दीप्ति सारस्वत
मुझे मधुमक्खी ने काटा एक बार
मुहल्ला सर पर
उठा लिया मैंने
विचलित से तुम कभी
रगड़ रहे थे लोहा
बुरी तरह सूज गए मेरे हाथ पर
तो कभी बदहवासी में
टटोल रहे थे कोई दवा
जब तक हाथ पूरी तरह ठीक न हुआ
जाने अनजाने बहाने से
एक नज़र देख ही जाते थे तुम।
तुम को भी काट गई थी
एक दिन मक्खी
अंदाज़ भर लगाया मैंने
जब हल्के से हाथ झटक किनारे हो
अपनी उंगली को काम पे से
ध्यान हटाये बिना रगड़ने लगे थे तुम
पूछने पर टाल गए
ज़बरदस्ती देखने पर भी
कोई खास सबूत न दिखा
किसी ज़हरीले कीट के काटने का।
एक दिन हौले से बताया था तुमने
इलाज हो चुकने के बाद कि
एक ज़हरीला सांप डस गया था पैर में
डॉक्टर ने बताया तुम पैर पर कस कर रस्सी बांधे
बेझिझक खुद ही जा पहुंचे थे अस्पताल
अजीब हो कैसे दर्द खा जाते हो
ज़हर पी जाते हो
घिरे रहते हो
आस पास सब तरह के
खतरनाक हिंसक जीवों से
विकासशील एक जंगल में
माथे पर कोई शिकन नहीं
मुझे देख मुस्कुराना फ़िर नहीं छोड़ते!
बेहद खूबसूरत रचना 👍👌