October 15, 2025

रंगों का त्यौहार होली: डॉo कमल केo प्यासा

Date:

Share post:

डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

बसंत ऋतु में मनाए जाने वाले त्यौहारों में बसंत पंचमी के अतिरिक्त जो दूसरा मुख्य त्यौहार आता है वह है होली, इसे रंगों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। होली का पर्व रूपी यह त्यौहार फागुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन रंगों का विशेष महत्व रहता है।रंगों में भी प्राकृतिक रंगों के साथ साथ कृत्रिम रंग,गुलाल,अबीर व वनस्पति फूलों के रंग भी शामिल रहते हैं। इन्हीं रंगों के स्थान पर कई स्थानों पर लोगों द्वारा पेंट,मोबऑयल ,गोबर ,कालिख,राख व अन्य ऐसे ही पदार्थों का प्रयोग करते हैं जो कि शरीर के लिए हानिकारक होते हैं, अत हमें ऐसे पदार्थों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

होली का यह त्यौहार चाहे हिंदुओं का ही है,लेकिन इसे अन्य समुदाय के लोगों द्वारा भी बढ़ चढ़ कर मनाया जाता है। जिसमें राष्ट्रीय एकता व भाईचारे की भावना स्पष्ट दिखाई देती है।होली के इस त्यौहार को मानने के संबंध में जो पौराणिक कथा सुनने को मिलती है,के अनुसार बताया जाता है कि भगत प्रहलाद जो की राजा हिरण्य कश्यप का पुत्र था और वह बड़ा ही धार्मिक प्रवृत्ति वाला तथा भगवान विष्णु का परम भगत था। लेकिन प्रहलाद का पिता हिरण्य कश्यप बड़ा ही घमंडी था और अपने को भगवान ही समझता था ,क्योंकि देव ब्रह्मा ने उसे किसी भी तरह न मरने का वरदान जो दे रखा था।

उधर प्रहलाद हमेशा भगवान विष्णु की पूजा पाठ लीन रहता था लेकिन उसका पिता (हिरण्य कश्यप) इसके लिए उसे रोकता और कहता कि मैं ही भगवान हूं ,तू मेरी पूजा क्यों नहीं करता।लेकिन प्रहलाद नहीं माना ,तो उसके पिता ने उसे कई प्रकार के दंड के साथ अपमानित करना भी शुरू कर दिया। भगत प्रहलाद तो भगवान विष्णु का अनन्य भगत था और वह हमेशा प्रभु के ही ध्यान में रहता था। इस पर हिरण्य कश्यप नेअपनी बहिन होलिका के साथ मिल कर प्रहलाद को जला कर खतम करने की योजना बना डाली और प्रहलाद को उसकी बुआ होलिका की गोदी में बिठा कर जलती आग में बैठा दिया(क्योंकि होलिका को आग से न जलने का वरदान मिला हुआ था ।)

ये सब जानते थे कि होलिका वरदान के अनुसार बच जाए गी और प्रहलाद आग में जल जाए गा,लेकिन हुआ बिलकुल इसके उल्ट ।भगवान विष्णु ने अपने भगत की रक्षा करते हुवे उसे बचा कर और नरसिंह अवतार के रूप में हिरण्य कश्यप को मार दिया। जब होलिका अग्नि में जल कर खतम हो गई और दुष्ट हिरण्य कश्यप का भी अंत हो गया तो तब से उसी(बुराई का अंत होने) खुशी में होलिका को अलाव में जला कर रंगों से होली खेली जाती है। रंगों के इस त्यौहार मे सभी मिलजुल कर आपस में रंग लगाते हैं।सारे गिले शिकवे मिटा कर गले लग कर इक दूजे को प्यार से रंग लगाया जाता है तथा कोई भी इसे अन्यथा नहीं लेता।

वैसे तो समस्त भारत व जहां जहां भारतीय बसे हैं वहां खूब होली का रंग जमता है। हमारे यहां मथुरा वृंदावन की होली तो बहुत ही प्रसिद्ध है जो की बसंत पंचमी से ही शुरू हो जाती है और लगातार 40 दिन तक चलती रहती है। फिर बरसना के नंद गांव की लठ मार होली तो अपना ही स्थान रखती है। राजस्थान के भरतपुर व करौली में भी लठ मार होली का चलन है।पंजाब में आनंदपुर साहिब की होली भी सिखों के लिए विशेष पर्व के रूप में मनाई जाती हैं जहां दूर दूर से आए हजारों लोग शामिल होते हैं। महाराष्ट्र में मुंबई की फिल्मी दुनिया की होली भी देखते ही बनती है। इधर यदि अपने हिमाचल की बात की जाए तो यहां की होली के तो अपने ही रंग हैं।

प्रदेश में सुजानपुर की होली तो अपने रियासत काल से जानी मानी होली रही है और अब तो यहां की यह होली अंतरराष्ट्रीय स्तर में 4 दिन तक एक मेले के रूप में मनाई जाती है। किन्नौर की होली भी पर्यटकों के लिए बड़ी आकर्षक होली बनती जा रही है। किन्नौर क्षेत्र की ये होली 3 दिन तक चलती है और इधर किन्नौर के सांगला की होली विशेष रूप से प्रसिद्ध है। पहले दिन छूलो गांव में 7,8 स्वांग अति सुंदर ढंग से मेक अप व हार श्रृंगार के साथ तैयार किए जाते हैं ,जिनमें राजा रानी या दो राजे,2 साधु वेश धारी,2 अन्य नारी पात्र व एक हनुमान का पात्र होता है। ये सभी तैयार होकर जन समूह के साथ नाचते हुए मंदिर के मैदान का चक्कर लगा कर पूजा अर्चना करके रंग गुलाल डालते हुवे अगले गांव की ओर चल पड़ते हैं।

