December 27, 2024

आंवले का पेड़ — प्रो. रणजोध सिंह

Date:

Share post:

प्रो. रणजोध सिंह, सन विला फ्रेंड्स कॉलोनी, नालागढ़, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश

इस अलौकिक दुनिया में प्रत्येक आदमी के यूं तो अनेक सपने होते हैं परंतु ‘खुद का घर’ एक ऐसा सपना है जिस के बगैर कम से कम भारत में तो जीवन परिपूर्ण नहीं होता | यद्यपि जीवन यापन के लिए लाखों लोग किराए के मकान में रहते हैं मगर फिर भी लोग सदैव ‘खुद के घर’ की कामना बड़ी शिद्दत से करते हैं | किराए के मकान में रहना उन्हें कुछ ऐसा लगता है मानो किसी पराए बच्चे को गोद में उठाया हो | उस समय मेरी आयु पैंतीस-छत्तीस वर्ष रही होगी, जब मैंने भी खुद का घर बनाने की कल्पना की |

मैंने जैसे ही घर बनाने की चर्चा अपने पिता जी से की, उन्होंने तुरंत अपनी जिन्दगी के तमाम अनुभवों की पोटली मेरे सामने खोलते हुए स्नेहपूर्वक कहा, “बेटा भले ही घर चाहे छोटा बनाना मगर यदि सदा प्रसन्न रहना चाहते हो तो घर में एक बगीचा अवश्य बनवाना |”

मैंने भी अपने पिता श्री की इच्छा का अक्षरशः पालन किया तथा घर बनाते समय न केवल बगीचा बनवाया अपितु घर में स्वच्छ हवा आने के लिए कुछ सदाबहार पौधों का भी प्रावधान किया | घर के पिछले हिस्से में खाली जमीन पर कुछ फलदार पौधों के साथ साथ एक आंवले का पौधा भी लगा दिया | मेरे परिवार ने इस छोटे से बाग-बगीचे की न केवल स्वयं खूब सेवा की अपितु इसकी देखभाल के लिए एक माली भी रख लिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि हमारी इस लघु-वाटिका में उन्नत किस्म इतने आंवले लगते कि हम लोग पूरे मोहल्ले में बांटते मगर फिर भी आंवले बच जाते |

मोहल्ले वाले भी कहां पीछे रहने वाले थे, कोई मुझे आम दे जाता तो कोई पपीता | कोई मोसम्मी का स्वाद चखाता तो कोई अपने खेत की ताज़ी सब्जी लेकर चला आता | मैंने सुना था कि जो बांटोगे वह कई गुणा होकर मिलेगा मगर मैंने तो आंवले बांटे थे, भगवान् का शुक्र है कि मुझे बदले में आंवले नहीं मिले वर्ना काफी मुश्किल हो जाती | मेरे परिवार के सगे-संबंधी व अन्य मित्र-गण जब भी हमारे घर आते, तो बगीचे की तारीफ किये बगैर नहीं रहते |

यूं तो बगीचे में आम, अमरुद, और लीची के पौधे भी थे मगर आंवले की शान सबसे निराली थी | एक तो यह वर्ष भर हरा भरा रहता, दूसरे जनवरी-फरवरी में तो यह फलों से लक-दक हो जाता था | घर के कोठे पर चड़कर कोई बच्चा भी आंवलों को तोड़ सकता था | घर में आने वाले मेहमान न केवल आंवले के औषधीय गुणों की चर्चा करते अपितु श्रीमती जी उन्हें उपहार स्वरूप तीन चार किलो आंवले अवश्य भेंट करती | परन्तु मेरे जैसे लोग जिन्होंने बगीचे से आज तक एक फूल तक नहीं तोड़ा, जो फूल की सुन्दरता को निहार सकते है, उसकी सुन्दरता का आनंद ले सकते हैं, उसकी फोटो खींच कर ऑनलाइन शेयर कर सकते हैं, पर अपने हाथों से किसी फूल को तोड़ नहीं सकते, भले ही उस फूल का प्रयोग ईश्वर की पूजा के लिए ही किया जाना हो |

