शिमला से एम.फिल करने के पष्चात पंकज अपनी नौकरी में ऐसा रमा कि उसे अपने सभी संगी साथी भी भूल बिसर गए। आज बरसों बाद वह शिमला जा रहा था। सर्दी का मौसम था,चारों तरफ धुन्ध ही धुन्ध नजर आ रही थी। बस की अधिकतर सीटें खाली थी,और पंकज अतीत की यादों में खोया हुआ था।
हिमाचल पथ परिवहन की बस बल खाती पहाड़ी सड़क से गुजर रही थी। दूर, चील, देवदार, व कैल के वृक्षों से घिरे लाल-2 छतों वाले मकान दिखाई दे रहे थे। ज्यों-ज्यों बस शिमला के निकट पहुॅंच रही थी,त्यों-त्यों पॅंकज उन पुरानी जानी पहचानी इमारतों व दुकानों को देखता जा रहा था। सारी पुरानी भूली-बिसरी यादें एक के बाद एक उसके मानस पटल पर उभरने लगी थी । कैसे वह कुछ वर्श पूर्व अध्ययन के लिए शिमला आया था, किस तरह उसने वह सुहाना समय अपनी पढ़ाई के साथ व्यतीत किया था ? न जाने मालरोड़ की रौनक कैसी होगी ? क्या सरिता और कविता माल रोड़ पर उसी तरह बाल जी के काॅउंटर पर पेस्ट्री खाने के बहाने किसी के इन्तजार में खड़ी होगीं…..,?
क्या दीपक व बबीता हिमानी काॅफी हाऊस में काॅफी की चुस्कियों के साथ-साथ अपने विष्वविद्यालय की गतिविधियों की चर्चा कर रहे होंगंे ? पंकज के मस्तिश्क में एक के बाद एक नए-नए प्रष्न उभर रहे थे बारिश ने जोर पकड़ लिया था । बस की छत से पानी टपकने लगा था। पंकज अपनी सीट से उठकर दूसरी वाली सीट पर बैठ गया और फिर अतीत की यादों में खो गया। इसी उधेंड़-बुन में वह सोचने लगा,यदि बस अड्डे से संजौली के लिए बस न मिली तो बारिश में गीला होना पडेगा । इसलिए वह मन बनाकर विक्ट्री टनल के पास ही उतर कर अपने उसी पुराने वाले स्थान अर्थात नीना आन्टी के यहाॅं जाने की सोचकर पुरानी यादों में खोया आगे बढ़ने लगा।
वह सामने वाली कच्ची सड़क अब पक्की हो चुकी थी। कई एक ऊॅंची-ऊॅंची सलैब वाली बिल्डिंग बन गई थी। बहुत बदल गया था शिमला इस छोटे से अन्तराल में। पड़ेास में रहने वाली शालू भी तो अब जवान हो गई होगी । कितनी सुन्दर थी वह उस समय जब वह लेडी इरविन स्कूल में पढ़ती थी, हाॅं कभी-कभी मेरे पास विज्ञान व मैथ पढ़ने के बहाने आकर काफी-2 देर तक गप्पें हांकती रहती थी…। क्या अब भी वह उसी क्वाॅटर में रहती होगी ?? क्या वह उसी तरह की भोली-भाली बातें आज भी करती होगी ? ‘‘अंकल आज मुझे ए.जी. आॅफिस के एक यू.डी.सी ने बहारों की मलिका कह कर पुकारा था । हाॅं अंकल वह साॅंवला सा लड़का जो आपके साथ माल रोड़ में घूम रहा था,कल ही मेरे साथ वाली सीट पर बैठकर षाही सिनेमा में पिक्चर देख रहा था। अंकल वह मुझे चाय के लिए भी पूछ रहा था । मैंने उसे बार-बार इन्कार भी किया, लेकिन उसने जबरदस्ती ही कप मेरे हाथ में पकड़ा दिया । अंकल आप जानते हो न उसे ?’ रोज वह इसी तरह की बातें करती रहती थी। ”अंकल यह घड़ी मुझे मुम्बई से आई है। पिछले वर्ष जब हम चैडविक फाॅल पिकनिक मनाने गए थे तो उससे मेरा परिचय हुआ था । इस बार वह समर फैस्टीवल में आएगा तो मै आपकी मुलाकात करवाऊॅंगी बड़ा अमीर है वह, अंकल।’
