विजय दान देथा है उन्होंने 80 कवियों की कविताओं का बखूबी विश्लेषण अपनी तीन पुस्तकों में किया है।
गणेश गनी मूलतः कवि हैं, जो पेड़ों की जड़ों में कविता सुनाने का हुनर रखते हैं। लोकोत्तर कवि गणेश भारतीय कविता में अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं भले ही उनको दिल्ली के साहित्य जगत में दर्ज नहीं किया गया हो, आलोचक चाहे अपने चहेते लेखकों, साहित्यकारों को उभारने में व्यस्त हैं जबकि गणेश गनी स्वयं कवि और आलोचक होने की महारत रखते हुए इस संत्रास से स्वयं को बचा पाने में सफल रहे हैं। गणेश गनी उन समर्थ कवियों में शुमार हैं जो अपनी कविता की आवाज से समाज को जगाने के लिए ऊंची हांक लगाने का गुर रखते हैं। इस दृष्टि से उन्हें कविता का गूर कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। कुमार कृष्ण ने गणेश गनी के कृतित्व पर आधारित तीन स्वरचित कविताओं का पाठ किया जिसमें उनकी कविताओं में उतारे गए प्रतिबिंबों का सटीक वर्णन किया गया है।
ओकार्ड साहित्य सम्मान से नवाजे गए गणेश गनी ‘किस्से चलते हैं बिल्ली के पांव पर’ पुस्तक से राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहे, हिमाचल प्रदेश के प्रतिष्ठित कवि, आलोचक एवं किस्सागोई के लिए गणेश गनी को वर्ष 2024 के ओकार्ड साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
मूलतः पाँगी चंबा से संबंध रखने वाले गनी की कविताएं हिंदी साहित्य में अपनी अलग शैली और शिल्प के कारण दमदार उपस्थिति दर्ज कर चुकी हैं। गणेश गनी अपनी भाषा के लिए जाने जाते हैं। यही कारण है कि इनकी गद्य की पुस्तकें अपनी भाषा की काव्यात्मक शैली और अनूठी किस्सागोई के कारण चर्चा में रही हैं।
वर्ष 2019 में गणेश गनी का पहला कविता-संग्रह ‘वह साँप – सीढ़ी नहीं खेलता’ तथा दूसरा कविता-संग्रह ‘थोड़ा समय निकाल लेना’ भी हिंदी साहित्य में चर्चा का विषय रहा है। गणेश गनी कविता के अतिरिक्त क़िस्सात्मक आलोचना के लिये भी चर्चित हैं। गणेश गनी की कविताएं, संस्मरण और किस्सागोई हिंदी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा आकाशवाणी शिमला से प्रसारित हो चुकी हैं। हिम तरु पत्रिका ने 2015 में गणेश गनी की कविताओं तथा समीक्षाओं पर केंद्रित एक विशेषांक तथा कविताओं पर एक आलोचना की पुस्तक ‘लोकोत्तर कवि : गणेश गनी” प्रकाशित की। अतिथि सम्पादक के तौर पर गणेश गनी ने वर्ष 2012 से 2021 के बीच हिम तरू के चार विशेषांकों का सफल सम्पादन किया है। ‘हाशिये वाली जगह’ में हिमाचल के बारह ज़िला के युवा कवियों की कविताएं प्रकाशित हुई हैं।
ओकार्ड साहित्य सम्मान समारोह के अवसर पर प्रख्यात उपन्यासकार प्रोफेसर अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि साहित्य सृजन के लिए साधना जरूरी है। इस अवसर पर समीक्षक एवं संपादक डॉ देवेंद्र गुप्ता ने कहा पहाड़ों को जानने के लिए पहाड़ होना पड़ता है। गणेश गनी कविता के अनूठे कारीगर हैं तथा कविता के लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में उनकी विशिष्ट पहचान है।
इस अवसर पर सम्मानित कवि एवं समीक्षक गणेश गनी ने आत्मकथ्य के अंतर्गत अपनी साहित्य यात्रा के संबंध में विचार व्यक्त किये। समारोह के दौरान आयोजन से एस आर हरनोट, ओकार्ड के निदेशक राकेश गुप्ता, सचिन चौधरी, अदिति महेश्वरी, ज्योत्सना मिश्रा, कस्तूरी मिश्रा, हितेन्द्र शर्मा, स्नेह लता नेगी, डॉ गंगाराम राजी, कैलाश, दीप्ति सारस्वत, कल्पना गांगटा, ओमप्रकाश, जगदीश हरनोट सहित अन्य साहित्यकार उपस्थित थे।