प्रियंका वैध की नौवीं किताब “गुलमर्ग गुलज़ार होगा !” इस किताब ने कई मौसम देखे, इसकी क़लम कभी भीगी तो कभी सूखी, स्याही हमेशा रही, कभी बसंत तो कभी पतझड़, ऊष्मा भी रही और बरसात भी, क़लम ढूँढती रही कहानियाँ और मैं किरदारों में खोई रही ।
कुछ साल बीते और 34 कहानियों का संग्रह अंततः आपके हाथों के सान्निध्य के लिए बाज़ार में आ गया । उम्मीद है आप इस किताब के पन्नों और शब्दों में मेरी छवि देखोगे और मुझे जवाब ज़रूर दोगे । इस किताब के शब्द आपके ज़हन में उतरने के अभिलाषी हैं ।