उमा ठाकुर, शिमला
नमन माँ के जज़्बे को
जो मासूम धड़कन
बचाए रखना चाहती है
उस नरपिशाची सोच से
जो है आतुर सांसों को घोंट
गटर में फैंकने को ।
नमन माँ की ममता को
जो शहादत पर बेटे की
देती है सलामी
रोक लेती है सैलाब आसुओं का
देशहित में
करती कुर्बान ममता की छाँव ।
नमन माँ के फ़र्ज को
जो इस कोरोना काल में रोज़
ओड़कर लिबास
सफेद, खाकी, केसरिया
जंग को हरदम तैयार
माँ भारती को बचाने ।
नमन माँ के हौसले को
जो उठाती है झाड़ू
कभी बीनती कचरा
प्रकृति का संगीत बचाने
अंगारों भरी अंगीठी पर
खींच लाती है बादल ।
नमन माँ कीे उम्मीद को
जो सहती है हर तपिश
भींच लेती है मुट्ठी में
टुकड़ा रोटी का
जुटाती है नई सुबह की किरण
मगर रोंदे जाते हैं उसके सपने
काले आसमान तले ।
नमन हर माँ के
जीवन संघर्ष को जो
क्षितिज में लीन होने से पहले
बो देती हैं बीज मूल्यों के
गहरे भीतर
ताकि बचा रहे अहसास ।
बने हर बेटी सशक्त ।
Maa is a blessing that no one replace