
वामन अवतार भगवान विष्णु द्वारा पाल कैसे बने – भगवान की लीलाओं का कोई अंत नहीं,कहीं भी कुछ भी कर सकते हैं वह।कभी मत्स्य रूप में,कभी अर्धमानव तो कभी किसी सुंदर सौम्य रूप में अवतरित हो कर जन कल्याण करके अपनी चमत्कारी लीलाएं दिखा ही जाते हैं। भगवान विष्णु के इन्हीं रूपों में एक रूप वामन अवतार का भी आता है,अब इस अवतार में आने की भगवान विष्णु को भला क्या जरूरत आन पड़ी थी,इसकी भी अपनी एक पौराणिक कथा बताई जाती है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार बताया जाता है कि एक बार देवताओं और असुरों के मध्य आपस में लड़ाई होने लगी।लड़ाई में असुर हारने लगे ,असुर राजा बलि इस लड़ाई में देव इन्द्र के वज्र से अपने कई एक अन्य असुरों के साथ मारा गया।
लेकिन शीघ्र ही असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि व उसके मरे साथी असुरों को संजीवनी बूटी का प्रयोग करके जीवित कर दिया।इसके पश्चात असुरों के लिए ही शुक्राचार्य ने एक यज्ञ किया गया ,जिसकी की अग्नि से एक दिव्य रथ, त्रोन व अभेद्य कवच की प्राप्ति हुई। यज्ञ से प्राप्त इन्हीं वस्तुओं से असुरों की शक्ति में भारी वृद्धि को होते देख कर देव इन्द्र डरने लगे कि शुक्राचार्य व बलि का (अश्वमेध यज्ञ से )कहीं स्वर्ग पर भी अधिकार न हो जाए। इस लिए देव इन्द्र व अन्य सभी देवता भगवान विष्णु जी के पास जा पहुंचे और उन्हें सारी स्थिति से अवगत करा दिया।भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वासन दे कर चिंता न करने को कहा। क्योंकि भगवान विष्णु तो कई एक लीलाओं के माहिर व सब कुछ जानते थे।
दूसरी ओर राजा बलि भी तो भगवान विष्णु का परम भक्त था तथा दान पुण्य व वचन का पक्का था जिसकी जानकारी भगवान विष्णु जी को भी थी। भगवान विष्णु ने अपनी लीला के अनुसार त्रेता युग में भाद्रपद मास की द्वादशी तिथि के दिन ऋषि कश्यप व अदिति के यहां बेटे के रूप में वामन अवतार में जन्म ले लेते हैं। भगवान विष्णु जी का यह पांचवां अवतार माना जाता है।इस तरह से ऋषि कश्यप व अदिति बालक के जन्म से धन्य हो जाते हैं और उसका लालन पालन व शिक्षा दीक्षा में कोई कमी नहीं रखते। एक दिन वामन रूप भगवान विष्णु ब्राह्मण के वेश में राजा बलि के यहां पहुंच जाते हैं और राजा बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि दान में मांगते हैं।
राजा बलि उस समय अपने यज्ञ में व्यस्त था और उसने ब्राह्मण को देख 3 पग भूमि देने के लिए हां कर दी। वामन अवतार भगवान विष्णु ने अपने पहले पग में स्वर्ग और दूसरे में सारी पृथी को नाप कर तीसरे पग के लिए बलि को कहा तो उसने अपना सिर आगे कर दिया,क्योंकि बलि भी अब समझ गया था भगवान विष्णु जी की माया को ,दूसरा उसने वचन भी तो दे दिया था 3 पग भूमि देने का।भगवान श्री विष्णु बलि से प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने तभी बलि को पाताल लोक दे कर वर मांगने को कहा। क्योंकि बलि तो भगवान विष्णु का पक्का भक्त था इस लिए उसने भी विष्णु जी से कह दिया कि आप हमेशा मेरे सामने ही रहे यही मेरे लिए आपका वर होगा।
इस प्रकार भगवान विष्णु को राजा बलि का द्वार पाल बनना पड़ गया था। दिए गए इस वर से कैसे मुक्त हुवे ,इसकी अलग ही पौराणिक कथा है,जिसको फिर किसी अन्य जगह चर्चा की जाए ही। वामन अवतार के इस दिन भगवान विष्णु की पूजा पाठ का अपना विशेष महत्व बताया जाता है और इस दिन व्रत भी रखा जाता है,जिससे सुख शांति,समृद्धि, बल बुद्धि व विद्या की प्राप्ति होती है।
पूजा पाठ के लिए लकड़ी के पटड़े को अच्छी तरह से जल से धो कर उस पर भगवान विष्णु की या वामन अवतार की मिट्टी या धातु की प्रतिमा स्थापित करके थाली में धूप बत्ती के साथ रोली,मौली,पीले रंग के फूल, नैवेध आदि रख कर पूजा की जानी चाहिए। भोग में केसर युक्त दही व मिश्री ली जाती है। पूजा के पश्चात कथा व आरती की जाती है। इस दिन चावल ,दही व मिश्री आदि बांटना शुभ समझा जाता है।