हिंदू तीज त्योहारों में बसंत पंचमी,एक प्रमुख त्योहार है। इस त्योहार को कला , संगीत ,शिक्षा व ज्ञान की देवी सरस्वती के जन्म दिन के रूप में भी मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के आधार पर पता चलता है कि सृष्टि निर्माता देव ब्रह्मा ने जिस समय मानव व जीव जंतुओं का निर्माण किया ,तो उन्हें अपने निर्माण में किसी भी प्रकार की हलचल या उनके होने न होने में का अहसास नहीं हुआ तब उन्हें अपने द्वारा किए निर्माण से बहुत निराशा हुई । अपनी निराशा के समाधान के लिए देव ब्रह्मा जी भगवान विष्णु जी के पास पहुंच गए,जिसके लिए भगवान विष्णु ने उन्हें उपाय बता दिया और ब्रह्मा जी ने तदानुसार पृथ्वी पर जल का छिड़काव कर दिया।
उनके जल छिड़काव से पृथ्वी पर भारी कम्पन होने लगा और उसी से वहां पर एक शक्ति ( देवी रूप वाले में )की उत्पति हो गई।चतुर्भुज उस देवी के एक हाथ में वीणा,एक वर्द मुद्रा में,एक में पुस्तक व एक में माला लिए हुवे था।उस देवी के प्रकट होने व उसके वीणा के वादन से सारी सृष्टि में हलचल के साथ ही साथ समस्त प्रकृति कई प्रकार के रंगों व मधुर चहकती सुरीली आवाजों की रौनक से महक उठी।इससे देव ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हो गए और तब उन्होंने प्रगट हुई देवी को सरस्वती का नाम दे दिया।और तभी से इस दिन को देवी सरस्वती के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है।इस देवी (सरस्वती) को कई एक नामों से जाना जाता है,जैसे कि बागेश्वरी,भगवती,देवी शारदा, वीणावादनी व वाग्देवी आदि।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाए जाने वाले इस पवित्र त्योहार को सभी लोग बसंत पंचमी के नाम से जानते हैं और इसी दिन से बसंत की शुरुआत हो जाती है।देवी माता सरस्वती के इस दिन, प्रकट होने के कारण ही इस दिन को (विद्या ,कला और ज्ञान की देवी) इनके शुभ जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है।बसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्रों,पीले सफेद फूलों,पीले पकवान,पीले रंग के भोग के साथ ही साथ पीले फलों व पीले रंग की मिठाईयों का विशेष स्थान रहता है।क्योंकि पीला रंग मानसिक शुद्धता, शीतलता, सफलता, खोज व ज्ञान का प्रतीक माना गया है और यह रंग बृहस्पति ग्रह से जुड़ा रंग बताया जाता है।
प्रकृति भी जब अंगड़ाई (खिलती)लेती है तो चहुं ओर पीले रंग के फूलों की ही ब हार नजर आती है।पौधों में नई नई कोंपलों के साथ नए फूल पत्ते दिखने लगते हैं।तितलियां फूलों पर मंडराने लगती हैं और भंवरे महकती कलियों पर गुनगुनाते हुवे उन्हें चूमते दिखते हैं। ठंडी ठंडी समीर चलती है,फूलों और कलियों की मधुर महक के साथ समस्त वातावरण सुन्दर और कामुक सा लगने लगता है।आसमान रंगबिरंगी पतंगों से खिल उठता है ,यही तो है मेरे देश की बसंती बसंत के प्यारे से रंग। तभी तो बसंत को ऋतु राज अर्थात ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है।
आगे शिव पुराण की एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पता चलता है कि एक बार भगवान शिव अपनी तपस्या में लीन थे और माता पार्वती जो कि उनसे विवाह के संबंध में बात करना चाहती थी,लेकिन उनकी तपस्या भंग न हो जाए इस लिए वह उनसे बात नहीं कर पाई और शादी भी नहीं हो सकी।जब इस संबंध में तारकासुर को पता चला तो उसने देव ब्रह्मा की घोर तपस्या करने के पश्चात उन्हें प्रसन्न करके ,अपनी मृत्यु का वरदान (भगवान शिव के पुत्र से पाने का )मांग लिया।क्योंकि उसे पता था कि भगवान शिव विवाह नहीं करने वाले।इसके पश्चात तारकासुर ने अपने बाहुबल से स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया और उसके अत्याचारों से सभी देवी देवता,ऋषि मुनि व आम जन दुःखी रहने लगे।तारकासुर से छुटकारा पाने के लिए बाद में सभी देवी देवता भगवान विष्णु जी के पास जा पहुंचे और उन्हें अपनी व्यथा सुना कर उपाय पूछने लगे।भगवान विष्णु जी जानते थे कि तारकासुर को देव ब्रह्मा जी ने वरदान दे रखा है।तारकासुर से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु ने सुंदरता ,काम और सौंदर्य के देवता काम देव को इसके लिए राजी कर लिया।
वह भगवान शिव को उनकी तपस्या से जागृत करे।काम देव अपनी काम वासना की शक्ति में माहिर होने के कारण ही ,उसने शीघ्र ही समस्त वातावरण को ऐसा बदला कि सभी ओर ऋतु का परिवर्तन हो गया,चारों ओर बसंत के कारण हरियाली ,भांत भांत के फूल खिल कर महकने लगे,ठंडी ठंडी हवा चलने लगी और समस्त वातावरण कामुक सा हो गया।लेकिन भगवान शिव तपस्या में वैसे ही लीन रहे।तब काम देव ने अपने काम बाण से शिव पर प्रहार किया,जिससे भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुल गया और नेत्र से निकली ज्वाला ने काम देव को वहीं भस्म कर दिया।तभी भगवान शिव को तारकासुर के बारे बता कर उन्हें शांत किया गया ।लेकिन काम देव की पत्नी रति अपने पति के लिए विलाप कर रही थी,जिस पर भगवान विष्णु ने उससे कहा कि द्वापर युग में तुम्हारा पुत्र भगवान श्री कृष्ण के यहां प्रदुम्न के रूप में पैदा होगा।
उधर भगवान शिव अब सब कुछ समझ चुके थे और उन्होंने देवी पार्वती से उनकी इच्छानुसार विवाह भी कर लिया ,जिससे उनके यहां कार्तिक स्वामी नाम का बालक पैदा हुआ ,जिसने बाद में तारकासुर का वध करके देवताओं और ऋषि मुनियों को उस राक्षस से मुक्ति दिलाई थी।इस तरह से बसंत पंचमी का काम देव व रति की पौराणिक कथा से भी संबंध बन जाता है। बसंत पंचमी एक हिन्दू त्योहार होते हुवे भी ,इसको कुछ चिश्ती समुदाय के सूफी संतों द्वारा बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है।क्योंकि 12 वीं शताब्दी में कुछ सूफी संतों द्वारा निजामुद्दीन ओलिया की दरगाह से इस त्योहार को मनाने की शुरुआत की थी।