डॉ. कमल के. प्यासा – जीरकपुर, मोहाली
धुन संक्रांति के दिन से सर्दी का प्रकोप बढ़ने लगता है, क्योंकि इस दिन से सूर्य वृश्चिक राशि से निकल कर धनु राशि में प्रवेश करता है, पौष मास शुरू हो जाता है और इस समय को खस मास का आरंभ कहा जाता है। इस मास में सभी शुभ कार्य करने वर्जित रहते हैं। क्योंकि सूर्य का तेज व गति इस दिन से कम हो जाती हैं। सूर्य की गति व तेज कम होने के पीछे बताया जाता है कि भगवान सूर्य देव, जिनके रथ को सात घोड़े हमेशा चलाए रखते हैं, उन्हें विश्राम के लिए निकाल दिया जाता है और उनके स्थान पर गधे रथ को हांकते हैं जिससे रथ की गति धीमी व सूर्य का तेज भी कम हो जाता है और सर्दी बढ़ जाती है। इसी लिए इन दिनों अर्थात 14 जनवरी तक कोई भी शुभ कार्य, विवाह शादी, मुंडन, गृह प्रवेश, निर्माण कार्य या जगह जायदाद के साथ, गाड़ी आदि की खरीद भी नहीं की जाती। हां इस दिन पितरों का तर्पण व सूर्य पूजा, दान आदि करने का बड़ा महत्व बताया गया है। इससे सुख शांति, धन प्राप्ति व पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। तभी तो इस दिन पवित्र नदियों व तीर्थ स्थलों पर स्नान व दान पुण्य के लिए कहा जाता है। सूर्य मंत्र का जाप 108 बार करने को कहा जाता है। प्रसाद में खीर व मीठे व्यंजन बनाने को कहा जाता है।
धनु सक्रांति के पीछे कई एक पौराणिक कथाएं भी बताई जाती हैं, जिनमें सूर्य व पुत्र शनि की कथा के अनुसार बताया जाता है कि भगवान सूर्य देव की पत्नी छाया, सूर्य देव का तेज सहन नहीं कर पा रही थी दूसरे देव सूर्य को अपने तेजवान व बलवान होने का कुछ अभिमान भी था और ये दोनों बातें सूर्य पत्नी से सहन नहीं हो पा रही थीं, लेकिन जैसे कैसे वह सब कुछ सहन करती रही और पुत्र शनि का जन्म भी हो गया। पुत्र शनि के जन्म के पश्चात तो, दोनों मां व बेटे सूर्य का दुख सहते रहे, लेकिन कब तक? आखिर तंग आकर ही छाया ने सूर्य को कुष्ठ रोग से ग्रसित हो जाने का शॉप दे दिया। उसी शाप से क्रोधित हो कर सूर्य देव ने अपने पुत्र शनि को ही जला दिया और घर से भी निकाल दिया। बाद में सूर्य के दूसरे पुत्र यम द्वारा शनि पूजन करके व उसे सूर्य से मिलने को प्रेरित किया था। जिस पर (यम के कहने पर) शनि ने पिता सूर्य का स्वागत काले तिल दे कर किया था। जिससे प्रसन्न हो कर ही देव सूर्य ने भी शनि को मकर राशि का वरदान दे दिया था। इसी लिए मकर संक्रांति में काले तिलों का दान सुख समृद्धि के लिए श्रेष्ठ बताया गया है।
एक अन्य (महा भारत के भीष्म पितामह की) कथा के अनुसार बताया जाता है कि जिस समय युद्ध के पश्चात भीष्म पितामा ने इच्छा मृत्यु का वरदान मांगा था तो सूर्य देव के उत्तरायण होने के कारण ही (मकर संक्रांति पर) प्रतीक्षा करने पर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
ऐसे ही सांब व सूर्य देव की एक अन्य कथा के अनुसार बताया जाता है कि, जिस समय भगवान कृष्ण के पुत्र सांब कुष्ठ रोग से ग्रसित था तो उसने भी लगातार 12 वर्ष तक भगवान सूर्य की तपस्या की थी और ठीक हो गया था। तभी तो इस दिन सूर्य पूजा का विशेष महत्व बताया जाता है।
क्योंकि भगवान सूर्य को भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है, इसलिए इस दिन इन दोनों की पूजा को शुभ व फलदाई समझा जाता है। सूर्यदेव को जल अर्पित्व करके पूजा के लिए पीले फूल लिए जाते हैं और धूप घी का दिया जला कर पूजा अर्चना की जाती है, भोग में खीर या कुछ मीठा ही अर्पित किया जाता है।
भगवान विष्णु पूजन के लिए साफ सुथरे लकड़ी के पटड़े पर विष्णु की प्रतिमा या उनका चित्र स्थापित करके पीले चंदन का तिलक लगा के, तुलसी दल चढ़ाएं और विष्णु सहस्त्रनाम या ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। इसी से सुख शांति और धन संपत्ति प्राप्त होती है।



