हो रहा है
छलनी छलनी
सीना धरती का,
नदी का
पहाड़ का !
जंगल
बने मैदान ,
पेड़ों का मिटा निशान !
बिगड़ा संतुलन,
पशु पक्षी
सब चुप चाप
उदास और निराश !
क्योंकि, बेजान हैं,
बेजुबान हैं
सब ।
क्या करें ?
बोल सकते नहीं !
कौन दे दलील
कैसे कहां
करें अपील ?
है नहीं
कोई वकील !
विकास की
अंधी दौड़ में,
रेत, बजरी और
पत्थर पानी की
मांग बहुत बड़ी है !
कैसी विकास की दौड़ चली है !