डॉ. कमल के. प्यासा
15 वीं शताब्दी में जिस समय देश में भक्ति आदौलन जोरों पर था और चारों ओर पूजा पाठ व धार्मिक प्रचार में कई तरह के अंधविश्वास, आडंबर और पाखंड भी फैलाए जा रहे थे। तो उसी मध्य एक सिद्ध पुरुष संत कबीर जी का अवतरण हुआ था।
संत कबीर जी के अवतरण के भी कई किस्से प्रचलित हैं, जिनमें से एक जगह तो कबीर जी को मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ बताया गया है। लेकिन ऋग्वेद के 9 वें मंडल व सूक्त 94, 96 के अनुसार पता चलता है कि काशी नगरी में ही लहरतारा तालाब के कमल फूल से कबीर जी अवतरित हुवे थे। कहीं कहीं ऐसा भी बताया जाता है कि संत कबीर का किसी विधवा ब्रह्माण महिला के यहां जन्म हुआ था और समाज के डर के कारण उस विधवा महिला ने बच्चे को लहर तारा नामक तालाब के निकट छोड़ दिया था। बाद में बालक को एक मुस्लिम जुलाह दंपति जिनका नाम नीरु व नीमा (पति पत्नी) था ने उठा कर उसे अपने बेटे कबीर के रूप में अपना लिया था। इस प्रकार कबीर के माता पिता नीरू और नीमा हो गए।
जेष्ठ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन विक्रमी संवत 1455 (1498 ई.) को जन्मे संत कबीर दास बिल्कुल अनपढ़ थे और कहीं भी आश्रम या पाठशाला की शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। जो कुछ भी शास्त्र ज्ञान उनके पास था वह सारे का सारा उनके गुरु स्वामी रामानंद द्वारा दिया ही था। स्वामी रामानंद जी के पास गुरु धारण करने के लिए कबीर जी कई बार गए थे, लेकिन मुसलमान होने के नाते स्वामी जी उसे टालते ही रहे, पर कबीर ने तो उन्हें गुरु धारण करने की ठान रखी थी।
एक दिन सुबह सवेरे जल्दी ही ब्रहमूर्त में, गंगा घाट के रास्ते में जा कर कबीर जी लेट गए, जिस रास्ते से स्नान के लिए स्वामी रामानंद जी जाया करते थे। और फिर ठीक वैसा ही हुआ जैसा कि कबीर चाहता था। रामास्वामी जी की खड़ावां की ठोकर कबीर के शरीर को लग गई और स्वामी रामानंद जी राम राम करते हुए पीछे हट गए और फिर स्वामी जी ने सवाल करते हुवे कबीर से पूछा, “तुम कौन हो भई ?” तो कबीर ने कहा, “आप का शिष्य स्वामी जी।” स्वामी रामानंद जी बड़े हैरान हो कर कहने लगे, “नहीं तो, तुम तो मेरे शिष्य नहीं हो मैंने तो तुम्हें कई बार इनकार किया है।” तब बड़े ही विनम्र हो कर कबीर ने कहा, “जब आप के चरणों का स्पर्श मेरे शरीर से हुआ तो आप ने राम राम कहा के मुझे उठा दिया, आप तो मेरे गुरु ही हैं !” तब से संत कबीर जी स्वामी रामानंद जी के प्रिय शिष्य बन गए।
संत कबीर जी की बचपन से ही घुमंतू प्रवृति थी तथा हमेशा साधु संतों के साथ रहना ही पसंद करते थे। इनके साथ ही साथ निर्गुण ब्रह्म के उपासक होने साथ आडंबरों, अंधविश्वासों, जातिगत विभाजन, ब्राह्मणों के वर्चस्व, मूर्ति पूजन अनुष्ठानों व दिखावटी समारोहों के कट्टर विरोधी थे। संत कबीर जी यह भी कहा करते थे कि बौद्धिक दृष्टि व अध्यात्मिक संदेश से शांति, सद्भाव तथा धर्मों में सामंजस्य स्थापित होता है।
कबीर जी के लेखन में उनके दो पंक्तियों के दोहे, कविताएं व अन्य सामाजिक साहित्य आदि सभी बुराइयों, अंधविश्वासों, आडंबरों, पूजा पाठ तथा मिथकों, के विरुद्ध ही संदेश देते हैं। कबीर जी के संदेश किसी जाति विशेष के लिए न होकर समस्त मानव समाज के लिए ही दिए गए देखे जा सकते हैं, तभी तो उन्हें आज समाज का हर धर्म व वर्ग के लोग उनको याद करते हैं। उनके दोहों और कविताओं को, सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव द्वारा संग्रहित करके गुरुग्रंथ साहिब में बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया था।
संत कबीर जी के साहित्य के अंतर्गत अनुरागसागर, कबीर ग्रंथावली, बीजक व अरबी ग्रंथ आदि आ जाते हैं जिनका धार्मिक धरोहर में अपना विशेष स्थान है और उनकी रचनाओं में अवधी व साधुककडी भाषा का प्रयोग देखा जा सकता है। इसी लिए कबीर जी को राम भक्ति शाखा का कवि भी कहा जाता है। क्योंकि उनके साहित्य से गुप्त व गूड ज्ञान, कर्म की प्रधानता, धर्मनिरपेक्षता व सही भक्ति की जानकारी मिलती है। कबीर पंथ की स्थापना भी उन्हीं के प्रयत्नों से मानी जाती है।
घर परिवार में सूफी संत कबीर दास जी के साथ उनकी पत्नी जिसका नाम लोई था, जिनसे एक बेटा कमाल नाम से व बेटी कमाली कहलाती थी। अंतिम दिनों में संत कबीर जी को अपनी मृत्यु की पूर्व जानकारी हो गई थीं। जैसा कि सभी को विधित ही था कि संत कबीर अंधविश्वाशों के बिलकुल ही विरुद्ध थे जबकि लोग अक्सर कहा करते थे कि काशी में मरने वाला सीधा स्वर्ग पहुंचता है और जो व्यक्ति मगहर में मरता है वह गधे की योनि में जन्म लेता है, इसी मिथक को नकारते हुवे संत कबीर अपनी अंतिम बेला में मगहर को प्रस्थान कर गए थे, जहां विक्रमी संवत 1518 में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।
इस वर्ष संत कबीर जी जयंती की 647 वीं वर्ष गांठ 21/06/2024 को सुबह 7:31 से 22/06/2024 के 6:37 सुबह तक मनाई जा रही है। सिद्ध पुरुष, विचारक, समाज सुधारक व महान कवि, कबीर जी की इस शुभ जयंती पर मेरा उनको शत शत नमन।