‘‘ मगर शालू तुम्हें इस तरह हर किसी को लिफ््ट नहीं देनी चाहिए।’’ ‘‘क्यों अंकल?’’ ‘‘तुम अभी बच्ची हो शालू तुम नहीं समझोगी ।’’ ‘‘मगर अंकल इसमें मेरा क्या बिगड़ा ? दोस्ती की दोस्ती और फिर ये नए-नए उपहार भी !’’ न जाने कैसी-2 बातें करती रहती थी वह। पंकज अपने पुराने क्वाटर वाले पड़ोसियों की यादों में खोया न जाने क्या-क्या सोचता हुआ आगे बढ़े जा रहा था। हाॅं नीना आन्टी भी तो कहती थी कि शालू की माॅं ने अपने पति को छोड़ रखा है। कहते हैं कि वह उम्र में षालू की माॅं से 20-25 वर्श बड़ा है जब कि वह अभी भी जवान लगती हैं, ये शालू तो न जाने किस का खून . है? देखते नहीं पंकज इस लड़की के नैष्न नक्ष , नखरे भी तो अमीराना है। भई हो भी भला क्यों नहीं , बड़े-बड़े लोगों के घरों में जाती है । नाम तो घर की साफ सफाई का होता है न पंकज जी मगर अन्दर की बात तो भगवान ही जानता है। तुम ही सोचो आज इस महंगाई में कैसे गुजारा चलाता है और यहाॅं तो शालू के नित नए-नए डैªस न जाने कहां से आते रहते हैं ? सच कहती हॅंू पंकज इसने अपनी जिदंगी तो पति को छोड़कर बरबाद की ही है। अब इस तितली सी बेटी को भी बरबाद कर रही है। जवान बेटी के रहते, रोज कोई न कोई इसके यहाॅं बैठा ही होता है। मैंने तो शालू को भी बहुत समझाया है कि अपनी माॅं को समझाए और बूढ़े बाप की खैर खबर ले ।
जानते हो पंकज क्या कहती थी षालू, मुझे तो कहते हुए भी अजीब लगता है…कहती थी, ”क्या लगता है मेरा वह बूढ़ा क्या करना है मुझे उसके पास जा के … और रखा भी क्या है उस टी.वी के मरीज के पास?’’ इस तरह मुॅंह बना-2 कर कहती है जैसे कि किसी अमीर बाप की बेटी हो । न जाने आज कल की औलाद को क्या हो गया है? नीना आन्टी ने ही तो बताया था कि अब इस लड़की ने भी अपनी माॅं के तौर तरीके अपना लिए है। घर से तो स्कूल कहकर जाती है और स्कूल में देखो तो वहाॅं से गायब ही रहती है न जाने किस-किस के साथ सैर सपाटे सिनेमा और जाखू की पहाड़ियों में तस्वीरें खिचवाती फिरती है। फिर आकर कहती है, ‘‘नीना आन्टी आज हमने फल्ल़्ाा फिल्म देखी है वह है न जीतू, वही जिसकी लोअर बाजार में रेडीमेड की दुकान है। वही जो मेरी सहेली का धर्मभाई है। वही हमें अपने साथ सिनेमा दिखाने ले गया था। ये टाॅप भी मुझे उसी ने दिया है। कैसा लग रहा है तुम्हें आन्टी?’’ ‘‘आन्टी तुम्हें पसन्द है तो मैं तुम्हें पिंकी के लिए सस्ता ला दूॅंगी, मेरे से वह ज्यादा पैसे नहीं लेता।’’ ”सामान बाबू जी सामान।“ कुली उतरने वाली सवारियों से पूछ रहे थे। बस टनल के पास रूक चुकी थी और पंकज की विचार तन्द्रा भी टूट गई। वह जल्दी-जल्दी अपने बैग को उठाता हुआ बस से नीचे उतर गया।