मेरी इस आदत से ईश्वर के परम-भक्त जो उसे ताज़े सुगन्धित फूल अर्पण करना चाहते थे, अक्सर नाराज़ रहते थे | खैर सब लोगों का भक्ति का अपना अपना फ़लसफ़ा है | अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि जो व्यक्ति एक फूल नहीं तोड़ सकता वह आंवले कहाँ तोड़ता होगा | हाँ, एक बात अवश्य थी कि आंवले के सीजन में प्रतिदिन उनकी सैंकड़ो फोटो लेता और अपने मित्रों के साथ शेयर करता |

एक दिन माली ने बताया कि आंवले का एक ताना घर के कोठे को नुक्सान पहुँचा रहा था अगर शीघ्र ही इस पेड़ को काटा न गया तो घर की छत को भारी नुक्सान हो सकता है | आनन-फानन में राज-मिस्त्री को बुलाया गया, उसने स्तिथि का जायजा लेकर कहा कि आपकी छत तो ठीक हो जाएगी मगर फिर भी आपको इस पेड़ को कटवाना ही पड़ेगा क्योंकि इस पेड़ का एक तना छत को लगभग टच कर रहा है और जब तेज हवा चलती है तो ये छत से बार-बार टकराता है, जिसके कारण छत को नुक्सान हो रहा है |

मेरे परिवार के सदस्यों को मालूम था कि मैं पेड़ काटने को कभी राज़ी नहीं हूँगा | अत: उन्होंने बीच का रास्ता निकल लिया | बाज़ार से बहुत मोटे-मोटे रस्सों का इंतजाम किया गया और उस तने को, जो छत को छूता था, उन रस्सों से बांध कर कुछ दूरी पर लगे भरी-भरकम आम के पेड़ के साथ पूरी तरह खींच कर इस तरह बाँध दिया गया कि तेज हवा के चलने पर भी वह तना छत से न टकराए | माली ने बताया कि कुछ समय बाद बिना रस्से के भी यह पेड़ स्वयं ही विपरीत दिशा में बड़ने लगेगा | इस प्रकार यह पेड़ भी सुरक्षित रहेगा और आपकी छत भी | मैं बयाँ नहीं कर सकता कि उस दिन मुझे आंवले के न काटने पर कितनी प्रसन्नता हुई, जैसे तेल न होने की वजह से बुझते हुए दीपक में किसी ने दोवारा तेल डाल दिया हो और वह एक बार फिर शान से जलने लगा हो |   

वक्त के साथ-साथ जहां मेरी जरूरतें बढ़ती गई, मेरे परिवार की जरूरतें भी बढ़ने लगी | और मुझे अपने बच्चों के लिए अतिरिक्त कमरों की आवश्यकता महसूस होने लगी | काफी सोच-विचार के बाद इंजीनियर को बुलाकर दो कमरों का एक सेट तैयार करने का आग्रह किया गया | इंजीनियर ने काफी नाप-नपाई करने के बाद एक भव्य मकान का नक्शा मेरे हाथ में सौंपते हुए कहा, “आपका मकान इतना सुंदर बनेगा कि लोग देखते रह जाएंगे, मगर इसके लिए आपको यह आंवले का पेड़ कटवाना पड़ेगा |”

पेड़ को काटने की बात सुनते ही मुझे एक जोरदार झटका लगा और बुजुर्गो की यह कहावत कि ‘बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी’, याद आ गई | मैं चुपचाप वहां पड़ी हुई कुर्सी में धंस गया और अतीत की यादों में खो गया मुझे याद आया कैसे मैं इस पेड़ की छांव में बैठ कर अपने परिवार वार सहित सुबह का नाश्ता किया करता हूँ…, कैसे श्रीमती जी इस वृक्ष के फल तोड़-तोड़ कर मेरे मित्रों को दिया करती है…. कैसे हमारे घर में आने वाले मेहमान इस आंवले की डाल पकड़ कर भांति-भांति की सेल्फी खिंचवाते हैं… कैसे तरह-तरह के पक्षी गण सुबह-शाम इसी वृक्ष पर चहकते-फुदकते हैं |

एकाएक मैंने तुरंत निर्णय लिया और इंजीनियर को बुलाकर साफ-साफ शब्दों में कहा, “इसमें कोई शक नहीं कि मुझे इस घर का विस्तार करना है मगर इस वृक्ष को हर हाल में बचाना है, बाकी घर कैसे बनेगा यह तुम देखो |”

