
डॉ. कमल के. प्यासा
ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन किया जाने वाले वट सावित्री नामक व्रत में सुहागिन महिलाओं द्वारा वट (बरगद) वृक्ष की पूजा की जाती है ताकि पति की लम्बी आयु हो, सुखी शांति व समृद्धि बनी रहे। लेकिन आखिर क्यों इसे वट सावित्री व्रत कहा जाता है ? इसकी भी एक लम्बी पौराणिक कथा है। इस पौराणिक कथा के दो नौजवान पात्र राजकुमारी सावित्री तथा राजकुमार सत्यवान बताए जाते हैं। राजकुमारी सावित्री मद्र राज्य के राजा अश्रापति की पुत्री थी।
राजकुमार सत्यवान वनवासी राजा द्युमत्सेन, जिनका शाल्वदेश में राज्य था का पुत्र था। दोनों काबिल व सुंदर आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे। इसी लिए राजा अश्वापति ने राजकुमारी सावित्री से अपने लिए वर चयन करने के लिए कह रखा था। तभी तो वह शीघ्र ही सत्यवान के प्रेम में समर्पित हो गई थी। लेकिन इस बात की जानकारी जब नारद मुनि को हुई तो उसने राजकुमारी सावित्री व उसके पिता राजा आश्रपति को आगाह कर दिया कि सत्यवान से शादी ठीक नहीं, क्योंकि उसका कुछ ही समय रह गया है और विवाह के एक मास पश्चात ही उसकी मृत्यु हो जाए गी। लेकिन पतिव्रता सावित्री तो सत्यवान को दिल दे चुकी थी वह नहीं मानी और उसने सत्यवान से शादी कर ली।
दिन बीतते गए और एक दिन सत्यवान जंगल में लकड़ी लेने के लिए जाने लगा तो सावित्री भी उसके साथ जंगल जाने की जिद करने लगी। सत्यवान ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी और साथ चल दी। जंगल में जब सत्यवान लकड़ी काटने लगा तो उसकी तबियत बिगड़ गई और वह अचेत हो गया, सावित्री ने उसके सिर को अपनी गोदी में रख कर सहारा देते हुवे नारद मुनि की कही बातों में खो गई और फिर उसने यमराज को सत्यवान को ले जाने का प्रयास करते देखा तो उसे विलाप करते हुवे रोकने लगी और यमराज के पीछे पीछे चल पड़ी। यमराज ने सावित्री को कई बार वापिस चले जाने को कहा। लेकिन पतिव्रता सावित्री नहीं मानी। आखिर यमराज उसकी निष्ठा, भक्ति व पतिव्रता धर्म को देखते हुवे उसे वापिस जाने को कहते कहते वर देने लगे। यमराज ने कहा, “मांगो और वापिस जाओ।”
सावित्री ने अपने सास ससुर की आंखों की ज्योति मांग ली और पीछे चलती रही। यमराज के कहने पर दूसरी बार उसने अपने ससुर के खाए राज्य को मांग लिया, फिर यमराज ने सौ पुत्रों का आशीर्वाद दे दिया लेकिन सावित्री ने यमराज का पीछा नहीं छोड़ा, “कहने लगी आप ने सौ पुत्रों का वरदान तो दे दिया और पति को ले जा रहे हो, ये कैसे हो सकता है ?” आखिर यमराज को सावित्री के सत्यवान के प्रति समर्पण, स्नेह व अटूट प्रेम को देखते हुवे, सत्यवान के प्राण वापिस करने ही पड़ गए। क्योंकि वट वृक्ष के नीचे ही पतिव्रता धर्म का पालन करते हुवे सावित्री ने अपने पति को यमराज से मुक्त करवाके फिर से जीवित करवा लिया था, इसी लिए तब से सावित्री व सत्यवान के साथ ही साथ वट वृक्ष का भी पूजन किया जाने लगा है।
बरगद के इस वृक्ष के पूजन से सुख शांति, समृद्धि व पारिवारिक सुख के साथ ही साथ संतान की भी प्राप्ति होती है। ये ही नहीं हमारे इसी वट (बरगद) के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश का वास भी रहता है। वट वृक्ष के इस व्रत के लिए सबसे प्रथम ब्रह्ममुहुर्त में स्नान आदि से निवृत हो कर, स्वच्छ लाल या पीले रंग के कपड़े धारण करने चाहिए। फिर व्रत का संकल्प लें और वट वृक्ष की पूजा करें तथा उसकी जड़ों में जल अर्पण करें। तत्पश्चात कच्चा सफेद सूत या कलावा ले कर उसके सात लपेटों के साथ सात परिक्रमा भी करें। व्रत की कथा के बाद आरती करें। यह समस्त कार्य सुहागिन महिलाओं द्वारा ही किया जाता है।