डा. हिमेन्द्र बाली, साहित्यकार व इतिहासकार, नारकण्डा, शिमला
पश्चमी हिमालय के गर्भ में स्थित मण्डी जिले की पूर्ववर्ती रियासत सुकेत का वैदिक काल से सांस्कृतिक महत्व रहा है. यह क्षेत्र जमदग्नि, कश्यप, गौतम, वशिष्ठ, व्यास व शुकदेव जैसे वैदिक ऋषियों की तप: स्थली रहा है. आज भी उपरोक्त अनेकानेक ऋषियों की देव रूप में आस्था पूरे क्षेत्र में व्याप्त है. सुकेत के निहरी तहसील के अंतर्गत बाडू नामक स्थान पर बाड़ा देवता का मंदिर स्थापित है. सुकेत रियासत के संस्थापक वीरसेन यहां दिव्य रूप में पूजित हैं. बाड़ा देव को पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर का रूप भी माना जाता है. वास्तव में सेनवंश का राजवंश चन्द्रवंश से सम्बंध रखता है. ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर पाण्डवों के वंश में राजा परीक्षित के बाद उनके वंशजों ने सत्रह सौ वर्षों तक इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) में शासन किया. तदोपरांत इस वंश के अंतिम शासक खेमराज के बाद सेन वंश ने वंग देश (बंगाल) में राज्य किया. आठवीं शताब्दी में वीरसेन ने सतलुज नदी को पार कर तत्तापानी में पहुंचकर यहां के शासकों- राणाओं व ठाकुरों के विरूद्ध युद्धाभियान आरम्भ किया. अंतत: वीरसेन ने सरही के ठाकुर को पराजित कर महामाया कालकूट के दिव्य आशीर्वाद से पांगणा में सेन वंश की स्थापना की.
बाड़ा देव को बाडू बाड़ा भी कहा जाता है. सोलन जनपद में प्रचलित लोकमान्यता के अनुसार बाड़ा देव का मूल स्थान सोलन के मांगल क्षेत्र के सामने सतलुज नदी से तीन किमी दूर बाड़ू नामक स्थान पर है. अत: स्थान विशेष में प्राकट्य के कारण बाड़ा देवता को बाडू बाड़ा देव कहा जाता है. सोलन के मांगल से लगती मंज्याटन धार के पूर्वी किनारे एक चोटी पर सुकेत के दक्षिण में बाड़ा देव का मंदिर है. सोलन में बाड़ा देव अथवा बाडू बाड़ा को क्रमश: पाण्डव ज्येष्ठ युधिष्ठिर अथवा बर्बरीक और पाण्डव वंशज सुकेत रियासत के संस्थापक वीरसेन माने जाता है. बाडूबाड़ा देवता का एक अन्य मंदिर अर्की तहसील के अंतर्गत चण्डी-कशलोग पंचायत के कांगरीधार गांव में सुकेत के बाड़ू गांव के ठीक सामने है. ऐसी मान्यता है कि वीरसेन धार्मिकवृति के व्यक्ति थे जिनका देहान्त बाडू़ गांव में हुआ. अत: बाड़ू गांव में देहान्त होने और उनकी धार्मिक निष्ठा के कारण लोगों ने उन्हे देवतुल्य स्थान प्रदान कर पुज्य पद प्राप्त किया.
सोलन में मान्यता है कि महापराक्रमी वीरसेन के दिव्यरूप बाड़ू बाड़ा का मुख्य मंदिर पांगणा में स्थित है. हालांकि पांगणा में वीरसेन ने सुकेत रियासत की स्थापना कर चार दशक तक राज्य किया था. वीरसेन ने ही कालकूट (कलकत्ता) से यहां उद्भूत महामाया राजराजेश्वरी की शक्ति से अनुग्रहीत होकर माता को पांगणा के ऐतिहासिक अपने राज प्रसाद में प्रतिष्ठित किया था. इस संदर्भ में तेरहवीं शताब्दी का लिखित लोक साहित्य साक्ष्य रूप में उपलब्ध है. पांगणा में हालांकि वीरसेन का मंदिर तो नहीं है परन्तु पांगणा के समीप कनेरी में टौणा देवता का मंदिर है जो बाड़ू बाड़ा के संयुक्त देव हैं और रथ में बाड़ू बाड़ा के साथ प्रतिष्ठित है. कनेरी में टौणा देवता के साथ ही भारती खमीर भी प्रतिष्ठित है. भारती खमीर वास्तव में नाथ सिद्ध परम्परा के भर्तृ़हरि राजा है. लोक मान्यता में भारती खमीर टौणा देव के बाद बाडू बाड़ा देव के दूसरे नम्बर के सेनापति है.
निहरी के बाडू़ गांव में पैगोडा मण्डपीय शैली के भीमाकाली मंदिर के पार्श्व भाग में बाड़ूबाड़ा का पैगोडा शैली का मंदिर है. सम्भव है कि बाडूबाड़ा के अग्रभाग में प्रतिष्ठित भीमाकाली वीरसेन की कुल देवी महामाया राजराजेश्वरी ही हो. चूंकि वीरसेन के साथ महामाया का संयोजन सहज ही परिलक्षित होता है. साथ ही पाण्डवों व उनके वंशजों का कामरूप की माता कामाख्या से सम्बंध अटूट रहा है. पाण्डव अब ज्ञातवास काल में कामरूप भी गये थे और करसोग के काओ में कामाख्या माता के मंदिर का जीर्णोद्धार भी किया था. भीमाकाली का पाण्डवों से अटूट सम्बंध भी प्रमाणिक है. सोलन क्षेत्र में प्रचलित भारथा में बाडू बाड़ा ने मैदान से आकर भज्जी से सतलुज पार कर सुकेत के नालनी और बाडू में अपने मूल स्थान स्थापित किये.
सुकेत, सोलन व सिरमौर में पूजित बाडू बाड़ा की मान्यता पाण्डव वंशज वीरसेन के रूप में जगत प्रसिद्ध है. नालनी में इस देवता को सत बाड़ा कहकर युधिष्ठिर का देव रूप माना जाता है. युधिष्ठिर व वीरसेन के एक ही वंशज होने के नाते बाडू बाड़ा रूप में संयुक्त रूप में अवतरण को भी नकारा नहीं जा सकता है. बहरहाल बाडू बाड़ा सुकेत क्षेत्र के एक राजसी देव रूप में अपार लोकप्रियता लिये हुए है. सुकेत व सोलन के मांगल क्षेत्र के सेन वंशज परिवार की बाडू बाड़ा देव के साथ पारिवारिक रिश्ते आज तक कायम है. इस बात की पुष्टि देवता द्वारा अपनी भारथा में की जाती है. वास्तव में हिमाचल में महान विभूतियों, सिद्धों, नाथों, राक्षसों, राजाओं व नागों के देवीय पदों को पाने की घटनायें आम है. बाडू बाड़ा देव सुकेत के राज वंशज होने के साथ-साथ यहां की धर्म-संस्कृति के मूल में स्थित हैं.