दीप्ति सारस्वत प्रतिमा, प्रवक्ता हिंदी, रा .व. मा. विद्यालय, बसंतपुर, शिमला

लाड़

मां पर अकारण आते ही प्यार
लिपट उस से
करते हम फ़र्माइश
आज हलुआ बना दे न माँ
बना ही दिया तो
अपने हाथ से खिला भी दे
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मातृ भूमि पे अकारण ही
आता है जब प्यार
धूल उड़ाते ख़ूब किलकारी
मारते खेलते हैं
बालक मैदानों में
कबड्डी तो कभी कुश्ती
गंदले तालाबों में
भैसों को नहलाते
सीखते तैराकी
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सपने में बड़बड़ाते तो
शब्द होते
मातृ भाषा के
अचानक हकबका जाने पर
फूटती मुंह से हिंदी ही
गौरतलब है
लोरी के बोल
होते हैं हमेशा
मातृभाषा के ही
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हमेशा तो नहीं होता न
कभी कभी ही तो
लड़ाया जाता है लाड़
वो भी किसी अपने
करीबी के साथ ही
अविरल बहने दो
इस भाव को
न करो संकोच
रोको न टोको
बह जाने दो प्रेम की धारा
आज हिंदी दिवस है ।

 

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