राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में वर्ष 2024 के स्वच्छ सर्वेक्षण पुरस्कार प्रदान किए। यह कार्यक्रम आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया था। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने स्वच्छता के महत्व, सांस्कृतिक जड़ों और चक्रीय अर्थव्यवस्था को लेकर महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि स्वच्छ सर्वेक्षण, जो शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता की स्थिति का मूल्यांकन करता है, अब देश के स्वच्छता प्रयासों को प्रोत्साहित करने का एक प्रभावी उपकरण बन गया है। उन्होंने प्रसन्नता जाहिर की कि 2024 का यह सर्वेक्षण दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छता सर्वेक्षण बना, जिसमें लगभग 14 करोड़ नागरिकों की भागीदारी रही।
राष्ट्रपति ने स्वच्छता को भारतीय जीवनशैली, संस्कृति और अध्यात्म से गहराई से जुड़ा बताया। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कथन “स्वच्छता ईश्वर भक्ति के बाद आती है” को उद्धृत करते हुए कहा कि यह सोच आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने बताया कि सार्वजनिक जीवन में उनकी यात्रा की शुरुआत भी स्वच्छता अभियानों की निगरानी से हुई थी।
मुर्मु ने पारंपरिक आदिवासी जीवनशैली की सराहना करते हुए कहा कि वह न्यूनतम संसाधनों में जीने, पर्यावरण से सामंजस्य बिठाने और अपशिष्ट कम करने का आदर्श उदाहरण है। उन्होंने कहा कि इस सोच को अपनाकर आधुनिक चक्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है।
उन्होंने स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण को अपशिष्ट प्रबंधन की सबसे अहम कड़ी बताया और परिवार स्तर पर इसे अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने शून्य-अपशिष्ट कॉलोनियों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया।
राष्ट्रपति ने स्कूली शिक्षा में स्वच्छता को जीवन-मूल्य के रूप में जोड़ने के प्रयासों की सराहना की और कहा कि इससे दूरगामी परिणाम प्राप्त होंगे। साथ ही उन्होंने प्लास्टिक और ई-कचरे को नियंत्रित करने को एक बड़ी चुनौती बताया, और सभी हितधारकों से सरकार द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करने की अपील की।
राष्ट्रपति मुर्मु ने विश्वास जताया कि यदि देशवासी पूरे समर्पण और संकल्प के साथ स्वच्छता अभियान में भाग लें, तो वर्ष 2047 तक भारत को दुनिया के सबसे स्वच्छ देशों में शामिल किया जा सकता है।