19 नवंबर को जन्म हुआ था,
वाराणसी तब धन्य हुआ था,
लक्ष्मीबाई आई थी उस दिन धरा पर,
अपना हिंदोस्तान तब कृतज्ञ हुआ था।
हुई सगाई वीरांगना की झांसी में,
छोटी सी वो मनु बनके आई झांसी की रानी थी,
बहादुर इतनी थी कि कहते सब वो तो मर्दानी थी,
हिंदोस्तान को जिस पर गर्व रहेगा वो तो झांसी वाली रानी थी।
राजवंशों के सिंहासन डोल उठे थे,
जब उसने अपनी भृकुटी तानी थी,
उसकी वीरता का लोहा था माना उन सब ने,
सच में ही वो झांसी वाली रानी थी।
अपनी वीरता से उसने लौ जगाई वो आज़ादी की दीवानी थी,
तब जाके सबने आज़ादी की कीमत पहचानी थी,
हर हिंदोस्तानी हतप्रभ था देख उसकी जो कहानी थी,
वाह क्या खूब वीरांगना थी वो जो झांसी वाली रानी थी।
1857 में अलख जगाई वो तलवार पुरानी थी,
बुंदेलों के मुंह से सबने सुनी वो कहानी थी,
विद्रोह करके अंग्रेजों को नाकों चने चबवाए जिसने,
आज़ादी की दीवानी थी वो जो झांसी वाली रानी थी।