काव्य वर्षा, दरकाटी, तहसील-ज्वाली, जिला-कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश!
बहुत कुछ करने का मन करता है।
कभी कभी मरने का मन करता है।।
पर मरना आसान नहीं है।
हाथों में इतनी जान नहीं है।।
कैसे घाटाऊँ मैं मसले अपने,
खुदा से अपनी पहचान नहीं है।
नसीब बदलने का मन करता है।
कभी कभी मरने का मन करता है।।
सारे ग़म सुना जाते हैं।
लोग मेरा दिन गवा जाते हैं।
भाग कर दूर जाना भी मुश्किल,
चप्पल मेरी छुपा जाते हैं।
सबसे लड़ने का मन करता है।
कभी कभी मरने का मन करता है।।
वैसे तो कोई बात नहीं है।
घम है पर उदास नहीं हैं।।
जीने की चाह बुनी है दिलने,
पर दिखती कहीं राह नहीं है।
बहुत सोच के दिल डरता है।
कभी कभी मरने का मन करता है।।
खूबसूरत कविता 👍