बड़े भाईसाहब एक बहुत ही प्यारी कहानी है, जो न सिर्फ उस समय के लिए सार्थक थी जब ये 1910 में लिखी गई, बल्कि आज भी उतनी ही सार्थक है। तब जो शिक्षा प्रणाली का हाल था और समाज का शिक्षा के प्रति जो रवैया था, वह 114 साल बाद भी वैसे ही हैं। प्रेमचंद के शब्द – “रटंत का नाम शिक्षा रख छोड़ा है”, आज भी उतने ही सटीक हैं, जितने तब थे। बच्चों के पूर्ण विकास पर ध्यान ही नहीं दिया जाता, जिसमे खेल-कूद, कला, संगीत, नृत्य और रंगमंच शामिल हों।
ये कहानी दो भाइयों की है। बड़ा भाई एक किताबी कीड़ा है जो जी-जान से पढ़ाई करता है, लेकिन हर दर्जे में 2 से 3 साल लगाता है। वहीं छोटा भाई का ध्यान खेल-कूद में ज़्यादा रहता है, पढ़ाई में कम। फिर भी वह दर्जे में अव्वल आता है। बड़े भाई की खिसियाहट बढ़ती चली जाती है जिसे वह छोटे भाई पर हर वक़्त निकालते रहते हैं। उसे तरह-तरह के ताने देते हैं, ज्ञान के नाम पर शिक्षा का भयानक चित्र प्रस्तुत करते हैं। अपने मन पर बहुत काबू रखते हैं। उन्हें किसी भी मनोरंजक गतिविधियों में भाग लेना समय और पैसे की बर्बादी लगता है और गैर ज़िम्मेदाराना व्यवहार। फिर एक क्षण ऐसा आता है, जब वह अपने को रोक नहीं पाते और एक पतंग लूटने के लिए उसके पीछे भाग लेते हैं।
एक छोटी सी, प्यारी सी कहानी होते हुए भी, गाँव के लड़कों के साथ इसे करना एक काफी बड़ी चुनौती रही। ख़ासतौर पर एक अभिनेता, जिसकी बाहें नहीं है, उसके साथ काम करना काफी मुश्किल रहा। हाथ और बाहें अभिनेता के बहुत सक्षम हथियार होते हैं, जिन्हे वह बहुत सकुशलता से अपने भाव अभिव्यक्त करने के लिए इस्तेमाल करता है। तो उनके अभाव में, किस तरह से अन्य अंगों का प्रयोग करके अभिव्यक्ति की जाए। बहुत तेज़ मूवमेंट देना भी शुरू में समस्या रही क्यूंकि उस से शरीर का संतुलन बिगड़ जाता। लेकिन अभिनेता ने पुरज़ोर मेहनत की और अपनी गति पर काबू पाकर संतुलन को हासिल किया।
निर्देशक – अमला राय
अभिनेता – हरीश और सूरज
संगीत – भावना और माही
सेट – सौरभ
दिनांक – 14 अप्रैल 2024
समय – शाम 4 बजे
स्थान – ब्लिस, रौड़ी धर्मपुर, (सोलन)
बहुत अथक परिश्रम के बाद हम ये नाटक 14 अप्रैल 2024 को शाम 4 बजे प्रस्तुत कर रहे हैं, सोलन ज़िला में धर्मपुर स्थित रौड़ी गाँव में। मुख्य अतिथि हैं श्री राजेश शर्मा, आईएफ़एस, राज्य परियोजना निदेशक, समग्र शिक्षा, (हि. प्र.)।