पंकज के कदम आन्टी के घर अर्थात अपने उस पुराने क्वाटर की ओर अग्रसर हो रहे थे। वह सोच रहा था कि न जाने अब उस वाले क्वाटर में कौन रह रहा होगा? आन्टी के बच्चे भी अब बड़े हो गए होंगंे। तभी उसके कानों में आवाज पड़ी ”पंकज अंकल ।“ दो बच्चे दौड़ते हुए उसके पास पहुॅंच गए और पंकज के हाथ से बैग लेकर आगे-आगे चलने लगे। ‘‘अरे रिन्कू, तुम तो बहुत बड़े हो गए हो कैसे हैं आन्टी जी और तुम्हारे पापा ?“ ‘‘अंकल हम आपको रोज याद करते थे अब हम आपको नहीं जाने देंगे। अंकल अंकल वह जो कुते से खेल रहा है न,वह शालू का बेटा पप्पू है।’’ ‘‘अच्छा तो शालू की शादी हो गई? क्या करता है इस पप्पू का पापा?’’ पंकज ने प्यार से पप्पू को गोदी में उठाते हुए बच्चों से पूछा। ‘‘ अंकल हम इसके साथ नहीं खेलते।’’ ‘‘क्यों भई, तुम इसके साथ क्यों नहीं खेलते? देखो कितना सुन्दर है हमारा पप्पू ,है न पप्पू? इसे भी अपने साथ खिला लिया करों नही तो मैं तुम्हारे यहाॅं नहीं आऊॅंगा ,पप्पू के घर चला जाऊॅंगा।’’ ‘‘पर अंकल मम्मी कहती है,इसके पापा का कोई पता नहीं कौन है ?
दूसरे बच्चे भी तो इसके पापा के बारे में पूछते रहते हैं और हालड़ हालड़ कहकर उसकी खिल्ली उड़ाते है। अंकल हालड़ किसे कहते है?“ पंकज रिन्कू की बातें सुनकर सुन्न रह गया और सोचने लगा नीना आन्टी ठीक ही कहती थी और फिर रिन्कू से कहने लगा, ‘‘बेटा जिसके पापा का कोई पता नहीं होता उसे लोग हालड़ कहते है . मगर रिन्कू तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए क्योंकि ऐसा कहना गाली देना होता है। तुम्हें मालूम नहीं हालड़ कहने से पप्पू की माॅं को कितना दुःख होता होगा, कोई नहीं जान सकता।?’’ ‘‘अंकल उधर देखो मम्मी और षालू आपस में बातें कर रही है। मम्मी मम्मी पंकज अंकल आ गए।’’ नीना ने मुस्कराहट के साथ पंकज का अभिवादन किया और उसे अपने कमरे में ले गई। पंकज ने देखा षालू का चेहरा उतरा हुआ था और उसने अपनी नजरें झुका रखी थी। अन्दर ही अन्दर न जाने कितने गम़ भरे आॅंसू वह पी गई किसे मालूम कोई पता नहीं? बारिश की बून्दा-बान्दी लगी हुई थी ! सूर्य न जाने कब का ढल चुका था। वह बेचारी उस अन्धेरे से भरे अन्धकार की फैली बाहों तथा डर व ठण्ड के प्रकोप से सिकुड़ती-ठिठुरती हुई सिमटती जा रही थी ! उधर पंकज भी करवटें बदलते हुए उसके (प्रति हुए अन्याय के ) बारे में सोचे जा रहा था !