भूख : जीवन की अद्वितीयता और चुनौतियाँ पर डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासाभूख, कैसी भी हो मिटती नहीं ,मुकती नहीं,बढ़ती है मरती नहीं,तड़पाती है और डालती है खलल, अक्सर...
आदमी : आदमी का रूपांतरण
पत्थरों के इस शहर में,मिट्टी गारा धूल फांकते फांकतेभूख इतनी बड़ी,हरियाली गुल हो गई,जंगल के जंगल निगल गया आदमीपत्थरों के कारोबार में,पत्थरों को तोड़ते...
पेट : डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासापेट की जात नहींपात नहीं,रंग भेद की बात नहींबाहर भीतर दांत नहींइतना सा पेट,इतना खाता इतना खातासारा...