गांव में पहुंच कर वहां होली खेली जाती है और वहीं पर इनका स्वागत खाने नाश्ते आदि के साथ किया जाता है,ड्राई फ्रूट्स व सेव आदि खाने के साथ ही साथ घर की बनी शराब भी पीने को दी जाती है। इसके पश्चात ये सभी वापिस अपने गांव लोट आते हैं और शाम ढलते ही होलिका दहन किया जाता इस तरह होली 3 दिन तक चलती है। बौद्ध धर्म के लामा लोग झंडा रसम के साथ साथ रंगीन मंत्रों वाली झंडियों से सारे परिसर की सजावट के बाद पवित्र अग्नि जला कर हवन आदि के बाद होली मनाते है तथा गुलाल के साथ साथ सत्तू को एक दूजे को लगा कर होली खेलते हैं। कुल्लू में भी होली बसंत पंचमी वाले दिन से ही शुरू हो जाती है।

सबसे पहले बैरागी समुदाय के लोग अपनी मंडली के साथ ब्रज गीत गाते हुए भगवान रघुनाथ मंदिर पहुंचते हैं और देव रघुनाथ की पूजा अर्चना के बाद ,देव रघुनाथ की पालकी शोभा यात्रा के रूप में ढालपुर मैदान की ओर प्रस्थान करती है। ढालपुर में देव रघुनाथ जी की प्रतिमा को पालकी से निकल कर ढालपुर में खड़े रथ में रखा जाता है और फिर विशाल जनसमूह के साथ रथ को ढालपुर के दूसरे छोर पर पहुंचा कर रघु नाथ जी की प्रतिमा अस्थाई मंदिर में स्थापित करके पूजा अर्चना के पश्चात फिर से रथ द्वारा ही रघु नाथ जी की प्रतिमा को पूर्व वाले स्थान पर लाया जाता है और इसके पश्चात प्रतिमा को पालकी द्वारा वापिस सुल्तानपुर अपने मंदिर (गाजे बाजे व जनसमूह के साथ )पहुंचा दिया जाता है।

बैरागी समुदाय के लोग नाचते गाते गुलाल उड़ते घर घर व मंदिरों में जाते रहते हैं और फिर आखिर में होली वाले दिन कुल्लू की होली का समापन होता है। मण्डी में होली ,होली से एक दिन पहले ही खेली जाती है ।मण्डी शहर में तो पिछले 15,20 सालों से होली अपने नए रूप में देखने को मिलती है और अब यहां की होली में पेंट,मोबऑयल,सफेदा व गोबर आदि हानिकारक पदार्थों का प्रयोग नहीं किया जाता ,बल्कि अब गुलाल ,अबीर व वनस्पति रंगों के प्रयोग का चलन शुरू हो गया है। होली खेलने के लिए भी शहर के सभी लोग जिसमें महिलाएं ,पुरुष,लड़के लड़कियां,बच्चे,बुजुर्ग व जवान आदि सभी सेरी पेवेलियन व मंच के आगे इकट्ठे होते हैं।

देव माधव राव की पूजा अर्चना के पश्चात 10 बजे डी जे के मधुर संगीत के साथ जनसमूह थिरकने लगता है। नाचते गाते गुलाल उड़ते लोग इतने मद मस्त हो जाते हैं कि कुछ तो सुध बुद्ध खो कर अपने कपड़े तक फाड़ फैकते हैं। ठीक 2 बजे देव माधव राव की पालकी जलूस के रूप में शहर की परिक्रमा करते (जनसमूह द्वारा गुलाल व रंगों की बौछार में) निकलती है और इसी के साथ होली भी समाप्त हो जाती है। ऊना के मैड़ी के डेरा बड़भाग सिंह में होली का यही त्यौहार मेले के रूप में 10 दिन तक चलता है।

मैड़ी के इस होली मेले में दूर दूर से हजारों लोग शामिल होते हैं, क्योंकि कहते हैं की होली में बाबा बड़भाग सिंह जी की पवित्र आत्मा का यहां आगमन होता है। इसलिए दूर दूर से लोग भूत प्रेत व ओपरे के उपचार के लिए पहुंचते हैं और बाबा जी की कृपा से भले चंगे हो कर अपने घर जाते हैं। भिन्न भिन्न रंगों के साथ ही साथ होली को मनाने के अलग अलग रूप व ढंग देखने को मिलते हैं,लेकिन इन अलग अलग ढंगों के साथ एक बात अति सुंदर देखने को मिलती है और वह है, एकता, भाईचारा प्रेम तथा सभी द्वेष वैर भुलाकर सबके गले लगना और एक ही रंग में रंग जाना। यही तो है हमारी संस्कृति व इस पवित्र त्यौहार होली का संदेश।

रंगों का त्यौहार होली: डॉo कमल केo प्यासा

Daily News Bulletin

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

CM Announces DA Hike, Arrears Before Diwali

In a festive gesture ahead of Deepawali, CM Sukhu announced a 3% Dearness Allowance (DA) hike for state...

Startup Boost: Himachal Rolls Out Innovation Fund

In a significant move to encourage youth entrepreneurship, Urban Development and Town Planning Minister Rajesh Dharmani announced the...

Himachal CM Promotes E-Mobility, Flags Off E-Taxis

Chief Minister Thakur Sukhvinder Singh Sukhu today flagged off 18 electric taxis from his official residence Oakover under...

रामपुर बुशहर में अग्निवीर भर्ती, SDM नोडल अधिकारी

भारतीय सेना में भर्ती के इच्छुक युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर आने वाला है। सेना भर्ती कार्यालय,...