डॉ. कमल के. प्यासा

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। वैसे यदि गुरु पूर्णिमा का शाब्दिक अर्थ देखा जाए तो गुरु (गु+रु) के योग से बना शब्द है, जिसमें गु का अर्थ होता हैं अंधकार या अंधेरा और रु का अर्थ प्रकाश से लिया जाता है, इस तरह अंधेरे से प्रकाश की और ले जाने वाले साधन या व्यक्ति को गुरु का दर्जा दिया गया है। तभी तो गुरु पूर्णिमा के दिन (शिक्षा पूर्ण होने पर) गुरुओं अर्थात शिक्षकों को विशेष मान सम्मान दिया जाता है और उन्हें उपहार दे कर सम्मानित किया जाता है। प्राचीन काल में भी गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत, गुरु के आश्रम में शिष्य रह कर शिक्षा प्राप्त करते थे। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात शिष्यों द्वारा गुरु को विशेष गुरु दक्षिणा व उपहार भेंट किए जाते थे, जो कि गुरु के लिए विशेष सम्मान होता था। गुरु भी अपने शिष्य के मार्गदर्शन में किसी प्रकार की कमी नहीं रखता था।
तभी तो गुरु के मान सम्मान में संस्कृत का यह श्लोक अक्सर कहा जाता है:
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवों महेश्वरा।
गुरु साक्षात परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
अर्थात आप देवताओं के देवता हैं, आप (गुरु) ही ब्रह्मा हैं, विष्णु हैं और शिव हैं। आप ही साक्षात सबसे बड़े (परमबह्म) पराणी हैं, मैं नतमस्तक होकर आपको नमन करता हूं।
आगे ऐसे ही गुरु की (महिमा की) व्याख्या संत कबीर ने अपने दोहों में खूब की है और एक दोहे में कबीर जी कहते हैं:
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय ।।
अर्थात यदि गुरु और भगवान दोनों साथ हों तो किस को पहले नमन करना चाहिए। गुरु ही सबसे बड़े होते हैं, जिनकी कृपा से भगवान के दर्शन होते हैं।
इस तरह से कबीर जी ने कई दोहों में गुरु की महिमा की चर्चा की है, जिनसे गुरु पूर्णिमा के महत्व के साथ ही साथ गुरु की महिमा की जानकारी भी हो जाती है।
गुरु पूर्णिमा के दिन ही ऋषि वेद व्यास जी का भी जन्म हुआ था और उन्होंने चार वेदों और ब्रह्म सूत्रों के साथ ही साथ कई एक अन्य ग्रंथों की रचना भी की थी। फलस्वरूप भारतीय दर्शन शास्त्र में उनका विशेष स्थान रहा है और इसलिए उनके नाम पर ही इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने ऋषि शांडिल्य को ज्ञान प्राप्ति के लिए चयन किया था और महात्मा बुद्ध ने भी इस दिन अपने पांच शिष्यों को ज्ञान दिया था। इसलिए इस दिन का महत्व और भी बड़ जाता है तथा भगवान विष्णु जी के पूजन के साथ ही साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। चंद्रमा के पूर्ण रूप में होने के कारण ही इस दिन चंद्रमा की पूजा अर्चना के साथ ही साथ आर्घ्य भी दिया जाता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजा पाठ के लिए लकड़ी के पटड़े को जल से साफ किया जाता है। पटड़े पर भगवान विष्णु व लक्ष्मी की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करके धूप बत्ती, अक्षत, फूल, आदि के साथ पूजा पाठ के साथ व्रत रखा जाता है। पूजा पाठ में भगवान विष्णु के मंत्रों के साथ निम्न मंत्रों का जाप किया जाता है:
1 ॐ नमों: नारायण
2 ॐ नमों भगवते वासुदेव
इसके साथ ही साथ अपने गुरुओं अध्यापकों के मान सम्मान के साथ दीक्षा में उपहार आदि का आयोजन भी रहना चाहिए, ताकि समाज में फैला अशिक्षा का अंधकार शिक्षा रूपी प्रकाश में बदल सके।