
डॉ. अजय भंडारी कहा कि प्रदेश में 1995 में मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया था। लेकिन बाद में दुर्भाग्य से लगभग 15 वर्ष तक आयोग अस्तित्व में ही नहीं रहा। अब उसके गठन के बाद काम की शुरुआत हुई है। इस पहाड़ी प्रदेश में मानवाधिकारों के संबंध में जागरूकता की काफी कमी है। आयोग में ज्यादातर शिकायतें पारिवारिक विवादों से संबंधित होती हैं। उनका कहना था कि मानवाधिकारों को एक विषय के रूप में स्कूल और कॉलेज स्तर पर पढ़ाया जाना चाहिए। इस बारे में आयोग सरकार को सुझाव देगा। समाज में जागरूकता लाने और मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं को रोकने में स्वयंसेवी संस्थाएं आयोग के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। डॉ. सुरेंद्र कुमार के एक प्रश्न पर डॉ. भंडारी ने कहा कि सर्दियों में प्रदेश की सड़कों पर ठिठुरते, बेसहारा घूमने वाले मनोरोगियों एवं अन्य बेघर लोगों को शेल्टर उपलब्ध कराने के लिए आयोग सरकार को निर्देश जारी करेगा। उन्होंने कहा कि यह मानवाधिकार उल्लंघन का गंभीर मुद्दा है। उन्होंने युवा प्रतिभागियों के प्रश्नों के उत्तर भी दिए। कार्यक्रम के संचालन में डॉ. सुरेन्दर कुमार, विनोद योगाचार्य, संजीव शर्मा और उदय वर्मा ने सहयोग किया।