लोक संस्कृति और कला के पुजारी जैसे महान व्यक्तित्व ,लाल चंद प्रार्थी का जन्म जिला कुल्लू के नग्गर नामक कस्बे में 3 अप्रैल ,1916 को मध्य वर्गीय परिवार में हुआ था। उन दिनों नग्गर कुल्लू की राजधानी हुआ करती थी। 10 वीं तक की शिक्षा कुल्लू से प्राप्त करने के पश्चात् प्रार्थी जी को उच्च शिक्षा के लिए कुल्लू से बाहर लाहौर जाना पड़ा था।क्योंकि उन दिनों लाहौर और होशियार पुर ही शिक्षा प्राप्त करने के लिए इस पहाड़ी क्षेत्र के निकट के केंद्र थे।
लाहौर के एस0 डीo कॉलेज से आयुर्वेदाचार्य की उपाधि 1934 ई0 में प्राप्त करने के पश्चात् लाल चंद प्रार्थी जी नौकरी करने लगे और इसी मध्य उनका संपर्क कुछ क्रांतिकारियों से हो गया फलस्वरूप लाल चंद प्रार्थी भी क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने लगे। इनके साथ ही साथ उन्होंने अपने संगी साथियों और आम जनता को जागृत करने के लिए लेखन के माध्यम से नई नई क्रांतिकारी जानकारियां जन जन तक पहुंचनी शुरू कर दीं। प्रार्थी जी के लेख व संपादन का कार्य आगे डोगरा संदेश,कांगड़ा समाचार,देव भूमि,कुल्लू वैली व देहात सुधार नामक पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से (क्रांतिकारी विचारों के रूप में) आगे से आगे पहुंचने लगा था।
इन्हीं समस्त गतिविधियों के कारण ही प्रार्थी जी अंग्रेजों की नजरों में खटकने लगे थे और हर समय उन्हें संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा था। लेकिन लाल चंद को इस तरह का अंग्रेजों का व्यवहार रास नहीं आ रहा था और इसी कारण उन्हें 1942 ईo में अपनी सरकारी नौकरी छोड़ देनी पड़ी और फिर स्वतंत्र रूप में समाज सेवा के साथ ही साथ खुल कर क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए थे। आगे कुल्लू पहुंचने पर प्रार्थी जी ने अपने साथ कुछ नौजवान साथियों को भी आंदोलन की गतिविधियों में शामिल कर लिया था। लेकिन अंग्रेजों की नजरें तो पहले से ही उन पर थीं इसीलिए उन पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए,लेकिन प्रार्थी जी अंदर ही अंदर अपनी योजनाओं के अनुसार किसी न किसी तरह कार्य करते ही रहे।
आखिर प्रार्थी जी की गतिविधियां रंग लाई और 15 अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो गया। प्रार्थी जी को उनकी समाज सेवाओं,जन आंदौलनों व क्रांतिकारी गतिविधियों की भागीदारी के कारण ही उन्हें लगातार 1952,1962 व फिर 1967 में कुल्लू विधान सभा के लिए चुना जाता रहा और कई विभागों के मंत्री रह कर उन्होंने अपनी सेवा ईमानदारी से निभाई। लाल चंद प्रार्थी एक सच्चे क्रांतकारी ,समाज सेवक व राजनेता ही नहीं थे बल्कि आम जनता के दिलों में बसने वाले जाने माने प्रिय लेखक साहित्यकार,कलाकार,रंगकर्मी,कुशल नृतक,संगीत प्रेमी,गायक के साथ ही साथ एक अच्छे उपचारक भी थे और जड़ी बूटियों का विशेष ज्ञान रखते थे।
प्रार्थी जी कला के पुजारी ही नहीं बल्कि एक मंझे हुवे कला समीक्षक भी थे ,क्योंकि मुझे आज भी 1964^1965 की अपनी एल्बम की प्राचीन तस्वीरों को देख कर उनकी याद आ जाती है ,जिस समय हमारे कैमिस्ट्री के स्वo प्रोफेसर आरo टीo सबरवाल जी द्वारा अपने मण्डी डिग्री कॉलेज में चित्र कला प्रदर्शनी का आयोजन किया था, सबरवाल जी भी अपने समय के अच्छे चित्रकार व स्केचर थे। उनके द्वारा लगाई पेंटिंग प्रदर्शनी में उनकी पेंटिंग्स व स्केचों के साथ ही साथ अन्य कलाकारों की पेंटिंग्स में मेरी भी 5,6 पेंटिंग्स उस प्रदर्शनी में शामिल थीं। एक दिन प्रदर्शनी में प्रार्थी भी पधारे थे और उस समय उन्होंने प्रदर्शनी की पेंटिंग्स की कलात्मक अभिव्यक्ति के साथ ही साथ रखी गई सभी पेंटिंग्स की भूरी भूरी प्रशंसा के साथ मेरी पीठ भी थपथपाई थी और बड़े ही स्नेह से आगे बड़ने का आशीर्वाद भी दिया था ।
आज भी मुझे प्रार्थी जी के साथ वाली वह तस्वीरें उनकी (पुराने प्रदर्शनी वाले फोटो की अल्बम देखाने पर) याद दिलाती रहती हैं। प्रार्थी जी एक कलाकार के साथ ही साथ अच्छे कला समीक्षक भी थे। उन्होंने प्रदर्शनी में कई एक पेंटिंग्स संबंधी प्रश्नों के साथ ही साथ अपने सुझाव भी कलाकारों को दिए थे। उन्हें अपनी लोक संस्कृति से भी विशेष स्नेह और लगाव था तथा लोक संस्कृति के संरक्षण व इसके प्रचार प्रसार के लिए ही उन्होंने कुल्लू में नौजवानों के लिए एक सांस्कृतिक क्लब का भी गठन किया था। 1938 ईo उन्हीं के प्रयासों से कुल्लू में ही एक संगीत विद्यालय भी शुरू किया था, जहां देर रात तक मैंहफले सजती रहती थीं।
लाल चंद प्रार्थी एक अच्छे संस्कृति संरक्षक ही नहीं थे बल्कि कुशल कलाकार के रूप में सभी के सामने प्रत्यक्ष रूप में गायन,वादन व नृत्य की खूबियां भी प्रस्तुत किया करते थे।लोक नृत्य के लिए ही उन्हें 1952 में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया था।लोक संस्कृति को ही बड़ावा देने के लिए ,उन्हीं के प्रयासों से भाषा व संस्कृति विभाग, कला संस्कृति अकादमी व कुल्लू के कला केंद्र का निर्माण हुआ है और राज्य संग्रहालय को चलाने में भी उन्ही का हाथ था। विद्वान ,साहित्यकार व कला मर्मज्ञ होने के कारण ही उस समय की(दिल्ली से निकलने वाली शमां व बीसवीं सदी) कई एक प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती थीं।
उनके कुशल कलाकार होने का प्रमाण तो उनके लाहौर प्रवास के मध्य एक फिल्म कारवां में निभाई भूमिका से भी हो जाता है।फिर मंझे साहित्यकार होने का पता तो उनके द्वारा लिखित पुस्तक कुल्लूत देश की कहानी को पढ़ने से हो जाता है। चांद कुल्लवी के नाम से प्रसिद्ध रहे ,ऐसे सर्वगुण सम्पन्न गुणों वाले महान व्यक्तित्व और कला ,संस्कृति ,साहित्य के पुजारी
को आज मनाई जा रही उनकी शुभ जयंती पर मेरा शत शत नमन।