
भक्ति काल के महान साधक,चिंतक व रहस्यवादी कवि जिनकी चर्चा संत कबीर जी के साथ भी की जाती है ,उन्हें ही गुरु रवि दास जी के नाम से जाना जाता है।गुरु रवि दास जी ,रैदास,रोही दास व रुही दास के नाम से भी अपनी पहचान रखते हैं।गुरु जी अपनी सादगी,मधुर व्यवहार व मानव सेवा के लिए ही प्रसिद्ध नहीं थे ,बल्कि उनकी परमात्मा की प्रति सच्ची लगन व कई एक अन्य चमत्कारी बातें भी हैं ,जिनके लिए वे विशेष रूप से जाने जाते हैं।
उनका जन्म पवित्र नगरी वाराणसी के गांव गंधर्वपुर सीर में ,वर्ष 1450 या 1398 कहीं कहीं 1377 को (बताया गया है) , माघ पूर्णिमा के दिन माता श्रीमती कलसां व पिता संतोष दास के घर हुआ था ।क्योंकि गुरु रवि दास के पिता चमड़े के कारोबार से जुड़े थे और जूते बनाने का काम करते थे।रवि दास भी अपने पिता के साथ जूते बनाते ,उन्हें गांठते और अपने इस काम में बड़ी लगन व मेहनत के साथ साथ प्रभु के भजन व गीत भी गाते रहते थे।साधु संतों के साथ रवि दास का लगाव कुछ अधिक ही रहता था ,काम के पश्चात साधु संतों की भजन मंडलियों में रह कर गीत व भजनों के साथ ही साथ कविताओं ,भजनों व शब्दों की रचना भी किया करते थे ।अपने मधुर व्यवहार ,गायन वादन व जन सेवा के कारण ही गुरु जी की पहचान दूर दूर तक हो गई थी।
12 वर्ष की आयु में रवि दास की शादी लोना देवी नामक लड़की से मां बाप ने करवा दी थी। गृहस्थ को चलने की लिए शादी के पश्चात रवि दास और भी मेहनत से काम करने लगा था,लेकिन प्रभु के भजनों के गायन व गरीबों ,साधु संतों के जूतों को (बिना पैसों के) गांठने की सेवा कुछ ज्यादा ही चलती रहती थी।लेकिन हर समय व सभी के लिए मुफ्त की सेवा से गुरु रवि दास के पिता नाराज़ रहने लगे थे और रवि दास को इसके लिए रोकते रहते थे,पर रवि दास तो इस सब को प्रभु सेवा मान कर करता था,जिस पर पिता ने रवि दास को घर से निकल दिया।
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घर से निकाले जाने के पश्चात रवि दास ने अलग से जूते गांठने का काम शुरू कर दिया और फिर गरीबों व साधु संतों की सेवा वैसे ही प्रभु भजनों के गायन के साथ यथावत चलती रही।एक दिन कुछ पास के लोग गंगा स्नान को जा रहे थे तो गुरु जी के शिष्यों ने उन्हें भी चलने को कहा,तो गुरु जी कहने लगे, “मन चंगा तो कठौती में गंगा।” गुरु रवि जी के कहने का तात्पर्य यह था कि यदि मानव के विचार ठीक हों ,उसकी नियत ठीक हो तो अपने घर पर ही सब कुछ मिल जाता है और वहीं पर गंगा स्नान भी हो जाता है।
सच में, गुरु रवि दास जी ने सच ही तो कहा था,दिल में तरह तरह के द्वेष भाव हो और मन इधर उधर भटक रहा हो ,तो उस गंगा स्नान का क्या लाभ,सबसे पहले तो इंसान के विचार व व्यहवार ठीक होना चाहिए।
कितनी बड़े दार्शनिक थे गुरु रवि दास जी ? उनके विचारों से ही हमें उनका परिचय और जानकारी मिल जाती है। गुरु जी आडंबरों,अंध विश्वासों और जात पात के घोर विरोधी थे,सब को एक सम्मान व बराबर का दर्जा देते थे।बड़े ही दयालु व सबके साथ मधुर व्यवहार रखते थे।हिंदू हो या मुसलमान उनके लिए सभी बराबर थे और वे अक्सर कहा करते थे कि राम,रहीम,कृष्ण ,करीम,अल्लाह,वाहे गुरु,हरि ,राघव सभी एक ही शक्ति का स्वरूप हैं पर नाम अलग अलग जरूर हैं।इसी प्रकार वेद,पुराण और कुरान उस परमेश्वर की ही देन हैं। तभी तो गुरु रवि दास जी ने अपनी वाणी में कहा था,
“कृशन ,करीम,राम,हरि,राघव जब लग एक न देखा ।
वेद ,कतेब ,कुरान, पुरानन,सहज एक नहि देखा ।।
चारों वेद के करे खंडौती ।
जन रैदास करे दंडौती ।।