यदि इरादे नेक हो तो दुनिया में कोई भी चीज़ असंभव नहीं है | इंजीनियर में बड़ा दिमाग लगाया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यदि मैं इस वृक्ष बचाना चाहता हूँ तो घर तो बन जाएगा मगर इतना सुंदर नहीं बनेगा जितना वह बनाना चाहता था |

उसने इसके दो कारण बताएं, “पहली बात तो यह है कि यह पेड़ आपके घर के ऊपर जाने वाली सीढ़ियों के बीचो-बीच आ रहा है इसलिए इस पेड़ को बचाने के लिए सीढ़ियां टेडी-मेडी बनानी पड़ेगी | दुसरी बात यह है कि यह पेड़ घर की दीवार के बिलकुल पास है अतः इसकी जड़ें निकट भविष्य में घर के फर्श और दीवार को नुकसान पहुंचयेगीं | आज नहीं तो कुछ साल बाद इस पेड़ को काटवाना ही पड़ेगा |”

हमारा माली भी वहां पर उपस्थित था | मैंने आशा भरी नजरों से माली की तरफ देखा तो वह तत्परता से बोला, “अरे बाबू जी, हम तो पहिले हीं कहत रहीं अतना बड़ पेड़ घर में अच्छा ना लागे ला | आज ना त कल कटावावे के ही पड़ी|” (अरे बाबू जी, मैं तो पहले से ही कह रहा था कि इतने बड़े वृक्ष घरों में अच्छे नहीं लगते | आज नहीं तो कल इस पेड़ को कटवाना ही पड़ेगा|)

शायद माली इस पेड़ की कटाई-छंटाई से ऊब चूका था और किसी तरह इसे कटवा कर अपने काम को कम करने की फिराक में था | कुल मिलाकर नये घर के उत्साह में या यूँ कहे की नये घर की आड़ में, हर कोई इस पेड़ की बलि देने को तत्पर था |

अब मेरे पिता श्री भी इस दुनिया में नहीं थे, जो मुझे इस दुविधा से बाहर लाते, मगर उनके बोल अभी तक मेरे कानो में स्पष्ट गूंज रहे थे | उन्होंने एक बार मुझसे कहा था कि हज़ारों तीर्थ करने से बेहतर होता है घर के किसी कोने में एक वृक्ष लगाना | मैंने अपनी समग्र शक्ति लगाकर एक बार फिर दृढ़तापूर्वक अपना निर्णय सुना दिया, “कल की कल देखेंगे, फिलहाल आप घर बनाए मगर इस वृक्ष को टच किए बगैर |”

कुछ दिन बाद हमारे घर का विस्तार हो गया जिसकी सीढ़ियां टेढ़ी थी, मगर आंवले का वृक्ष पूरी शान-ओ-शौकत से घर के सामने लहरा रहा था |

Daily News Bulletin

Keekli Bureau
Keekli Bureau
Dear Reader, we are dedicated to delivering unbiased, in-depth journalism that seeks the truth and amplifies voices often left unheard. To continue our mission, we need your support. Every contribution, no matter the amount, helps sustain our research, reporting and the impact we strive to make. Join us in safeguarding the integrity and transparency of independent journalism. Your support fosters a free press, diverse viewpoints and an informed democracy. Thank you for supporting independent journalism.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

BBSSL: Pioneering Seed Preservation in India

Union Home Minister and Minister of Cooperation Amit Shah chaired a review meeting of Bhartiya Beej Sahkari Samiti...

जुब्बल नावर कोटखाई क्षेत्र में शिक्षा के क्षेत्र में नए आयाम, 25 लाख की लागत से बनेगा विद्यालय भवन

शिक्षा मन्त्री रोहित ठाकुर आज जुब्बल क्षेत्र के सरस्वती नगर पंचायत के अंतर्गत चंद्रपुर गाँव में थे, जहाँ...

‘Ek Bharat Shreshtha Bharat’ Scheme Strengthens Unity Among Youth

In a vibrant exchange of ideas and experiences, students from the National Institute of Technology (NIT) Hamirpur and...

ललित कला अकादेमी की चित्रकला प्रदर्शनी: 49 कलाकृतियों की चित्रकला प्रदर्शनी

ललित कला अकादेमी, जो भारतीय कला और संस्कृति के संवर्धन में अग्रणी भूमिका निभा रही है, ने अपनी...