
जोगी उम्र के उस पड़ाव पर था जहाँ पर बच्चे सारा दिन मस्ती करने के पश्चात घर आकर माँ-बाप पर रौब जमाते हैं कि वो कॉलेज में पढ़कर आए हैं| सारा दिन खेलना, खाना, दोस्तों के संग धमा-चोकड़ी करना, और शाम को माँ के खाने में गलतियां निकलना, बस यही उसकी दिनचर्या थी|
वह अपनी मित्र–मण्डली का स्वयंभू नेता था| उसकी मित्र-मण्डली को देखते ही मुहल्ले वालों की त्योरियां चढ़ जाती थी कि अब कोई न कोई नया धमाल होने वाला है| शरीफ बच्चे अपना खेल छोड़ कर अपने अपने घर आ दुवकते थे ताकि खेल के मैदान में जोगी की मित्र मण्डली निर्विवाद खेल सके और कोई नया बखेड़ा न खड़ा कर दे|
और इधर जोगी-सेना को देखते ही नव-युवतियों का खून सूख जाता था| मजाल है कोई लड़की उनके सामने से गुजरे और कोई भद्दी सी टिपणी उनके मुख से न निकले, यह तो नामुमकिन था| एक दिन जोगी-सेना अपने चिरपरिचित क्रिकेट ग्राउंड से काफी दूर क्रिकेट खेलने के बाद सुस्ता रही थी|
तभी एक सुन्दर नव युवती वहाँ से गुजरी | जोगी-सेना तो जैसे इसी इंतजार में थी| इस सेना के एक मंझे हुए कमांडर ने बिना समय गवाए एक भद्दी सी टिपणी हवा में उछाल दी | युवती ने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा, ज़ोर से आवाज़ हुई चट्टाक ये एक करारा चांटा था जो जोगी ने उस लड़के की गाल पर रसीद कर दिया था|
उस लड़के के साथ-साथ सारी क्रिकेट मण्डली भी हक्की-बक्की रह गई कि ऐसा अवांछित क्या हुआ कि जोगी भाई इतना नाराज हो गया, आज तक तो यह काम वह स्वयं करता था| तभी वह गुस्से से चिल्लाया, “निकम्मों ये मेरी छोटी बहन है| ” जोगी को देखकर उसकी बहन का गुस्सा आँखों से झरझर आँसू बनकर बहने लगा था, जोगी को काटो तो खून नहीं, दोस्त लोग अपनी ग़लती पर शर्मिंदा थे कि उन्होंने उसकी बहन को पहचाना नहीं|
खैर, उस दिन जो होना था सो हुआ परन्तु उस दिन के बाद जोगी ने फिर किसी लड़की की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नहीं की| उस दिन, जोगी ने भले ही वह चांटा अपने दोस्त के गाल पर मारा था पर वास्तव में चांटा जोगी के मुहँ पर ही लगा था|