April 8, 2025

‘दान का नियम’ – रणजोध सिंह

Date:

Share post:

प्रोफेसर वासुदेव और प्रोफेसर नीना एक सरकारी महाविद्यालय के बीस छात्र-छात्राओं के समूह को लेकर शैक्षणिक भ्रमण पर थे| इस भ्रमण के दौरान वे एक मंदिर में चले गए, जहां पर पुजारी ने बताया कि यह मंदिर भगवान जी के बाल रूप को समर्पित है| अतः यहां पर आप सभी लोग घुटनों के बल पर चलकर भगवान जी के दर्शन करें| फिर पुजारी जी ने आगे कहा कि यहां पर आप अपने माता-पिता जी को स्मरण कर भगवान को जो भी दान देंगे, उसका पुण्य फल तुरंत आपके माता-पिता को मिलेगा| यदि आपके माता-पिता इस दुनिया में नहीं है तो भी उन्हें स्वर्ग में उत्तम-पद की प्राप्ति होगी|

इससे पहले की बच्चे कुछ प्रतिक्रिया करते प्रो. नीना ने अपने पर्स से ग्यारह सौ रूपये निकालकर ऊंची आवाज में बोली, “मेरी तरफ से यह ग्यारह सौ रूपये मेरे माता-पिता की याद में भगवान जी को समर्पित|” पुजारी जी ने प्रसन्न होते हुए उन्हें आगे बुलाया, लंबा सा तिलक उनके माथे पर लगाया और एक नारियल उनकी झोली में डालकर प्रसन्नतापूर्वक बोला, “बेटी ईश्वर तुम्हारे माता-पिता को सदैव प्रसन्न रखें|” अब पुजारी जी अत्यंत उत्साह के साथ बुलंद आवाज में बोले, “सभी लोग एक-एक करके आगे आइए और अपने-अपने माता-पिता का नाम लेकर दान करते जाइए, मगर याद रहे आपको यहां घुटनों के बल चलना है, और ऊंची आवाज में माता-पिता का नाम लेकर सच्चे दिल से दान करना है|”

पुजारी जी का यह आदेश सुनकर तो समस्त छात्र-छात्राओं की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई| वास्तव में यह सारे छात्र-छात्रायें गरीब परिवारों से थे और इसी कारण सरकारी महाविद्यालय में पढ़ रहे थे| वे तो किसी तरह उधार लेकर इस शैक्षणिक टूर के लिए निकले थे| यद्यपि ये बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह अपने माता-पिता से अथाह प्रेम करते थे, परन्तु ये बच्चे उनकी खुशी व सेहत के लिए भगवान से प्रार्थना तो कर सकते थे मगर दान नहीं| इसी कशमकश में कोई भी छात्र / छात्रा पुजारी जी के बार-बार कहने पर भी आगे नहीं आ रहा था| प्रो. वासुदेव जी ने उनकी इस दुविधा को भांप लिया वे तुरंत अपने हाथ में एक रुपए का सिक्का लेकर आगे आये जोर से बोले, “मैं अपने माता-पिता के नाम पर यह एक रुपया दान करता हूँ|”

पुजारी जी खा जाने वाली दृष्टि से वासुदेव की तरफ देखा, मगर वह पूरी आत्मविश्वास के साथ बच्चों से बोले, “दोस्तों आप लोग अपने माता-पिता के नाम पर यदि कुछ दान दे सकते हैं, तो ठीक है और अगर नहीं दे सकते तब भी ठीक है| भगवान जी बड़े दयालु हैं वे केवल भक्तों का प्रेम देखते हैं, दान नहीं| वैसे मैं आपको बता दूं दान का डिंडोरा नहीं पीटा जाता| दान का नियम यह है कि दाएं हाथ ने क्या दान दिया, यह बाएं हाथ को नहीं पता चलना चाहिए|” वह थोड़ी देर के लिए रुके और पुजारी जी की तरफ मुखातिब होकर बोल, “क्यों पुजारी जी मैं ठीक कह रहा हूँ न? दान का यही नियम है न?” पुजारी जी को काटो तो खून नहीं, उनके मुंह पर बड़ा सा ताला लग गया और सभी बच्चों ने सहज होकर भगवान के दर्शन कर लिए|

Daily News Bulletin

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

पोषण पखवाड़ा 2025: जिला शिमला में शुरू हुआ जन आंदोलन

भारत को कुपोषण से मुक्त करने के लिए वर्ष 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की गई और...

Cu-Phen Nanozyme Prevents ROS, Powers Safer Cellular Energy Production

Cu-Phen represents a significant advancement in artificial enzyme development. Unlike other nanozymes with undefined and open active sites....

PM Modi Marks 10 Years of MUDRA, Interacts with Beneficiaries

The PM Narendra Modi interacted with MUDRA Yojana beneficiaries on the occasion of completion of 10 years of...

DDWS Joins Poshan Pakhwada 2025 to Promote Clean Water & Sanitation

Department of Drinking Water and Sanitation (DDWS) under Ministry of Jal Shakti, is actively participating in the 7th...