उमा ठाकुर, लोअर पंथाघाटी, शिमला
प्राचीन काल से ही भारत में नारी का उच्च स्थान रहा है। पौराणिक काल से पार्वती से लेकर त्रेता युग की सीता द्वापर युग की यशोद्या, अहिल्या और आधुनिक युग में कस्तूरबा और मदर टेरेसा आदि नारी ह्मदय में दया करूणा ममता और प्रेम हमेशा विद्यामान रहा। महिला मानव सृष्टि की जननी है, वह मनुष्य की जन्मदात्री है। नारी का त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति की अमूल्यनिधि है। मनु ने मनु स्मृति में स्त्रियों का विवेचन करते हुए लिखा है, यत्र नार्यस्तु पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवताः। अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। देहज प्रथा पर्दाप्रथा, महिलाओं को उच्च शिक्षा न देना आदि कुरीतियों ने समाज में महिलाओं की स्थिति को दयनीय बना दिया था, जिसका असर समाज में आज भी बरकार है। आज पूरे विश्व में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरूषों के साथ कंद्ये से कंद्या मिलाकर चल रही है । चार दिवारी से निकलकर महिलाएं पुरूषों के साथ समाज के हर क्षेत्र में आत्मविश्वास के साथ काम कर रही है। कामकाजी महिलाएं हो या फिर गुहणी, सभी कुशलता के साथ घर परिवार चलाकर सामाजिक दायित्व निभा रही है। महिलाओं की जिदगीं में तमाम तरह के बदलाव आ रहे हैं लेकिन आज भी उन्हें समाज में व्याप्त बुराईयों और धरेलु प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है समाचार पत्रों में आए दिन नारी की अस्मिता को तार-तार कर लहुलुहान करने के किस्सों से पन्ने भरे मिलते है। जहाँ पर नारी की मनोस्थिति को बयां करने के लिए शब्द भी कम पड़ जाते है, वहीं दुसरी ओर घिनौनी मानसिकता वाले ये चेहरे भीड़ का हिस्सा बन जाते है, फिर किसी लाडली का चीरहरण कर उसे उम्रभर समाज के इन उजले चेहरे से चेहरा छुपाने के लिए ़मजबूर कर देते है। सुबह की पहली किरण के साथ अखबार के पन्नोें को पलटती मॉ का दिल गुमनाम लाडली के साथ हुए धिनौने अपराध की खबर पढ़कर ज़रूर सिहर उठता है। समाज के निर्माण में महिलाओं की अहम भूमिका है। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के दूरस्थ गॉव की प्रसिद्ध समाज सेविका किंकरी देवी ने पर्यावरण को बचाने में अहम योगदान दिया ।
बहुत सी ऐसी महिलाएं है जो राजनैतिक, साहित्यिक व अपने रूचि अनुसार अपने-अपने क्षेत्र में एक अलग मुकाम हासिल कर चुकी है और दूसरी महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत बन रही है। बदलते परिवेश में हिमाचली गा्रमीण महिलाओं की बात करें, तो वह भी किसी भी क्षेत्रों में पीछे नहीं है। शिक्षित होने के कारण वह अपनी बेटी की शिक्षा पर उतना ही बल दे रही है जितना की बेटों की शिक्षा पर। वह मानसिक रूप से तो सशक्त है ही साथ ही स्वयं सहायता समूह चलाकर मधुमक्खी पालन, पापड़ व बढ़ियां तैयार करना, सिलाई व कढ़ाई का काम घर बैठ कर करके, अपनी आर्थिक स्थिति भी मजबूत कर रही है। हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में मनरेगा के तहत काम करने वाली महिलाओं की संख्या 61 के 63 फसीदी है। शहरी परिवेश की महिलाओं की अगर हम बात करें तो महिलाएं शिक्षित होने कारण घर परिवार की जिम्मेदारियों के साथ अपने करियर के प्रति भी सजग है। सेना, ऐयर हॉस्टेस पायलट,प्रशासन शिक्षा, टैक्नॉलौजी, मेडिकल, इंजिनियरिंग आदि क्षेत्रों में अपना लोहा मनवा चुकी है ।
वर्तमान संर्दभ में यदि हम महिलाओं की समाज में स्थिति की बात करें तो उसके की प्रमाण हमे मिल जाएगें महिला सशक्तिकरण का मतलब वास्तव में महिलाओं की सामाजिक मानसिक व आर्थिक स्थिति को मजबूत करना है फिर चाहे वह ग्रामीण परिवेश से हो या फिर शहरी परिवेश से जब तक महिलाआंे की मानसिकता में बदलाव नहीं आता, वैचारिक विकास उनका नहीं होता तब तक वह स्वंतत्र निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो सकती। महिला परिवार की अहम धुरी होती है ,जो रिश्तों की डोर को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास उम्र भर करती रहती है शादी से पहले मायके में, और शादी के बाद ससुराल में। वास्तव में नारी तुलसी के उस पौधे की तरह है, जो घर आंगन को हमेशा महकाती है। जब तक समाज में महिलाओं के प्रति मानसिकता में बदलाव नहीं आता, उनका वैचारिक विकास नहीं होता, तब तक समाज का विकास भी असंभव है। नारी यदि शिक्षित होगी, वह पूरे परिवार को शिक्षित कर सकती है, समाज को सुदृढ़ कर सकती है पूरे राष्ट को सुदृढ़ कर सकती है यदि वह शिक्षित होगी, तो उसे अपने अधिकारों का भी ज्ञान होगा। अपने ऊपर हो रही धरेलु हिंसा या फिर समाज की प्रताड़ना की शिकायत करते के लिए उसे कहाँ जाना है, उसे न्याय कैसे मिल सकता है, इन सभी के प्रति वह और ज्यादा सजग होगी।
महिला जब सक्षम, शिक्षित ओर सवाबलम्बी होगी तो सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ लेने के लिए भी आगे आएगी। साथ ही समाज की अशिक्षित महिलाओं को भी दिशा देने का काम कर सकती है । गाँव के अंतिम छोर तक जब शिक्षा की लौ पहुंचेगी,तो उसकी रोशनी से मसाज जरूरत जगमगा उठेगा। बदलते परिवेश में ग्रामीण क्षेत्रों के रहन सहन में बहूुत ज्यादा बदलाव आया है बेटी के जन्म पर अब खुशियाँ बांटी जाती है मैंने स्वंय ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से ऐसे परिवार देखे हैं, जिनकी एक ही बेटी है और अभिभावक उसकी परिवेश मे कोई कसर नहीं छोड़ते जरूरत है बस थोड़ा सजग होने की। बेटी अनमोल है उसे इतना सशक्त बनायें, ताकि वह भी आगे जीवन में सक्षम बनें, अपने फैसले स्वंय ले सके, विपरीत परिस्थित में भी डगमगाएं नहीं, बल्कि निडरता के साथ डट कर मुकाबला करें।
केवल महिला दिवस के दिन विचार गोष्ठी व सम्मेलन करने से महिलाओं के प्रति हमारा दायित्व पूरा नहीं हो जाएगा। जरूरत है तो इस बात की कि हर दिन महिलाओं के प्रति, उसकी सोच के प्रति हमारा सम्मान जागे, जीवन के हर क्षेत्र में उसे आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करें। इसकी शुरूआत तो हमें अपने घर से ही करनी होगी। ‘‘नारी अबला नहीं सबला है’’ इसी सोंच के साथ हमें अपनी मानसिकता को मजबूत करना होगा।
Women are foundation of this society…..Happy Womens Day….?