हिमाचल प्रदेश राज्य मानवाधिकार आयोग सर्दियों में सड़कों पर ठिठुरने को मजबूर बेसहारा लोगों  की सुध लेगा। आयोग के सदस्य डॉ. अजय भंडारी ने मानवाधिकार जागरूकता पर उमंग फाउंडेशन के सप्ताहिक वेबिनार में कहा कि इस मामले में सरकार को निर्देश जारी किए जाएंगे। उनका कहना था कि आयोग स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से मानवाधिकार जागरूकता का अभियान भी चलाएगा। कार्यक्रम में लगभग 70 युवाओं ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम के संयोजक और उमंग फाउंडेशन के ट्रस्टी और दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ. सुरेन्दर कुमार ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आज़ादी के अमृत महोत्सव और हिमाचल के स्वर्ण जयंती वर्ष के उपलक्ष में उमंग फाउंडेशन द्वारा शुरू किए गए साप्ताहिक वेबीनार की श्रृंखला के 11वें  कार्यक्रम में “मानवाधिकार संरक्षण में राज्य मानवाधिकार आयोग की भूमिका” पर आयोग के सदस्य डॉ. अजय भंडारी मुख्य वक्ता थे। उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष और मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रो. अजय श्रीवास्तव ने प्रदेश में मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं पर प्रकाश डाला।
डॉ. अजय भंडारी कहा कि प्रदेश में 1995 में मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया था। लेकिन बाद में दुर्भाग्य से लगभग 15 वर्ष तक आयोग अस्तित्व में ही नहीं रहा। अब उसके गठन के बाद काम की शुरुआत हुई है। इस पहाड़ी प्रदेश में मानवाधिकारों के संबंध में जागरूकता की काफी कमी है। आयोग में ज्यादातर शिकायतें पारिवारिक विवादों से संबंधित होती हैं। उनका कहना था कि मानवाधिकारों को एक विषय के रूप में स्कूल और कॉलेज स्तर पर पढ़ाया जाना चाहिए। इस बारे में आयोग सरकार को सुझाव देगा। समाज में जागरूकता लाने और मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं को रोकने में स्वयंसेवी संस्थाएं आयोग के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। डॉ. सुरेंद्र कुमार के एक प्रश्न पर डॉ. भंडारी ने कहा कि सर्दियों में प्रदेश की सड़कों पर ठिठुरते, बेसहारा घूमने वाले मनोरोगियों एवं अन्य बेघर लोगों को शेल्टर उपलब्ध कराने के लिए आयोग सरकार को निर्देश जारी करेगा। उन्होंने कहा कि यह मानवाधिकार उल्लंघन का गंभीर मुद्दा है। उन्होंने युवा प्रतिभागियों के प्रश्नों के उत्तर भी दिए। कार्यक्रम के संचालन में डॉ. सुरेन्दर कुमार,  विनोद योगाचार्य, संजीव शर्मा और उदय वर्मा ने सहयोग किया।
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