July 1, 2025

जड़ों का दर्द – रणजोध सिंह

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जनाना री रोटी (पहाड़ी संस्करण): रणजोध सिंह
रणजोध सिंह

महकते हुए हसीं गुल ने अपनी जड़ों से पूछा
तुम्हारा वजूद क्या है?
जवां बेटे ने अपने बुड़े बाप से पूछा
आपने मेरे लिए किया क्या है|?

दरिया ने मिटा दिया खुद को
समंदर के लिए,
समंदर दरिया से बोला
मेरे सामने तेरी क़ीमत क्या है|

वो जो ब-अदब आया था
मेरे घर वोट के लिए,
चुनाव जीतते ही उसने कहा
तेरी औक़ात क्या है

लहू जिगर का दिया है
हमने ख़िज़ाँ को,
अब बाहर आई तो बोले
तेरा काम क्या है

हम जिनकी मोहब्बत में
रुसवा हुए जहां में,
मासूमियत से बोले
ये ‘रणजोध’ चीज़ क्या है|

                                                       

जड़ों का दर्द – रणजोध सिंह

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