भूख : जीवन की अद्वितीयता और चुनौतियाँ पर डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

भूख, कैसी भी हो
मिटती नहीं ,मुकती नहीं,
बढ़ती है मरती नहीं,
तड़पाती है और डालती है
खलल, अक्सर नीद में !

भूख, पाटने को गांठने को
आदमी को आदमी से
आपस में भिड़ने को
और दंगे फसाद करने को,
कभी भी नहीं शर्माती !

भूख, तपती लू में
पसीने से खूब नहा के
सर्दी में कंपकंपा के
नंगें पांव दर दर की
ठोकरें खा के
खूनी आंसू बहा के
दाव पेंच बेहतर लड़ाती है !

भूख, राजनीति की
कुर्सी सिंहासन की
या मिलाई वाले विभाग की,
जमीन जायदाद की
आलीशान हवेली मकान की
चमचमाती गाड़ी वाली शान की
होती ही है !

भूख, इश्क की प्यार की
लाड दुलार की
दूध की चाहत में (अनाथ बच्चे)की
या बूढ़े दंपति में
बेटे के बाट की
भूख रहती है !

भूख, तो भूख है,
पेट में लगी आग की,
अपने अपने स्वार्थ की
या छिपी अंदर की चाहत की
जो कि कभी भी मिटती नहीं !

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