ईश्वर की आराधना व भक्ति के लिए सदाचार,परहित भावना व सद्व्यवहार का पालन करना जरूरी हो जाता है। इस लिए इंसान को कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए।रवि दास जी आगे समझाते हुवे कहते हैं ,कि जिस प्रकार एक इतना बड़ा हाथी ,जिसे अपनी देह पर घुमान रहता है,वह चीनी के छोटे से कण को नहीं उठा पाता,जब कि एक छोटी सी चींटी उसी कण को आसानी से उठा लेती है।इस लिए इंसान को अपनी ताकत,पैसे और संपति आदि पर गुमान नहीं करना चाहिए।नम्रता और सादगी ही इंसान को उस परमात्मा तक पहुंचती है।
गुरु रवि दास जी के संबंध में ऐसा भी बताया जाता है कि एक बार उनका ,एक पडौसी ब्राह्मण गंगा स्नान को जा रहा था ,उसने गुरु जी से भी चलने को कहा तो गुरु जी ने अपनी तरफ से एक रुपए का सिक्का गंगा माता को चढ़ाने को देते हुवे कहा,”जब गंगा माता हाथ करे तभी इसे देना”।
पंडित जी जब सिक्का गंगा जी को देने लगे तो सच में ही गंगा जी ने हाथ निकाल कर सिक्का ले लिया और बदले में गुरु रविदास के लिए एक सोने का कंगन पकड़ा दिया। वह कंगन पंडित ने राजा को दे दिया।राजा ने आगे अपनी रानी को दे दिया ।जिस पर उसने (रानी ने)राजा से वैसा ही दूसरा कंगन मांग लिया।राजा ने फिर पंडित से दूसरा कंगन लाने को कहा।पंडित अब दुविधा में पड़ गया “कहां से लाऊं “सोचने लगा” ,”क्या किया जाए !”
ब्राह्मण तो गुरु रविदास के मिलनसार व्यवहार से अच्छी तरह से परिचित था ,इस लिए उसने सोचा क्यों न रविदास के पास जा कर इसका कुछ उपाय किया जाए और वह सीधा रविदास के पास जा पहुंचा, फिर उस ने सारी व्यथा सच सच कह उनसे कह डाली ।रविदास ने कहा ,”कोई बात नहीं यदि तूने राजा को मेरा कंगन दे दिया है तो। मैं गंगा माता से ओर मांगता हूं,”कह कर गुरु रवि दास ने अपनी कठौती में (आंखे बंद करके गंगा माता को याद करते हुवे) हाथ डाल कर एक कंगन निकाल कर पंडित को पकड़ा दिया। यही से मन चंगा तो कठौती में गंगा वाली बात फिर से चरितार्थ हो जाती है।गुरु रवि दास जी के इस चमत्कार से जहां पंडित व राजा रानी खुश हो गए ,वहीं गुरु जी की वहा वाही वा चमत्कारों की चर्चा जगह जगह होने लगी और गुरु जी के शिष्यों की संख्य भी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही चली गई।
ऐसा भी बताया जाता है कि गुरु रवि दास जी अपने पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण परिवार से थे और गुरु के शाप के कारण ही उन्हें फिर से यहां जन्म लेना पड़ा था।उस समय शाप व वरदान में भी बड़प्पन रहता था ,कोई बुरा नहीं मानता था क्योंकि इस प्रकार के शाप व वरदान दोनों ही पक्षों के हित में हुआ करते थे।ऐसा कुछ ही गुरु रविदास जी के शाप में भी देखने को मिलता है। अर्थात गुरु रवि दास जी को उनकी गलती के कारण शाप मिला था और दूसरी ओर गुरु रवि दास के पिता को संतोख दास के यहां संतान नहीं थी और ये उनके लिए वरदान था (शाप व वरदान की भी यह अलग से लम्बी कथा है)।इस तरह शाप व वरदान की कई एक पौराणिक कथाएं सुनने को मिल जाती हैं।
जहां संत कबीर गुरु जी के गुरु भाई बताए जाते हैं वहीं मीरा बाई भी गुरु जी के भजनों की बहुत बड़ी प्रशंसक रही हैं और वह गुरु जी की प्रिय शिष्या भी थी।गुरु जी द्वारा लिखित 41 पद गुरु ग्रंथ साहिब में 16वीं शताब्दी में गुरु अंगद देव जी द्वारा शामिल किए गए थे।इनकेअतिरिक्त हिंदू धर्म के ही दादू पंथी परंपरा के पंचवाणी पाठ में भी कई एक रचनाएं शामिल हैं।गुरु रविदास जी ने समाज सुधार के लिए कई एक यात्राएं भी की थीं ,जिनमें महाराष्ट्र,गुजरात,आंध्रप्रदेश,राजस्थान व कई दूसरे धार्मिक स्थल आ जाते हैं।सभी धर्मों के अवगुणों में सुधार करते हुवे ,उन्होंने निर्गुण,सगुण की चर्चा के साथ ही साथ,रहस्यवादी व सूफी संतों की संगत के साथ रह कर भी कई तरह के धार्मिक सुधार व ऊंच नीच को मिटाने में हमेशा प्रयत्नशील रहते थे।