उच्च शिक्षा: एक लघुकथा

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रणजोध सिंह

रणजोध सिंह

“बेटा मन लगाकर पढ़ाई करो और जल्दी से अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ ताकि तुम्हें किसी की गुलामी न करनी पड़े।” मां ने भावुक होकर पहली बार कॉलेज जा रही अपनी बेटी से कहा।

इससे पहले कि बेटी कोई प्रतिक्रिया करती, दादाजी अपनी पोती के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहने लगे, “बेटी खूब पढ़ो, पढ़ना कोई बुरी बात नहीं। अपने पैरों पर खड़े  होकर आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना भी कोई बुरी बात नहीं। मगर यह सोचना सरासर गलत है कि तुम्हारे ससुराल वाले तुम्हें गुलाम बनाने के लिए ही तुम्हारी राह देख रहे हैं। हम तुम्हें उच्च शिक्षा इसलिए दे रहे हैं ताकि आने वाले समय में तुम अपने परिवार का सुदृढ़ संबल बन सको।”

दादा जी थोड़ी देर के लिए रुके और फिर प्रेमपूर्वक मुस्कुराते हुए बोले, “और हां एक बात और याद रखना, यहां परिवार का मतलब केवल पति या बच्चें नहीं है। तुम्हारे पति से जुड़ा हुआ हर सदस्य तुम्हारा परिवार है।” पोती ने हँसते हुए दादाजी की गोद में सिर रख कर कहा, “जी दादा जी।”

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